मंगलवार, 1 जनवरी 2013

नारी


मैं किसी बंधन में बंधना नहीं जानती
नदी के बहाव सी रुकना नहीं जानती
तेज हवा सी गुजर जाये जो सर्र से
मैं हूं वो मन जो ठहरना नहीं जानती।

वो स्वाभिमान जो झुकना नहीं जानती
करती हूं मान पर अभिमान नहीं जानती
जो हाथ में आ के निकल जाये पल में
मैं हूं ऐसा मुकाम जो खोना नहीं जानती।

हाथ बढ़ा कर समेटना है जानती
कंधे से कंधा मिलाना है जानती
गिरते हुये को संभालना है जानती
मैं हूं आज की नारी जो सिसकना नहीं जानती।

मन में बसाकर पूजना है जानती
आंखों में प्यार व अधिकार है मांगती
मैं हूं आज के युग की नारी
जो धरा से अंबर तक उड़ान है मारती।
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पूनम

11 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

nice creation and presentation

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

सदा ने कहा…

अनुपम भाव संयोजन ... किया है आपने इस अभिव्‍यक्ति में
आभार

Amrita Tanmay ने कहा…

बहुत ही सुन्दर लिखा है..

babanpandey ने कहा…

bahut khub ...

kavita verma ने कहा…

nice creation.

Vaanbhatt ने कहा…

आज की नारी का सुन्दर चित्रण...नव वर्ष की शुभकामनाएं...

केवल राम ने कहा…

वो स्वाभिमान जो झुकना नहीं जानती
करती हूं मान पर अभिमान नहीं जानती
जो हाथ में आ के निकल जाये पल में
मैं हूं ऐसा मुकाम जो खोना नहीं जानती।

प्रेरक और आत्मविश्वास से लबरेज यह रचना सामयिक भी है ...!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत अनुपम भाव ... आज की नारी का चित्र खींच दिया आपने ...
सार्थक रचना ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मन के भाव पंख धर उड़ जायें।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बेहतरीन भाव लिए सार्थक प्रस्तुति,,,

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