रविवार, 27 मार्च 2011

रुसवाई


जमाने ने रुसवा किया है मगर

हमें उनसे कोई शिकायत नहीं है।

बद अच्छा बदनाम बुरा

ये जुमला उन्हीं की अमानत रही है।

कदम दर कदम हमें धोखा दिया

ये हमेशा से उनकी फ़ितरत रही है।

न समझा जमाने ने मुझको जरा भी

न ही समझने कि उसे फ़ुर्सत रही है।

जहां में अकेले हमीं तो नहीं

जिसे दर्द सहने की आदत नहीं है।

शिकवा करे किसी से भी क्यों

जब खुदा की ही हम पर इनायत नहीं है।

000

पूनम

24 टिप्‍पणियां:

Apanatva ने कहा…

are aaj ye kis mood me rachana likhee.........
dekh nahee paogee sir par kaee salvate pad gayee hai fikr me.........
:(
shubhkamnae........

ज्योति सिंह ने कहा…

जहां में अकेले हमीं तो नहीं

जिसे दर्द सहने की आदत नहीं है।


शिकवा करे किसी से भी क्यों

जब खुदा की ही हम पर इनायत नहीं है।
man bahlaane se dard halka ho jaata hai ,thik hi kaha dard to sabke hisse me rahta hai .

वाणी गीत ने कहा…

अपनी सलीब सबको खुद ही धोनी पड़ती है तो फिर शिकवा कैसा ...
भावपूर्ण पंक्तियाँ !

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

जहां में अकेले हमीं तो नहीं
जिसे दर्द सहने की आदत नहीं है।
शिकवा करे किसी से भी क्यों
जब खुदा की ही हम पर इनायत नहीं है।

बहुत संवेदनशील भाव..... मन को हौसला देती पंक्तियाँ हैं...पूनमजी

Udan Tashtari ने कहा…

वाह, बहुत उम्दा...

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय पूनमजी जी
नमस्कार !
बहुत संवेदनशील
बहुत ही सुन्‍दर भावों से सजी अनुपम प्रस्‍तुति ।

केवल राम ने कहा…

न समझा जमाने ने मुझको जरा भी
न ही समझने कि उसे फ़ुर्सत रही है।

यहाँ किसी को समझने की फुर्सत किसे है सब अपनी अपनी डफली बजा रहे हैं लेकिन जीवन यहीं नहीं रुक जाता है ..वह तो चलता रहता है ...बहुत सार्थक और विचारणीय भाव ..आपका आभार

रचना दीक्षित ने कहा…

जहां में अकेले हमीं तो नहीं
जिसे दर्द सहने की आदत नहीं है।
शिकवा करे किसी से भी क्यों
जब खुदा की ही हम पर इनायत नहीं है।

बहुत संवेदनशील मन के भावों से सजी रचना.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

धैर्य असीमित, शुभ आयेगा।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

न समझा जमाने ने मुझको जरा भी
न ही समझने कि उसे फ़ुर्सत रही है।
kabhi hogi bhi nahi, to khud hi kyun n sochen

Kailash Sharma ने कहा…

जहां में अकेले हमीं तो नहीं

जिसे दर्द सहने की आदत नहीं है।

बहुत मर्मस्पर्शी रचना..बहुत सुन्दर

सदा ने कहा…

जहां में अकेले हमीं तो नहीं
जिसे दर्द सहने की आदत नहीं है।
शिकवा करे किसी से भी क्यों
जब खुदा की ही हम पर इनायत नहीं है।
बहुत खूब लिखा है आपने ।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

यह मूड आपके साथ नहीं जाता, पूनम जी! वैसे यह भी जीवन का एक पहलू है, किन्तु इससे लदना और इसके आगे बढ़ाना ही इंसान का स्वभाव हिना चाहिए!!

ktheLeo (कुश शर्मा) ने कहा…

दर्द का बयाँ !भावपूर्ण!

विशाल ने कहा…

बहुत उम्दा लिखा है आपने.

ज़माने का शिकवा न कर रोने वाले,
ज़माना नहीं साथ देता किसी का.

सलाम

Apanatva ने कहा…

apna number dena baat karne kee bahut iccha ho rahee hai .
shrrghratisheeghr.

amrendra "amar" ने कहा…

जहां में अकेले हमीं तो नहीं
जिसे दर्द सहने की आदत नहीं है।
शिकवा करे किसी से भी क्यों
जब खुदा की ही हम पर इनायत नहीं है।
aapki rachna man ke ek kone me gher ker gayi.........sundeer rachne ke liye badhai

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

waah kya baat hai...bahut positive soch hai. hatts off.maja aa gaya aapki rachna padh kar.

रानीविशाल ने कहा…

बद अच्छा बदनाम बुरा
ये जुमला उन्हीं की अमानत रही है।
waah...bahut bhavpurn rachana punamji

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब ... सच है किसी से क्या गिला करना .. बहुत अच्छा लिखा है ...

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत ही सुन्‍दर भावों से सजी अनुपम प्रस्‍तुति|

Minoo Bhagia ने कहा…

bahut achhi kavita , poonam

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

न समझा जमाने ने मुझको जरा भी

न ही समझने कि उसे फ़ुर्सत रही है।


जहां में अकेले हमीं तो नहीं

जिसे दर्द सहने की आदत नहीं है।

पूनम जी बहुत सुन्दर बातें आप की जुर्म अनाचार न सहने सुनने की इच्छा काश सभी गृहणियां हमारी यही ठान लें तो बात बन ही जाये
रचनाएँ सुन्दर -आइये आप हमारे ब्लॉग पर भी अपने सुझाव व् समर्थन के साथ
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५

http://anusamvedna.blogspot.com ने कहा…

जहां में अकेले हमीं तो नहीं
जिसे दर्द सहने की आदत नहीं है।
शिकवा करे किसी से भी क्यों
जब खुदा की ही हम पर इनायत नहीं है

वाह बहुत ही खूबसूरत गज़ल .......धन्यवाद