दिल के जज्बात जब आंखों में उतर आये
तो सब्र का मानों सैलाब बह गया।
पर दूसरी साथी लहरों ने उसका साथ दे दिया।
हंसी बिखेरती रही झूठी मुस्कान ओढ़ कर
पर वो बेमुरौव्वत हाले दिल बयां कर गया।
सोचा था महफ़िल में झूठ की पहने रहूं नकाब
पर सच के आगे वो भी बेनकाब हो गया।
इन आंसुओं का भरोसा क्या कब बरस जायें
खुशी हो गम दोनों में रिश्ते निभाता गया।
अजब का इनका रिश्ता भी है न साथियों
किस बात पर ये छलक पड़े किसको गुमां हो पाया।
000
पूनम
45 टिप्पणियां:
सोचा था महफ़िल में झूठ की पहने रहूं नकाब
पर सच के आगे वो भी बेनकाब हो गया।
क्या बात है पूनम जी बहुत खुबसूरत शेर कह दिया हमारी ओर से मुबारकवाद कुबूल करें ...
SOCHA THA MAHFIL ME JUTH KI PAHNE RAKHUNGA NAKAB, PAR SACH KE SAAMNE WO BHI BENKAAB HO GYA. . . . . . . . . . BAHUT HI ACHA LAGA. . . . . . . .
JAI HIND JAI BHARAT
सोचा था महफ़िल में झूठ की पहने रहूं नकाब
पर सच के आगे वो भी बेनकाब हो गया।
आदरणीय पूनम जी
आपने कितनी बड़ी बात सरल शब्दों में कही है .....बहुत खूब
आह बेहतरीन शेर.बहुत ही सुंदर .
सच के आगे बेबस,
एक लहर आई और पलकों पर ठहरी
पर दूसरी साथी लहरों ने उसका साथ दे दिया।
चलो कुछ रूमानी हो जाएँ बहुत अच्छी लगी कविता. सीधी लेकिन गभीर विचार.
सोचा था महफ़िल में झूठ की पहने रहूं नकाब
पर सच के आगे वो भी बेनकाब हो गया।
बहुत सुन्दर शेर,
- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
आपके 'दिल के जज्बात' बहुत गंभीर हैं पूनम जी.
मुझे तो कोई थाह नहीं मिल पा रही है.सोचता हूँ फिर फिर पढूं और समझने की कोशिश करूँ.
हाँ ,आप कुछ समझा दें तो आसान हो जायेगा समझना.
अजब का इनका रिश्ता भी है न साथियों
किस बात पर ये छलक पड़े किसको गुमां हो पाया
-बहुत भावपूर्ण....कोई नहीं जान पाया कि कब छलक आयेंगे.
bhut hi khubsurat aur bhaavpur abhivakti...
जब आँसू छलकते हैं तो दर्द के दृष्यमान हो जाने का और भी दुःख होता है।
हंसी बिखेरती रही झूठी मुस्कान ओढ़ कर
पर वो बेमुरौव्वत हाले दिल बयां कर गया.
वाह क्या बात है,बहुत खूब.
सोचा था महफ़िल में झूठ की पहने रहूं नकाब
पर सच के आगे वो भी बेनकाब हो गया।
sach ke upar nakaab nahi thaharta , mukhaute wale chehre bade sadhe hote hain
सोचा था महफ़िल में झूठ की पहने रहूं नकाब
पर सच के आगे वो भी बेनकाब हो गया।
a very intense line. You write so well !!!
Feelings and emotions are the features which keeps us going.
"इन आंसुओं का भरोसा क्या कब बरस जायें
खुशी हो गम दोनों में रिश्ते निभाता गया।"
बिलकुल सही कहा आपने - ख़ुशी भी खूब रुलाती है और सच्चे दिल को झूठ का नकाब भी नहीं सुहाता - सुंदर रचना
सोचा था महफ़िल में झूठ की पहने रहूं नकाब
पर सच के आगे वो भी बेनकाब हो गया।
इन आंसुओं का भरोसा क्या कब बरस जायें
खुशी हो गम दोनों में रिश्ते निभाता गया।
laga sach ko apne kalam thama di ho.
bahut hi bhawpoorn prastuti ...badhai swikare.
Respected Poonam Mam,
Sabse pahle to tabiyat thik na hone ke bad bhi hamare angan me akar....apni bat kahne ke liye abhar.
aake sujhaw hamri sabse anmol dharohar hai.
Fir ye jankar bahut dukha huwa ki tabse abhi aapki tabiyat puri tarah swasth nahi hui..!vishesh dhyan dijiye . koi bhi problem jyada lambi chalti hi to thoda chinta ka vishay jarur ban jati hi.
Ham abhi puri tarah thik hain...aur june ke exam par dhyan diye hain...sath ma se duwa karte hai aap bahut jaldi puri tarah swasth ho jaiye..!
अजब का इनका रिश्ता भी है न साथियों
किस बात पर ये छलक पड़े किसको गुमां हो
bahut sundar abhivyakti.
पूनमजी आंसू के मोल बेहद नाजुक होते है , यही तो दिल को ठंढक पहुंचाते है ! बेहद सुन्दर !
बहुत सुन्दर अभिवयक्ति
vikasgarg23.blogspot.com
सोचा था महफ़िल में झूठ की पहने रहूं नकाब
पर सच के आगे वो भी बेनकाब हो गया।
आप बहुत ही अच्छा लिखती हैं ...सहज भावों में व्यक्त इस प्रस्तुति के लिये बहुत-बहुत बधाई
आदरणीय पूनम जी
सोचा था महफ़िल में झूठ की पहने रहूं नकाब पर सच के आगे वो भी बेनकाब हो गया।
...वाह क्या बात है,बहुत खूब
हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।
इन आंसुओं का भरोसा क्या कब बरस जायें
खुशी हो गम दोनों में रिश्ते निभाता गया।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...हरेक शेर बहुत उम्दा..आभार
bhut sundar ehsaso ko shabd diya hai aapne...maza aa gaya padhkar..bhut sundar
सच में बड़ा अजब रिश्ता है
इन आसुओंसे, ख़ुशी में भी छलक जाते है
गम में भी छलक जाते है !
पूनम जी अच्छी रचना है !
भावनायें पानी बन बहती हैं, पानी सी बहती हैं।
pooree tour se bhiga gayee ye rachana.
ab kaisee ho?
please apna poora dhyan rakho .
shubhkamnae .
sach kaha aapne aansoo khushi or gam dono me saath nibhaate hain,bahut sundar abhivyakti
सोचा था महफ़िल में झूठ की पहने रहूं नकाब
पर सच के आगे वो भी बेनकाब हो गया।
इन आंसुओं का भरोसा क्या कब बरस जायें
खुशी हो गम दोनों में रिश्ते निभाता गया
बहुत सुंदर पूनम जी..... आंसुओं से यूँ ही जीवन भर रिश्ता बना रहता है....
हंसी बिखेरती रही झूठी मुस्कान ओढ़ कर
पर वो बेमुरौव्वत हाले दिल बयां कर गया।
सोचा था महफ़िल में झूठ की पहने रहूं नकाब
पर सच के आगे वो भी बेनकाब हो गया।
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! लाजवाब रचना! बधाई!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://www।seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen।blogspot.com/
सोचा था महफ़िल में झूठ की पहने रहूं नकाब
पर सच के आगे वो भी बेनकाब हो गया।
ye mardood sach ...........bahut jaldi apne aage se mukhota hata deta hai...!!
bahut pyari rachna...poonam jee!
बहुत सुन्दर पक्तिंया कि झूठ में मुस्कराते रहे, हंसते रहे मगर आंसुओं ने सारा राज खोल दिया । दिल की भावनायें जब आंखों में उतर आईं तो एक लहर आई उसे कैसे कोई रोक पाता जब कि पीछे से दूसरी ने धक्का मार दिया । आंसुओं का वैसे तो भरोस नहीं कब बरस जायें परन्तु इन्हे बरसात में ही बरसना चाहिये ताकि आंखें भीगे होने का एक बहाना मिल जाय
पूनम बहन!
कविता के भाव बहुत कोमल हैं. अभिव्यक्ति और भी नाज़ुक... कई बार लोगों ने इसे अपनी अपनी कविता में अलग अलग तरीके से बयान किया है.. लेकिन ये जज़्बात हर किसी की ज़िंदगी से जुड़े हैं,लिहाजा हमेशा अपनेपन का एहसास देते हैं.
सुन्दर प्रस्तुति!!
इन आंसुओं का भरोसा क्या कब बरस जायें
खुशी हो गम दोनों में रिश्ते निभाता गया।
सोचा था महफ़िल में झूठ की पहने रहूं नकाब
पर सच के आगे वो भी बेनकाब हो गया।
पूनम जी वाकई हर लाइन में एक सुंदर भाव है। रचना कई बार पढता रह गया। बहुत बहुत शुक्रिया
आंसू कई बार बहुत साथ देते हैं, शुभकामनायें !!
पूनम जी, अनुभूतियों की पराकाष्ठा है यह रचना।
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कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत?
ब्लॉग समीक्षा का 17वाँ एपीसोड।
sundar chiitakarshak bhavo ko aapne sundar shabd diye hai . roman me comment aur der se aane ke liye kshama,
इन आंसुओं का भरोसा क्या कब बरस जायें
खुशी हो गम दोनों में रिश्ते निभाता गया।
sundar...
एक लहर आई और पलकों पर ठहरी
अच्छी लगी ..
इन आंसुओं का भरोसा क्या कब बरस जायें
खुशी हो गम दोनों में रिश्ते निभाता गया।
sunder bhav
bahut gahri baat kahi aapne
rachana
सोचा था महफ़िल में झूठ की पहने रहूं नकाब
पर सच के आगे वो भी बेनकाब हो गया।
kitni hi saralta se sacchai likh di in aansuon ka kya kab kahan baras jaye,dard rakhne walon ko inke liye bahut se bahane rakhne pad jate hain.ma'am aapke blog ko ek ek kar padh rhi hoon bahut hi umda lekhti hai aap.
एक लहर आई और पलकों पर ठहरी
पर दूसरी साथी लहरों ने उसका साथ दे दिया।
हंसी बिखेरती रही झूठी मुस्कान ओढ़ कर
पर वो बेमुरौव्वत हाले दिल बयां कर गया।
ये आँसू सब कुछ बयान कर देते हैं ...
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति !
किस बात पर ये छलक पड़े किसको गुमां हो पाया।बहुत खुबसूरत शेर,हमारी ओर से मुबारकवाद कुबूल करें ...बहुत ही सुंदर .
सोचा था महफ़िल में झूठ की पहने रहूं नकाब
पर सच के आगे वो भी बेनकाब हो गया।
इन आंसुओं का भरोसा क्या कब बरस जायें
खुशी हो गम दोनों में रिश्ते निभाता गया।
bahut sundar ehsaas....
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