(फोटो--गूगल से साभार) |
ज्यों ज्यों उम्र उसकी
चढ़ रही थी परवान पे
त्यों त्यों पल रहे थे
सपने उसकी आंखों में।
घर आंगन की लाडली
नन्हीं सी कली खिली खिली
नहीं मालूम था एक दिन
मुरझायेगी वो किस गली।
पूरे घर की आंखों की पुतली
जान निसार थी जिस पर सबकी
अपने ख्वाबों के संग संग
जिसने देखे थे सपने बापू व मां के।
कदम बढ़ा रही थी धीरे धीरे
खोल रही थी पर अपने
धर दबोचा उसको पीछे से
कुछ नापाक हाथों ने।
छटपटाई रोई चिल्लायी
भाई होने की दी दुहाई
पर जिसको दया न आनी थी
वो हुआ कब किसका भाई।
बहुत लड़ी हिम्मत न हारी
पर अंततः लाचार हुई
बड़ी ही बेदर्दी से वो
हैवानियत का शिकार हुई।
बिखर गये सारे सपने
जिस्म के टुकड़े टुकड़े हो कर
चढ़ गयी फ़िर एक बेटी की बलि
शैतानों के हाथों पड़कर।
ना जाने कितनी बेटियां
ऐसी बलि होती रहेंगी
क्या सचमुच ये धरती मां
बेटियों से सूनी हो जायेगी।
000
पूनम
19 टिप्पणियां:
मार्मिक !
मार्मिक चित्रण, स्थितियाँ बदलनी होंगी..
मार्मिक !परिर्स्थिति जरुर बदलेगी !
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
lateast post मैं कौन हूँ ?
latest post परम्परा
मार्मिक सुंदर अभिव्यक्ति ,,,
RECENT POST: मधुशाला,
संवेदनशील प्रस्तुति - अंतिम प्रश्न भी जायज है
संवेदनशील प्रस्तुति - अंतिम प्रश्न भी जायज है
बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति,आभार.
भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
कष्टकारक :(
शायद माकूल जवाब किसी के पास नहीं ..
बहुत मार्मिक प्रस्तुति..
सचमुच केक्टस का जंगल हो चला है यह देश ।
मार्मिक लेखन |
http://drakyadav.blogspot.in/
बहुत मार्मिक प्रस्तुति!
बहुत ही मार्मिक भावोँ को अति सुन्दर शब्दोँ मेँ व्यक्त किया गया है । बधाई । सस्नेह
bahut achhi kavita hai poonam
मार्मिक रचना...
मार्मिक रचना...।
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