शनिवार, 18 सितंबर 2010

दिल की लगी

लफ़्ज आ आ के जुबां पे ठहर जाते हैं

कुछ कहने से पहले ही अश्क छलक जाते हैं।

जब भी करती हूं बात करने की कोशिश

या खुदा होंठ थरथरा के ही रह जाते हैं।

ऐसा होता है क्यों ये समझ पाती नहीं

धड़कनें भी दिल की धड़कते ही रह जाते हैं।

पहले खुद को आजमाती हूं ये कमी है क्या कोई

पर ये बातें तो अपने ही बता पाते हैं।

जब भी होगी मुलाकातें उनसे बातें तो होंगी हीं

बात दिल की वो मेरी नजरों से समझ जाते हैं।

बातें दो चार करके जब मैं उनसे लेती हूं रुखसत

कदम आगे न बढ़ के यूं पीछे को ही मुड़ जाते हैं।

पलटती हूं तो उनकी नजरें भी होती हैं इधर ही

शायद इसको ही दिल की लगी कहते हैं।

000

पूनम

25 टिप्‍पणियां:

  1. यही प्रेम का वैचित्र्य है संभवत।

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  2. वाकई में इसे ही दिल की लगी कहते हैं.... बहुत ही सुंदर रचना...

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  3. मुझे नहीं पता कि यह गजल है या नहीं। पर पूनम जी बहुत दिनों बाद आपकी एक सधी हुई सारगर्भित रचना देखने को मिली। बधाई और शुभकामनाएं।

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  4. बहुत बढ़िया लिखी है दिल की लगी ..

    सुन्दर रचना ..

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  5. बहुत पसन्द आया
    हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
    बहुत देर से पहुँच पाया .......माफी चाहता हूँ..

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  6. बिलकुल जी इसे ही कहते हैं।ांच्छी लगी रचना। शुभकामनायें

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  7. bahut hi umdaah rachna....
    badhai...
    ----------------------------------
    मेरे ब्लॉग पर इस मौसम में भी पतझड़ ..
    जरूर आएँ...

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  8. पहले खुद को आजमाती हूं ये कमी है क्या कोई
    पर ये बातें तो अपने ही बता पाते हैं।
    ....बहुत खुबसूरत प्रेम की कशमकश की अभिव्यक्ति...बधाई ...
    http://sharmakailashc.blogspot.com/

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  9. वाह जी सुहाने मौसम में आज तो प्रेम का रंग चढा है.

    बढ़िया अभिव्यक्ति.

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  10. "कदम आगे न बढ़ के यूं पीछे को ही मुड़ जाते हैं। पलटती हूं तो उनकी नजरें भी होती हैं इधर ही शायद इसको ही दिल की लगी कहते हैं। "
    हाँ शायद आप सच ही कह रही हैं. आज बारिश के इस मौसम में प्यार की फुहार में भिगो दिया.
    बधाई

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  11. एक बहुत खूब सूरत कबिता क़े लिए बधाई कबिता क़े भाव बहुत सुन्दर सारगर्भित है
    धन्यवाद.

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  12. जब भी करती हूं बात करने की कोशिश
    या खुदा होंठ थरथरा के ही रह जाते हैं ...


    सच्चाई ये प्रेम का हो रोग है .... जो अलग अलग तरह से अभिव्यक्त होता है ....

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  13. अच्छी रचना । इसे थोड़ा और तराशें ।

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  14. जब भी होगी मुलाकातें उनसे बातें तो होंगी हीं
    बात दिल की वो मेरी नजरों से समझ जाते हैं।
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! आखिर इसे ही दिल की लगी कहते हैं! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!

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  15. दिल्लगी नही यही है दिल की लगी । बहुत प्यार भरी रचना ।

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  16. वहुत दिन बाद हाजिर हो पाया हूं ।बहुत दिन बाद ही अच्छा कुछ पढने को मिला है धन्यवाद ।कुछ कहने के पहले ही अश्क छलक जाते हैं ’’ये आंसू मेरे दिल की जुवान हैं ’’हांेंठ थरथरा के रह जाते हैं ’’लब थरथरा रहे थे मगर बात होगई ’’धडकनों का धडकते रह जाना,कदम पीछे को मुडना और चलते चलते जब पीछे मुड कर देखा तो उन्हे भी इधर ही देखते पाया
    इस लाइन मे कितने भाव भर दिये क्या अर्जkaroon

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  17. ब्लॉग पढ़ा,आपकी रचना देखी.बढ़िया .
    दिल की लगी,
    अच्छी लगी.

    कुँवर कुसुमेश
    समय हो तो मेरा ब्लॉग देखें:kunwarkusumesh.blogspot.com

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  18. bahut hi accha laga ye padhke...
    khaskar antim lines..
    dil ki lagi jise kabhi bhi lagi ho wo aapki kavita ko hamesha apne se judab hua samjhega.

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