हर कदम पर जिंदगी लेती है इम्तहान
कब कहां किस रूप में ले किसको पता।
उलझनों में इस कदर कर देती है गुमराह
सुलझाते सुलझाते आदमी हो जाता है परेशां।
कभी तो ये जिंदगी लगती रेत का मकां
जो हल्की सी आंधी में भी मिट जाती जाने कहां।
और कभी जिंदगी बन जाती मजबूत पतवार
भंवरों में से भी जूझ बढ़ आगे पा जाती मुकाम।
जिंदगी तो रखती है मौत से भी वास्ता
फ़िर आगे बढ़ा ले जाती है वो अपना कारवां।
जिंदगी को हर तरह से जीना है जिंदादिली का नाम
अजीज मान कर जी लें जिंदगी का हर लम्हां।
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पूनम
34 टिप्पणियां:
बहत ही सुंदर कविता....
bahut hi khubsurat rachna....
sach mein
zindagi imthaan leti hai....
mere blog par thode se bargad ki chhaon mein jaroor aayein...
वाह! क्या बात है!
poonam bahut sunder abhivykti....
ek pyara saa sandesh detee rachana....
aatm bal bana rahana chahiye...har mushkil dafaa ho jatee hai.............
Aabhar
यही ज़िंदगी है ..
जिंदगी के फल्सफां पर उत्तम रचना..बधाई.
आदरणीय POONAM जी
नमस्कार !
कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई
जिंदगी तो रखती है मौत से भी वास्ता
फ़िर आगे बढ़ा ले जाती है वो अपना कारवां।
जिंदगी को हर तरह से जीना है जिंदादिली का नाम
अजीज मान कर जी लें जिंदगी का हर लम्हां।
.....सच में जिन्दादिली से जीना ही जिंदगी का नाम है..
....बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति
अच्छा है..
इम्तहान तो होते ही रहेंगे.. कब तक इनसे डर के मरेंगे?
वाह! क्या बात है!बहत सुंदर बात और कविता
माना, जिन्दगी लेती है, इम्तिहाँ,
पर दे जाती है मुकम्मल जहाँ।
जिंदगी को हर तरह से जीना है जिंदादिली का नाम
bilkul aur zindagi wahin hoti bhi hai
आपकी इस कविता में से भावनाऒं का ऐसा सैलाव उठा कि कई पल रुक कर उन भावधाराओं को निहारने पर विवश कर गया। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
चक्रव्यूह से आगे, आंच पर अनुपमा पाठक की कविता की समीक्षा, आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
हर कदम पर जिंदगी लेती है इम्तहान
कब कहां किस रूप में ले किसको पता..
सच कहा ... जिंदगी इंतेहाँ लेती है ... और नतीज़ा भी भोगना पढ़ता है ... यहाँ ही ...
जिंदगी की सच्चाई और कठिनाई पर आप की पारखी कलम खूब चली है . भाव भीनी कविता.
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जिंदगी को हर तरह से जीना है जिंदादिली का नाम
अजीज मान कर जी लें जिंदगी का हर लम्हां।...
This should be the spirit !
Regards,
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बहुत अच्छी प्रस्तुति। धन्यवाद
बहुत सुन्दर रचना!!
ज़िंदगी का सम्पूर्ण दर्शन आपने इन अशार में समेट कर रख दिया, जिन्हें समझने में सारी ज़िंदगी सर्फ़ हो जाती है!!
लाजवाब
Sach yahi to hai jindagi
ज़िन्दगी की उठापटक को चित्रित करती आपकी कविता अच्छी लगी. आप नियमित लिखती रहती हैं,good.
आपने मेरा ब्लॉग देखा एवं प्रतिक्रिया दी , कृतज्ञ हूँ .
कुँवर कुसुमेश
मोबा:09415518546
जिंदगी तो रखती है मौत से भी वास्ता
फ़िर आगे बढ़ा ले जाती है वो अपना कारवां।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...आभार..
ज़िन्दगी की दास्तां जिसका न शुरू है न अन्त। बहुत अच्छी रचना। बधाई
यही है ज़िन्दादिली की परिभाषा
Bahut khubsart jindgi ki paribhasha..
बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने! सही में इसी का नाम ज़िन्दगी है जहाँ खुशियाँ और मुश्किलें सबसे गुज़रना पड़ता है! ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति के साथ उम्दा रचना!
जीवन दर्शन!
सार्थक रचना!
आशीष
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प्रायश्चित
Magar kyu zindagi khud se nafrat karna sikha deti h???
जिंदगी को हर तरह से जीना है जिंदादिली का नाम !!!आपकी कविता जिन्दगी और ताजगी से भरी होती है ! बहुत बहुत धन्यवाद पूनम छाये रहिये !लिखते रहिये !
bahot achchi kavita.
... bahut sundar !!!
कभी कभी जमीन पर
रेंगने वाले
कीड़े के डंक भी
इतने घातक नहीं होते
जितने कि जहरीले
शब्दों के व्यंग्य बाण ।
So true !
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पूनम जी आपकी इस रचना को कविता मंच पर साँझा किया गया है
कविता मंच
http://kavita-manch.blogspot.in
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