मां ने लाडले को बतलाया
बड़े जतन से समझाया
बेटा सीधे रास्ते स्कूल जाना
कहीं पर भी न रुकना
स्कूल से सीधे घर आना
किसी अन्जान के साथ
कहीं न जाना
मासूम ने मासूमियत से कहा अच्छा।
बच्चा दिन ढलने पर घर न आया
मां का आशंकित मन घबराया
वह पागलों सी दौड़ी
स्कूल की तरफ़ बढ़ी
दरबान भुनभुनाया
वो तो किसी के साथ गया
कह कर छुटकारा पाया।
किसी ने बतलाया
कहीं कोई लड़का मिला है
शायद बेहोश पड़ा है
विह्वल होकर मां ने बेटे को झकझोरा
कहा था न
किसी अनजान के साथ न जाना
बच्चे ने टूटे फ़ूटे शब्दों में
सिर्फ़ इतना ही कहा मां---
पर वो तो पड़ोस के च-----च्चा थे।
000
पूनम
समाज का एक कडवा सच ! धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंपूनम जी! आए दिन सामने दिखने वाला सच... भरोसा कर लिया जिनका उन्होंने ही लूटा!!
जवाब देंहटाएंकिसपर भरोसा करें?
जवाब देंहटाएंआजकल तो अपने ही साए पर भ्रोसा नहीं किया जा सकता।
जवाब देंहटाएंविश्वास और विश्वासघात में ज्यादा फ़र्क नहीं रहा है। बदलते समय की खासियत है ये।
जवाब देंहटाएंबहुत खराब दौर से गुज़र रहे हैं हम। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंपक्षियों का प्रवास-२, राजभाषा हिन्दी पर
फ़ुरसत में ...सबसे बड़ा प्रतिनायक/खलनायक, मनोज पर
कड़वापन घोलता तथ्य।
जवाब देंहटाएंआखिर भरोसा करें भी तो किसपर ?
जवाब देंहटाएंPoonam Ji.... Badhaai. apney Ch...chaa they. Is baat ne sb kuch kah diya.
जवाब देंहटाएंबदलते समाज का सच ,किस पर भरोसा करें ।
जवाब देंहटाएंaise chacha chhootne nhi chahiye mgr log apni ejjat ka jnaja na uth jaye is dr se muh nhi kholte hai our anjane me hi apradhi ke shyogi bn jate hai .
जवाब देंहटाएंjb assi prtishat logo me anyay ke khilaf aawaj uthane ka madda paida ho jayega tb nishchit roop me ye bees prtishat ashay ho jayege .
aapki kvita schet hone ki prerna deti hai jiski aaj ke smaj me bhut avshykta hai . thanks di !
शर्मनाक।
जवाब देंहटाएं..............
यौन शोषण : सिर्फ पुरूष दोषी?
क्या मल्लिका शेरावत की 'हिस्स' पर रोक लगनी चाहिए?
ओह्ह बच्चे का मासूम मन...किसपे करे भरोसा...??
जवाब देंहटाएंकडवे सच को उजागर करती रचना
dardnaak...........lekin satya!!
जवाब देंहटाएंaapne samaj ka aina dikha diya..:(
... बेहद संवेदनशील रचना ... शिक्षाप्रद !!!
जवाब देंहटाएंउफ्फ्फ !!!!!! कितना सच कितना कड़वा
जवाब देंहटाएंदस में से एक उदाहरण ऐसा हो सकता है। लेकिन इसके आधार पर उसका सामान्यीकरण नहीं किया जाना चाहिए।
जवाब देंहटाएंइस लिहाज से आपकी यह पोस्ट एक भ्रम पैदा करती है और एक नकारात्मक बात को स्थापित कर रही है। मुश्किल यह भी है कि जितने टिप्पणीकार आ रहे हैं वे भी आपकी बात को समर्थन ही दे रहे हैं।
दगा देने वाला हमेशा कोई पास का ही होता है
जवाब देंहटाएंजो आपकी गतिविधियों से अच्छी तरह परिचित होता है ....
बहुत करीने से आपने अपनी बात कही .....
घोर-कलयुग का ये भी एक उदाहरण हैं.
जवाब देंहटाएंलेकिन, सभी एक जैसे नहीं होते हैं, ये भी याद रखने वाली बात हैं.
सावचेत करने वाली पोस्ट के लिए हार्दिक आभार.
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
ओह आज कोई किस पर विश्वास करे। आज का सच। शुभकामनायें।
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जवाब देंहटाएंराजेश उत्साही की बात ही मेरी बात भी है!
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कुछ शब्दों में सच्चाई को बाँध दिया आपने
जवाब देंहटाएंपूनमजी.... माँ हूँ इसलिए कहीं भीतर तक उतर गए ये शब्द... आभार
किस पर यकीन किया जाये किस पर नहीं!
जवाब देंहटाएंकविता ने इसी समस्या एक पहलू को उजागर कर दिया है.
उफ़ ... कितना दिल दहलाने वाली सच्चाई लिखी है ... आज का दौर कैसा आ गया है ... किस पर विश्वास किया जाए ...
जवाब देंहटाएंbahut hee khoobsurtee se aapne samaj ke karve sach ko bachche ke masumiyat ke madhaym se prstut kiya
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंA bitter truth of today's society. Indeed very sad !
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मा क़ा विह्बल मन ------ कबिता झकझोरने वाली बहुत सुन्दर आती प्रसंसनीय
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत बधाई इस कबिता के लिए ----एक अच्छी रचना.