शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

वो उम्र


वो एक उम्र ही तो होती है

जो ऐसी होती है

हर शै पर एक बार

जरूर से आती है।

वो एक उम्र ही तो होती है

जो ऐसी होती है

हर शख्स के जीवन में

सपन सतरंगी लाती है।

वो एक उम्र ही तो होती है

जो ऐसी होती है

अपने हर तरफ़ इक खूबसूरत

अहसास सा पाती है।

वो एक उम्र ही तो होती है

जो ऐसी होती है

अपनी ख्वाहिशों का

सुन्दर सा जाल बनाती है।

वो एक उम्र ही तो होती है

जो ऐसी होती है

कोई तो इस जाल को

पूरा बुन जाती है।

वो एक उम्र ही तो होती है

जो ऐसी होती है

और कोई इस जाल में

फ़ंस के रह जाती है।

वो भी तो एक उम्र ही है

जो सब पा जाती है

या फ़िर कभी दोनों को

संगसंग जीती है।

00000

पूनम

35 टिप्‍पणियां:

  1. पूनम जी बहुत समयानुकूल कबिता सुन्दर मनमोहक जागरूकता पैदा करने वाली.
    बहुत-बहुत धन्यवाद

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  2. काश हम भी उस उम्र को पहचान पाते ....अच्छी प्रस्तुति

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  3. vah umar koun si hai poonam ji ?.rachna ant tak bandhe rakhti hai uttar ki liye

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  4. काश कि वह उम्र ठर जाती। या काफ़ी लंबा होती। सुंदर भावाभिव्यक्ति।

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  5. जीवन को बनाती या बिगाड़ती है यह उम्र...... बड़ी प्रासंगिक और प्रभावी रचना ...... आभार पूनमजी...

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  6. समय समय की बात है.... बेहतरीन भावों से सजी प्रस्तुति

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  7. पूनम जी, बहुत ही प्यारी कविता है....

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  8. हमारी उम्र ही तो रहती है हमारे साथ, ताउम्र।

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  9. umra ka yah falsafa yaad rahta hai aur dil karta hai ki wahin laut jayen ...bahut achhi rachna

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  10. उम्र का तकाजा भी ..क्या तकाजा है ...बहुत सुंदर कविता ..पुरे जीवन को विश्लेषित कर दिया आपने
    चलते -चलते पर आपका स्वागत है

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  11. ओह, यह उम्र थी जरूर, पर जरा जल्दी ही गुजर गई! :(

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  12. Umra ka bahut hi sahi vishleshan kiya hai aapne.. aabhar
    bahut achhi prastuti lagi.

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  13. बहुत ही खूबसूरत शब्‍दों के साथ आपने उम्र को समेटा है अपने अंदाज में ...बधाई सुन्‍दर लेखन के लिये ...।

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  14. सुन्दर भावपूर्ण कविता , उम्र चाहे जो हो , हर उम्र मनुष्य को कुछ करने के लिए प्रेरित करती है .

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  15. यह उम्र भी क्या चीज़ है टिकती ही नहीं .सुन्दर अभिव्यक्ति .

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  16. सर्व प्रथम तो मै उस रेखा चित्र की बात करुं जिसे देख कर गाना याद आया बचपन के दिन भी क्या दिन थे उडते फिरते तितली बन। इस उम्र में सतरंगी सपने और इच्छाओं का जाल बनता है। कितनी गम्भीर बात लिखदी कि किसी का जाल पूरा बुना जाता है और कोई इसमें फंस कर रह जाता है। ज्यादातर वही स्थिति होती है जो आपने अन्तिम लाइन में कही है कि दौनो को संग संग ही जीना पडता है और यही स्वाभाविक भी है

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  17. पता ही नही वो उम्र कब आकर चली गयी मगर शायद ऐसी ही होती है……………सुन्दर प्रस्तुति।

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  18. अफसोस तो इस बात का है पूनम जी कि यह उम्र फिसलती चली जाती है रेत की तरह... या कहिये रेत घड़ी की तरह... अंतर इतना है कि रेत घड़ी को उलटकर समय को वापस किया जा सकता है पर जीवन में उस उम्र कओ नहीं लौटाया जा सकता.

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  19. वो एक उम्र ही तो होती है

    सच


    वही ऐसा बेहतरीन अनुभव भी लिखवाती है -वो एक उम्र ही तो होती है

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  20. बहुत ही अच्छी कविता... बहुत ही सुंदर भाव हैं....

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  21. वो एक उम्र ही तो होती है
    जो ऐसी होती है
    हर शै पर एक बार
    जरूर से आती है।

    वो एक उम्र ही तो होती है
    जो ऐसी होती है
    हर शख्स के जीवन में
    सपन सतरंगी लाती है।

    अच्छी प्रस्तुति...

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  22. शब्दों, भावों और भावनाओं का अनूठा संगम है आपके व्यक्तित्व मे.....

    मे एक बार एक कवित्री को लेखक के रूप मे देखने की तमन्ना रखता हूँ....एक बार वहाँ भी अपनी कलम का जादू बिखेरिये...

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  23. पूनम जी
    नमस्कार
    किस तरह आप सबका शुक्रिया करूँ ...बस यही प्रार्थना है ...मुझे यूँ ही मार्गदर्शन प्रदान करते रहना ...आपका बहुत बहुत आभार

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  24. बहुत बहुत सुन्दर रचना! ख़ूबसूरत एहसास के साथ उम्दा प्रस्तुती!

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  25. वो इक उम्र तो होती है ... पर बहुत जल्दी बीत जाती है .. पंख लगा कर बीत जाती है ... अछे सपने संजोय हैं रचना मिएँ ......

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  26. उम्र का फसाना क्या कहें\ बहुत अच्छी लगी रचना। बधाई।

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  27. ati sunder abhivykti........

    der se aa pane ke liye kshamaprarthee bhee hoo........

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