अगर आप अपनी आंखें कुछ क्षणों के लिये बन्द करें। और याद करें अपने शैशव काल को----तो आपको कानों में मां द्वारा गायी जाने वाली छोटी-छोटी लोरियों की पंक्तियां---मां के मधुर स्वरों में जरूर सुनायी पड़ेंगी। हो सकता है आपने भी अपने लाडले / लाडली को सुलाने के लिये उन्हीं पंक्तियों में से कुछ को गुनगुनाया भी हो।ये लोरियां सिर्फ़ लोरियां न होकर अबोध शिशु के लिये एक सम्बल रहती थीं,इस बात का कि वो अब निर्भय होकर मां की गोद में सो जाये। दुनिया की कोई भी ताकत अब उसका किसी भी प्रकार का अहित नहीं कर सकता।
इतना ही नहीं इन लोरियों के माध्यम से ही मां अपने बच्चों को जो भी सीख देती थी, जो भी कहानियां सुनाती थी,जो भी मार्ग दिखाती थी वो बच्चे के मानस पटल पर इस तरह से अंकित हो जाती थी कि बच्चा जीवन भर उससे प्रेरणा लेता था। और अपने जीवन के किसी मोड़ पर जब वह किसी भी मुसीबत में पड़ता था तो वही लोरियां एक गुरू के समान उसका मार्ग दर्शन करती थीं। उसे हर संकट से बचाती थीं। शायद इसी लिये मां को पहली शिक्षक होने का गौरव भी हासिल है।
लेकिन आज क्या आपको किसी युवती के मुंह से अपने बच्चे को सुलाने के लिये वैसी कोई पंक्ति सुनायी पड़ती है।शायद नहीं सुनायी पड़ती होगी। आज के बढ़ते भौतिकतावद की अन्धी दौड़ और बढ़ रहे औद्योगीकरण के धुंधलके में हमारी पारंपरिक लोरियां भी खो गयी हैं।अब तो शायद बच्चों को सुलाने के लिये भी आडियो कैसेट या सी डी का सहारा लिया जाता है। बच्चा अगर थोड़ा बड़ा हुआ तो उसे या तो क्रेश में भेज दिया जायेगा या फ़िर वो किसी आया के सहारे पलेगा।ऐसे में कहां से हमें सुनाई देंगी लोरियों की मधुर पंक्तियां?
यद्यपि इसके पीछे भौतिकतावद की दौड़ तो है ही लेकिन उसके साथ ही दूसरे बहुत से भी कारण हैं। मां बाप अपने बच्चे की सुख सुविधा के लिये ही धन कमाने के लिये परेशान रहते हैं। दोनों ही अपने बच्चों का भविष्य उज्ज्वल बनाने के लिये नौकरी करने लगते हैं। संयुक्त परिवारों की परंपरा भी खत्म होती जा रही है।परिवारों में बाबा दादी नहीं हैं। बाबा दादी गांवों में रह रहे हैं या किसी अन्य शहर में।यह मजबूरी हर मां के सामने है कि वह चाहते हुये भी बच्चे के लिये समय नहीं दे पाती।बच्चा मां बाप के साथ दूर शहर के अजनबी माहौल में रहता है।ऐसे में भला बच्चे को शैशवावस्था में लोरी कहां से नसीब होगी?
मैं यहां कुछ बहु प्रचलित लोरियों की पंक्तियां उदाहरण स्वरूप दे रही हूं।उनमें जो सन्देश जो भाव हैं ,उनके लिये तो आज के बच्चे तरसते ही हैं--- लल्ला लल्ला लोरी / दूध की कटोरी / दूध में बताशा / मुनिया करे तमाशा । अब इन पंक्तियों में शब्दों का जो दुहराव है वो तो बच्चे को सोने की दवा का काम करेगा ही। इसके साथ ही जो भावना इस लोरी के साथ जुड़ी है कि मां चाहे गरीब हो या अमीर---वो हर हालत में बच्चे को दूध बताशा खिलायेगी।इसी तरह जरा आप इन पंक्तियों पर भी विचार करें------- चन्दा मा मा ---आरे आवा पारे आवा / नदिया किनारे आवा /सोने की कटोरिया में /दूध भात लेहले आवा / बाबू के मुइयां में घुटुक ।
चांदनी रात में जब मां अपने प्यारे बच्चे को कन्धे पर लेकर सुलाने की कोशिश करती हुयी यह लोरी गाती होगी---तो उसके मन का सारा प्यार,स्नेह बच्चे को सुलाने के लिये काफ़ी होता होगा----उस पर से चन्दा मामा से की गयी यह स्नेहसिक्त याचना---निश्चय ही बच्चा जीवन पर्यन्त मां की यह लोरी नहीं भूलेगा।
इसी तरह एक लोरी पर आप और गौर फ़रमाइये-----
सो जा प्यारी गुड़िया रानी/ मेरी प्यारी राज दुलारी/राज कुवंर जी आयेंगे / एक दिन तुझे ले जायेंगे-----
इस लोरी में भी मां अपनी प्यारी बेटी को यह कह कर सुलाने की कोशिश कर रही है कि ---मेरी राजदुलारी सो जा --- मैं तेरे लिये राजकुमार ही ढूंढ़ कर तेरा विवाह करूंगी।
लेकिन अफ़सोस की बत यह है कि आज हम इन प्रचलित लोरियों को भूलते जा रहे हैं। आज के समाज की स्थिति तो यह हो चुकी है कि बच्चों को माता पिता शुरू से ही टेलीविजन,वीडियो गेम,और कार्टून के आदी बनाने लगते हैं। लोरियां सुनने की उम्र में ही बच्चा कार्टून नेटवर्क और एनिमेशन फ़िल्मों के मायाजाल में उलझने लगता है। और शैशवावस्था में ही वह मां की गोद में सोने के बजाय या तो क्रेश में पहुंच जाता है या फ़िर आया की गोद में। ऐसी स्थिति में कहां से उसके अन्दर मां – पिता, बाबा –दादी, या नाना- नानी के प्रति संवेदनायें जागृत हो पायेंगी ? कहां से वो जुड़ पायेगा परिवार के साथ?आज हम सभी को मिल कर लोरियों की इस खतम हो रही परंपरा को बचाना ही होगा। इसी विचार से प्रेरित होकर मैंने यह लोरी लिखी है। आप भी मेरी इस लोरी को पढ़िये –और फ़िर से एक बार अपने शैशवकाल में वापस लौट जाइये----
एक लोरी
लाडली ओ लाडली
सो जा मेरी लाडली
देर न कर निंदिया रानी
सोने चली मेरी लाडली।
लाडली…………………।
मां पापा की लाडली
बहना की तू सखी भली
भइया को प्यारी गुडिया
जैसी बहना तू मिली।
लाडली…………………॥
तू नाजुक फूलों जैसी
निश्छल तू दर्पण जैसी
तेरी मुस्कराहट पर
खिलती दिल की कली कली।
लाडली……………………।
तू शीतल सी चांदनी
जो छेड़े दिल की रागिनी
तेरी बोली लगती ऐसी
मिश्री की जैसी डली।
लाडली……………………॥
मां की उंगली पकड़ के घूमी
घर आँगन और गली गली
सब कुछ सूना सूना लगता
बिन तेरे मेरी लली।
लाडली…………………॥
पढ़ लिख कर तू नाम करे
जग तुझपे अभिमान करे
तेरी रोशनी से रोशन हो
धरती से अम्बर की गली।
लाडली…………………………।
मां का लाडला एक दिन कोई
तुझको लेने आयेगा
मां का आँचल सूना करके
उसके संग तू हो चली।
लाडली……………………।
तेरे जीवन में खुशियों की
बगिया हो महकी महकी
पर भूल न जाना तू कभी
मां के आंगन की गली।
लाडली ओ लाडली
सो जा मेरी लाड़ली।
***************
पूनम
37 टिप्पणियां:
वाकई ज़माना बहुत बदल गया है, आपका प्रयास सराहनीय है!
बच्चों को लोरी कभी कभी आज भी सुनाता हूँ मैं।
समय बदल गया है पूनम जी. कामकाजी मांए दिन भर की थकान के बाद अब लोरी सुनाना भूल गई हैं. बच्चों ने चूंकि लोरी सुनी ही नहीं, सो वे उसकी फ़रमाइश कैसे करें? वे जानते ही नहीं लोरी. कुछ मांए सुनाती भी होंगी, उनके बच्चे ज़्यादा सुकून से सोते भी होंगे. प्रवीण जी की तरह मैने भी अपनी बिटिया को खूब लोरियां सुनाई हैं." धीरे से आ जा री अंखियन में निदिया...." तो अभी भी सुनती है कभी-कभी.
पूनम जी!मेरी बिटिया तो "नन्हीं परी सोने चली, हवा धीरे आना" सुने बिना सोती नहीं थी!
आज के बच्चे हाना मोण्टाना सुनते हैं!!
punam ji, aaj ki nariya to sach loriya bhul chuki hai......... sunder prastuti. fir se ye loriya taja kar gayee. aabhar.
नये दशक का नया भारत ( भाग- २ ) : गरीबी कैसे मिटे ?
आदरणीय पूनम जी
नमस्कार !
हम तो आपकी भावनाओं को शत-शत नमन करते हैं.
.शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।
आपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ !"
ओह, आपने बचपन की यादें ताजा कर दी , अब तो लोरी की जगह शकिरा का गांना बजता है ।
बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति है आपकी सच ...आभार ।
ab loree? only good night baby , now go to your bed .... angreji zamana hai, loree to hum dehati ! log gate rahe, gate hai ...sukun hai ek sapna hum aaj bhi jaga dete hain
khubsurat lodi...:)
waise sach kahun, aaj ke parents pahle ke tulna me jayda bachcho ke liye pareshan rahte hain, beshak unke pass lodiyan nahi hoti...!!
pahle ye kaam sirf maa ke hisse me tha...papa to sirf gussa karne ke liye hote the....ab aisa nahi hai, maine feel kiya hai, adhiktar bachcho ke maa aur papa dono bachcho ke liye bahut jayda uttardayee hote hain..........!!
haan wo lodiyon ki kami aapke post se mil jayegi...hai na poonam jee!!:D
आज के यथार्थ का बहुत रोचक पर सटीक चित्रण.आभार
आपकी रचित लोरी भी उत्कृष्ट है.इस पर आपके विचार पूर्णतयः सही हैं.इन सब के आभाव के कारण ही तो परिवारों से आत्मीयता विलुप्त होती जा रही है.यदि आपकी प्रेरणा सफल हो जाये तो पुनः पुराने दिन लौट सकते हैं.
पुनम जी आप ने सही कहा, आज कहां वो लोरिया, वो कहानियां,जब मेरे बच्चे छोटे थे ओर जब भी भारत आते ओर उन्हे दादी मां जब भी कोई कहानी सुनाती, अगर कहानी मे कुछ नया होता तो बच्चे झट से टोक देते कि यह कहानी ऎसे नही ऎसे हे, तो मां हमे देखती थी क्योकि हम ने बच्चो को वो सारी सोगात जो मां से मिली दी थी, यानि सब कहानियां ओर लोरिया बच्चो को सुनाई थी, आज तो टी वी ओर सीडी का जमाना हे, वेसे आज भी मेरे बच्चे मेरे से बडे हो गये हे, लेकिन आज भी कभी कभी मेरी या मां की गोद मे सर रख कर लेटते हे तो हम भी गुनगुनाते हे, तो बच्चो को अच्छा लगता हे हमे भी
बहुत भावनात्मक और दिल को छूने वाली पंक्तियाँ है इस रचना की ...सार्थक लेखन का उत्कृष्ट नमूना है ... ...आपकी प्रस्तुति .....शुक्रिया
पूनम जी, बहुत ही प्यारी लोरी रची है।
मन प्रसन्न हो गया।
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डा0 अरविंद मिश्र: एक व्यक्ति, एक आंदोलन।
एक फोन और सारी समस्याओं से मुक्ति।
लोरी पढ़ के ही आनंद आ गया ...आपका बहुत आभार इस प्रस्तुति के लिए
सही बात है, हम अपनी परम्पराओं को भूलते जा रहे हैं।
आधुनिक जीवन शैली ने सब-कुछ बदल दिया है।
आपके इस लेख से आज की माओं को कुछ प्रेरणा मिले, यही कामना है।
बहुत सुन्दर!
हमने भी नत्तू पांड़े के लये लोरियां बनाई हैं - ऑफकोर्स, आपकी पोस्ट की लोरियों जैसी मधुर नहीं बन पाईं!
तेरे जीवन में खुशियों की
बगिया हो महकी महकी
पर भूल न जाना तू कभी
मां के आंगन की गली।
लाडली ओ लाडली
सो जा मेरी लाड़ली।
बहुत अच्छी लगी आपकी ये लोरी. आज के बच्चों को अगर अपने ज़माने की लोरी सुनायेगे तो सोने की जगह वहां से उठ कर ही चले जायेंगे
एक उच्चकोटि का स्तरीय लेख. इसे पढ़ कर बचपन की बहुत याद आई, धन्यवाद और बधाई.
ज़माना बदल रहा है, लेकिन हम कुछ लोग आज भी नहीं बदल रहे हैं। लोरियों का नाद बहुत पसंद है। आपकी रचना बहुत सराहनीय है!
sundar
सच में आज आधुनिक युग आ गया है ... अगली २-३- पीडियों तक तो सब भूल जाएँगे की लोरी भी कुछ होती थी ...मन के भावों की सहज अभिव्यक्ति है आपकी लोरी में ... ...
बहुत सुंदर ...... सच में वो लोरियां कितनी सुकून और सीख भरी होतीं थी......
धन्यवाद पूनम जी, मेरी बेटी को जब कोई लोरी सुनाता हूँ तो कह देती है कोई नयी वाली सुनाओ,पापा. आज नयी लोरी सुनाऊंगा. आप का प्रयास सराहनीय है
पूनम जी,
बड़ा दर्द छुपा है आपके इस लेख में ! आज हम अपनी जड़ों से बड़ी तेजी से कट रहे हैं और किसी न किसी रूप में इसकी क़ीमत भी चुका रहे हैं ! बदलते ज़माने की तस्वीर कैसी होगी ,रिश्तों की अहमियत कितनी होगी ,सोचकर मन काँप जाता है !
आपकी लोरी बड़ी मासूम और प्यारी है !
mithi neend sulati rachna.
bahut achchi hai lori.
एक मीठी लोरी की तरह लगी यह पोस्ट -आभार !
आप सब को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं.
गणतंत्र दिवस की आपको हार्दिक शुभकामनायें..
आपकी लोरी बहुत ही सुन्दर है
आप को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं!
लोरी , आपने बचपन की याद दिला दी
बहुत सुन्दर एहसासों से भरी रचना !
आपने तो मुझे मेरी लोरी याद दिला दी मै हमेशा गाती थी नन्हा मुन्ना राही हु देश का सिपाही हु और लल्ला लल्ला लोरी ............
शुक्रिया दोस्त !
बहुत सुन्दर रचना बधाई !
bahut khoob....hame to apna bachpan yaad aagya... !
aaj samay badal gaya hai.... maa baap lori sunane ki bajaye kartoon dikhana jyada pashand karaten hai.
आज कल के बच्चों को तो पताही नहीं है कि लोरी या कथाएँ क्या होती हैं| आपका प्रयास सराहनीय है|
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