मंगलवार, 16 अगस्त 2011

तलाश


निकला था घर से मैं अमन चैन की खोज में,

पर देखा तो जहां भी अमन चैन खुद को ही तलाश रहा।

वारदातों पे वारदात हो रहे बमों के धमाके

चैन अब तो जेहन में किसी इन्सान के ना रहा।

दिल में है हलचल मची घबराये हैं चेहरे सभी,

सिलसिला खतम होगा कब तलक कुछ भी न सूझता।

बन रहे घर श्मशान लुट गये हैं आशियाने,

सबके दिलों का खौफ़ अब तो चेहरों पे दिख रहा।

सरकार कर रही है मुआवजों का झूठा वादा,

पर घाव बन रहे जो इसकी उसको फ़िकर कहां।

नजरें भी अपने लोगों के आने की राह देखतीं,

अबोध बच्चों के भी चेहरों से हंसी कोई छीन ले गया।

बढ़ रहा आतंक दिनों दिन पानी सर से गुजर रहा,

मन इनसे निपटने का कोई रास्ता ढूंढता ही रह गया।

दिलों में बस ये पैगाम भेज दे प्रेम के प्यारे,

बीज नफ़रत का न पनपे बने खुशियों का इक नया जहां।

000

पूनम

27 टिप्‍पणियां:

  1. दिलों में बस ये पैगाम भेज दे प्रेम के प्यारे, बीज नफ़रत का न पनपे बने खुशियों का इक नया जहां।
    sunder asha...

    जवाब देंहटाएं
  2. बन रहे घर श्मशान लुट गये हैं आशियाने,
    सबके दिलों का खौफ़ अब तो चेहरों पे दिख रहा।

    वर्तमान हालातों को बखूबी अभिव्यक्त किया है आपने इन पंक्तियों के माध्यम से ....पूरी रचना एक नए भाव बोध के साथ रची गयी है ...आपका आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. बढ़िया अभिव्यक्ति ....आपकी कामना पूर्ण हो यही इच्छा है !

    जवाब देंहटाएं
  4. ईश्वर आपकी कामना पूरी करें , रही हालात बदलने की बात वह तो शायद अभी मुश्किल है , सुंदर अभिव्यक्ति बधाई

    जवाब देंहटाएं
  5. निकला था घर से मैं अमन चैन की खोज में,

    पर देखा तो जहां भी अमन चैन खुद को ही तलाश रहा।

    yahi hai aaj ka sach

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही खूबसूरती से आज के सच को कहा है आपने....

    जवाब देंहटाएं
  7. हर शब्‍द हकीकत बन के पंक्ति में ढल गया और यह रचना एक सच्‍चाई बयां कर गई ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  8. देखा तो जहां भी अमन चैन खुद को ही तलाश रहा
    ohh kitni haqiqat hai bahut hi accha likha hai jitni tarif karuin utna kam hai bahut hi sarahniyee lekhan..

    जवाब देंहटाएं
  9. Bahut Sundar rachna..

    मेरे भी ब्लॉग में आयें |

    मेरी कविता

    जवाब देंहटाएं
  10. ब्यास्तता के कारन बहुत दिन बाद आपके ब्लॉग पर आया हु बहुत अच्छा लगा बर्तमान परिस्थितियों पर झकझोरने वाली कबिता . बन रहे घर समसान लुट गए है -----------
    बहुत-बहुत धन्यवाद
    सूबेदार सिंह

    जवाब देंहटाएं
  11. बन रहे घर श्मशान लुट गये हैं आशियाने

    बहुत बढ़िया रचना ... देश तो बस लुटता रहा देश वाशियों के हाथों ...

    जवाब देंहटाएं
  12. मन को उद्वेलित करने वाली मार्मिक कविता....

    जवाब देंहटाएं
  13. सकारात्मक और सार्थक सोच.... बढ़िया अभिव्यक्ति .

    जवाब देंहटाएं
  14. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ उम्दा रचना ! बेहतरीन प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत ही सुन्दर ! अहिंषा के देश में हिंशा -बेचैन कर देता है !

    जवाब देंहटाएं
  16. वाकई बहुत सुंदर रचना है,

    निकला था घर से मैं अमन चैन की खोज में,

    पर देखा तो जहां भी अमन चैन खुद को ही तलाश रहा.

    जवाब देंहटाएं
  17. बढ़ रहा आतंक दिनों दिन पानी सर से गुजर रहा,

    मन इनसे निपटने का कोई रास्ता ढूंढता ही रह गया।
    bahut sunder
    rachana

    जवाब देंहटाएं
  18. bahut acchhi prastuti.

    ham b isi ummed me hain ki kab khushiyon ka jahan banega...is jiwan me ham dekh payenge use ya nahi.

    sunder abhivyati.

    mere is blog par bhi apka swagat hai.

    http://anamka.blogspot.com/2011/08/blog-post_20.html

    जवाब देंहटाएं
  19. बढ़िया सकारात्मक अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  20. ''चैन अब तो जेहन में किसी इन्सान के ना रहा।''
    इंसानियत और इन्सान शायद गुजरे ज़माने की बात हो गयी है. बहुत ही शानदार प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं
  21. बहुत ही अच्छी,सामयिक और भावपूर्ण रचना,बधाई!

    जवाब देंहटाएं