शब्द भी मेरे बिखर के रह गये।
सोच की धरा पर जो भावों के पुल बने मेरे
शब्द पानी पर नदी के उतराते जैसे रह गये।
दरवाजे पर दस्तक से दिल धड़क धड़क उठे
कौन हो सकता है बेवक्त बस लरज के रह गये।
इन्सान को सही इन्सां समझना है बड़ा मुश्किल
मन ही मन में इसका हल ढूंढ़ते रह गये।
भरोसा भी करें तो कैसे और किस पर हम
सफ़ेदपोश में छुपे चेहरे असल दंग हम रह गये।
उड़ान मारते आसमां में देखा जो परिन्दों को
पिंजरे में बन्द पंछी से फ़ड़फ़ड़ा के रह गये।
मत लगाओ बन्दिशें इतनी ज्यादा
हम गुजारिश पर गुजारिशें ही करते रह गये।
सच्चाई को दफ़न होते देखा है हमने
झूठ का डंका बजा पांव जमीं से खिसक गये।
सन्नाटा पसरा रहता सहमी रहती गली गली
हम झरोखे से अपने झांक के ही रह गये।
जल रहे हैं आशियाने हंस रहे हैं मयखाने
सियासती दांव पेंचों में शब्द सिसक के रह गये।
झिलमिलाते तारों संग जो आसमां पे पड़ी नजर
हो खूबसूरत ये जहां भी चाहत लिये ही रह गये।
00000
पूनम
जल रहे हैं आशियाने हंस रहे हैं मयखाने
जवाब देंहटाएंसियासती दांव पेंचों में शब्द सिसक के रह गये।
हर शब्द महत्वपूर्ण भाव संप्रेषित करता है ...आपका आभार
सच्चाई को दफ़न होते देखा है हमने
जवाब देंहटाएंझूठ का डंका बजा पांव जमीं से खिसक गये।
सन्नाटा पसरा रहता सहमी रहती गली गली
हम झरोखे से अपने झांक के ही रह गये।
क्या बात है..बहुत सुंदर रचना...लाजवाब।
उड़ान मारते आसमां में देखा जो परिन्दों को
जवाब देंहटाएंपिंजरे में बन्द पंछी से फ़ड़फ़ड़ा के रह गये।
bahut khub !
उड़ान मारते आसमां में देखा जो परिन्दों को
जवाब देंहटाएंपिंजरे में बन्द पंछी से फ़ड़फ़ड़ा के रह गये।
हर शेर लाजबाब दाद को मुहताज नहीं आजकल के हालात पर अच्छी नज़र है आपकी हम तो यही कहेंगे बहुत खूब वाह वाह ......
सन्नाटा पसरा रहता सहमी रहती गली गली
जवाब देंहटाएंहम झरोखे से अपने झांक के ही रह गये।
बहुत सुंदर रचना.
bhtrin prstuti ..akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंsiyasati daanv pech , sach kaha hai poonam
जवाब देंहटाएंएक दूसरे के मनभावों को समझ पाना बड़ा कठिन है।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
जवाब देंहटाएंसच मे शब्द सिसक रहे हैं…………सुन्दर भाव समन्वय्।
जवाब देंहटाएंजल रहे हैं आशियाने हंस रहे हैं मयखाने
जवाब देंहटाएंसियासती दांव पेंचों में शब्द सिसक के रह गये
शब्द और भाव दोनों बेहतरीन.
बहुत सुन्दर .
इन्सान को सही इन्सां समझना है बड़ा मुश्किल
जवाब देंहटाएंमन ही मन में इसका हल ढूंढ़ते रह गये।
भरोसा भी करें तो कैसे और किस पर हम
सफ़ेदपोश में छुपे चेहरे असल दंग हम रह गये।
उड़ान मारते आसमां में देखा जो परिन्दों को
पिंजरे में बन्द पंछी से फ़ड़फ़ड़ा के रह गये।
बहुत बढ़िया ...बधाई कभी समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
जात - पांत न देखता, न ही रिश्तेदारी,
जवाब देंहटाएंलिंक नए नित खोजता, लगी यही बीमारी |
लगी यही बीमारी, चर्चा - मंच सजाता,
सात-आठ टिप्पणी, आज भी नहिहै पाता |
पर अच्छे कुछ ब्लॉग, तरसते एक नजर को,
चलिए इन पर रोज, देखिये स्वयं असर को ||
आइये शुक्रवार को भी --
http://charchamanch.blogspot.com/
ख़ूबसूरत रचना , सुन्दर प्रस्तुति , धाई आभार
जवाब देंहटाएंजल रहे हैं आशियाने हंस रहे हैं मयखाने
जवाब देंहटाएंसियासती दांव पेंचों में शब्द सिसक के रह गये।
सच्चाई कहती एक संवेदनशील रचना
सच्चाई को दफ़न होते देखा है हमने
जवाब देंहटाएंझूठ का डंका बजा पांव जमीं से खिसक गये।
सन्नाटा पसरा रहता सहमी रहती गली गली
हम झरोखे से अपने झांक के ही रह गये।
सुन्दर रचना || बहुत खूब ||
आपकी संवेदनशीलता की प्रतिकृति है ये रचना , आभार .
जवाब देंहटाएं" सियासती दांव पेंचों में शब्द सिसक के रह गये।"- शव्द को बलवंती करती शब्द ! अतिभाव पूर्ण
जवाब देंहटाएं"उड़ान मारते आसमां में देखा जो परिन्दों को
जवाब देंहटाएंपिंजरे में बन्द पंछी से फ़ड़फ़ड़ा के रह गये।"
खूबसूरत सवेंदनशील रचना..
जवाब देंहटाएंजल रहे हैं आशियाने हंस रहे हैं मयखाने
जवाब देंहटाएंसियासती दांव पेंचों में शब्द सिसक के रह गये।.....बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।बधाई..
मत लगाओ बन्दिशें इतनी ज्यादा
जवाब देंहटाएंहम गुजारिश पर गुजारिशें ही करते रह गये।
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
हार्दिक शुभकामनायें !
bahut aakrosh bhari samvedansheel rachna.
जवाब देंहटाएंsunder bhav
जवाब देंहटाएंबड़ा मुश्किल मन ही मन में इसका हल ढूंढ़ते रह गये।
भरोसा भी करें तो कैसे और किस पर हम सफ़ेदपोश में छुपे चेहरे असल दंग हम रह गये। उड़ान मारते आसमां में देखा जो परिन्दों को पिंजरे में बन्द पंछी से फ़ड़फ़ड़ा के रह गये।
मत लगाओ बन्दिशें इतनी ज्यादा हम गुजारिश पर गुजारिशें ही करते रह गये।
kya kahne in shbdon ke
rachana
पूनम जी नमस्कार। आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा। जल रहे हैं आशियाने हंस रहे हैं मयखाने
जवाब देंहटाएंसियासती दांव पेंचों में शब्द सिसक के रह गये। बहुत सुन्दर लाइनें है।
बहुत बेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंकुछ रचनाएं ऐसी होती हैं, जिसे बार बार पढने का मन होता है।
जवाब देंहटाएंकाफी दिनों से आप की कोई खबर नहीं है।
सन्नाटा पसरा रहता
जवाब देंहटाएंसहमी रहती गली गली
हम झरोखे से अपने
झांक के ही रह गये।
एक एक शब्द मानो सिसक रहा हो.
अनुपम गहन और मार्मिक प्रस्तुति.
आपके झरोखे का यह दृश्य भी
अदभूत है,दिल को छूता है.
सुन्दर हृदयस्पर्शी प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
मुझे आपके ब्लॉग पर आने में देरी हुई
इसके लिए क्षमा चाहता हूँ.
शब्द, उनका हौसला और मजबूरी सब कुछ कहती कविता ।
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