गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

दर्पण


दर्पण जो आज देखा वो मुंह चिढ़ा रहा था

चेहरे की झुर्रियों से बीती उम्र बता रहा था।

कब कैसे कैसे वक्त सारा निकल गया था

कुछ याद कर रहा था मैं कुछ वो दिला रहा था।

नटखट भोला भाला बचपन कितना अच्छा होता था

जब बाहों में मां के झूले झूला करता था।

धमा चौकड़ी संग अल्हड़पन कब पीछे छूट गया था

इस आपाधापी के जीवन में वो भी बिसर गया था।

कब उड़ाने मारीं हमने कब सपना मीठा देखा था

सच में सब कुछ वो बहुत रुला रहा था।

कब हंसे कब रोया हमने क्या कैसे पाया था

गिनती वो सारी की सारी करा रहा था।

मैं रो रहा था और वो मुझ पर हंस रहा था

क्यों नहीं हमने सबको रक्खा सहेजे था।

पछता के अब क्या वो ये जता रहा था

जो बीता वो ना लौटे वो यही समझा रहा था।

अब समझ रहा था मैं जो वो कहना चाह रहा था

आने वाले पल के लिये वो तैयार करा रहा था।

000

पूनम


37 टिप्‍पणियां:

  1. ये दर्पण है ही ऐसा ....आप न यकीन कीजिये उसपर.

    जवाब देंहटाएं
  2. अब समझ रहा था मैं जो वो कहना चाह रहा था

    आने वाले पल के लिये वो तैयार करा रहा था।

    ...सच में दर्पण बहुत कुछ दिखा देता है....बहुत सुन्दर सारगर्भित अभिव्यक्ति...विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं !

    जवाब देंहटाएं
  3. विजयदशमी की आपको हार्दिक शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  4. दर्पण तो दर्पण है जो अक्स हमे दिखाता है
    आपाधापी के जीवन की सच्चाई हमे बताता है
    बचपन से अब तक ,कब कैसे निकल गया,
    दर्पण, गुजरे पल का,एहसास हमे करता है...

    विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाए...

    जवाब देंहटाएं
  5. सच में दर्पण जीवन की सच्चाई को दिखता है
    सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  6. आईना झूठ नहीं बोलता, वह बता देता है हमारी जीवन की वास्तविकता को और हमें भी स्वीकार करना होगा उसके निर्णय को ...गहरे भावों का सम्प्रेषण किया है आपने इस रचना में ....!

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है आपकी,पूनम जी.

    श्रीमद्भगवद्गीता का यह श्लोक याद आ रहा है.

    'देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा
    तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति'

    जैसे इस देह में बालकपन,जवानी और वृद्धावस्था
    होती है,वैसे ही अन्य शरीर की प्राप्ति होती है.
    उस विषय में धीर पुरुष मोहित नहीं होता.

    आपकी अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत
    आभार.

    विजयदशमी पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ.

    जवाब देंहटाएं
  8. कभी-कभी खुद को पहचानने के लिए हमें दर्पण में झांक लेना ही चाहिए।
    विजय दशमी की शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  9. कल 08/10/2011 को आपकी कोई पोस्ट!
    नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  10. .पूनम जी, दर्पण की एक खास विशेषता यह होती है कि वह कभी झूठ नही बोलता ,. इसलिए हम सबको जो चिर शाश्वत सत्य है उसे विधाता की देन समझ कर सहर्ष स्वीकार कर लेना चाहिए। मेरे नए पोस्ट पर आपका आमंत्रण है । पोस्ट अच्छा लगा ।
    धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  11. दर्पण कहता सच सच....
    सुन्दर/अनोखी रचना....
    विजयादशमी की सादर बधाईयाँ...

    जवाब देंहटाएं
  12. दर्पण सब समझा देता है ...
    गहन अभिव्यक्ति !

    जवाब देंहटाएं
  13. bahut kuch bata deta hai ye aaina..
    sundar abhiwykti..
    jai hind jai bharat

    जवाब देंहटाएं
  14. JHOOTH KAHTAA NAHEEN AAINAA /

    MAUN RAHTAA NAHEEN AAINAA /
    RAAJ SAARE PARAT DAR PARAT KHOL DE ,

    JHOOTH , KAHTAA NAHEEN AAINAA //

    BADHAYEE, AAPKEE PRASTUTI NE
    MERI GAZAL KE MATLE AUR SHER KEE
    YAADDILAA DEE .MERE VRINDAAVAN BHEE AAIYE .

    जवाब देंहटाएं
  15. दर्पण सच ही दिखाता है.. अब ये बात और है कि हम उसको आभासी प्रतिबिम्ब कहते हैं विज्ञान में!!

    जवाब देंहटाएं
  16. आईना ही है जो हमें बीते वख्त की याद दिलाता है,अब यह ख्याल अगर समाज के संदर्भ में देखें तो बस इतना ही कहते बनता है कि:

    कोई ऐसा शहर बनाओ यारों,
    हर तरफ़ आईने लगाओ यारों!

    नींद में खो गये हैं ज़मीर सभी,
    शोर करो इन को जगाओ यारों!

    जवाब देंहटाएं
  17. दर्पण जो आज देखा वो मुंह चिढ़ा रहा था
    चेहरे की झुर्रियों से बीती उम्र बता रहा था।

    कब कैसे कैसे वक्त सारा निकल गया था
    कुछ याद कर रहा था मैं कुछ वो दिला रहा था।

    जीवन की इस आपाधापी में उम्र कहाँ गुजर जाती है पता ही नहीं लगता. सुंदर प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं
  18. दर्पण जो आज देखा वो मुंह चिढ़ा रहा था
    चेहरे की झुर्रियों से बीती उम्र बता रहा था।

    कब कैसे कैसे वक्त सारा निकल गया था
    कुछ याद कर रहा था मैं कुछ वो दिला रहा था।
    बहुत ही अच्‍छी रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  19. क्या क्या याद दिला दिया आपकी इस रचना ने ....
    शुभकामनायें आपको !

    जवाब देंहटाएं
  20. बहुत सुन्दर. दर्पण सच ही बोलता है पूनम जी :)

    जवाब देंहटाएं
  21. कभी कभी, वक़्त के थपेड़ो में धुन्दले हुए दर्पण को साफ़ कर के उसमे ज़रूर झांक लेना चाहिए... वह अकेले एक ऐसी चीज़ है जो कुछ नहीं कह के भी सब कुछ कह जाता है ... बहुत सुन्दर प्रस्तुति पूनमजी, युही लिखते रहना. :)

    जवाब देंहटाएं
  22. सुन्दर चित्र के साथ बेहद ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! पूनम जी आपकी लेखनी को सलाम!

    जवाब देंहटाएं
  23. दर्पण झूठ न बोले!!
    सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं