दर्पण जो आज देखा वो मुंह चिढ़ा रहा था
चेहरे की झुर्रियों से बीती उम्र बता रहा था।
कब कैसे कैसे वक्त सारा निकल गया था
कुछ याद कर रहा था मैं कुछ वो दिला रहा था।
नटखट भोला भाला बचपन कितना अच्छा होता था
जब बाहों में मां के झूले झूला करता था।
धमा चौकड़ी संग अल्हड़पन कब पीछे छूट गया था
इस आपाधापी के जीवन में वो भी बिसर गया था।
कब उड़ाने मारीं हमने कब सपना मीठा देखा था
सच में सब कुछ वो बहुत रुला रहा था।
कब हंसे कब रोया हमने क्या कैसे पाया था
गिनती वो सारी की सारी करा रहा था।
मैं रो रहा था और वो मुझ पर हंस रहा था
क्यों नहीं हमने सबको रक्खा सहेजे था।
पछता के अब क्या वो ये जता रहा था
जो बीता वो ना लौटे वो यही समझा रहा था।
अब समझ रहा था मैं जो वो कहना चाह रहा था
आने वाले पल के लिये वो तैयार करा रहा था।
000
पूनम
ये दर्पण है ही ऐसा ....आप न यकीन कीजिये उसपर.
जवाब देंहटाएंअब समझ रहा था मैं जो वो कहना चाह रहा था
जवाब देंहटाएंआने वाले पल के लिये वो तैयार करा रहा था।
...सच में दर्पण बहुत कुछ दिखा देता है....बहुत सुन्दर सारगर्भित अभिव्यक्ति...विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं !
विजयदशमी की आपको हार्दिक शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंदर्पण तो दर्पण है जो अक्स हमे दिखाता है
जवाब देंहटाएंआपाधापी के जीवन की सच्चाई हमे बताता है
बचपन से अब तक ,कब कैसे निकल गया,
दर्पण, गुजरे पल का,एहसास हमे करता है...
विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाए...
दर्पण झूठ न बोले।
जवाब देंहटाएंसच में दर्पण जीवन की सच्चाई को दिखता है
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
आईना झूठ नहीं बोलता, वह बता देता है हमारी जीवन की वास्तविकता को और हमें भी स्वीकार करना होगा उसके निर्णय को ...गहरे भावों का सम्प्रेषण किया है आपने इस रचना में ....!
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है आपकी,पूनम जी.
जवाब देंहटाएंश्रीमद्भगवद्गीता का यह श्लोक याद आ रहा है.
'देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति'
जैसे इस देह में बालकपन,जवानी और वृद्धावस्था
होती है,वैसे ही अन्य शरीर की प्राप्ति होती है.
उस विषय में धीर पुरुष मोहित नहीं होता.
आपकी अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत
आभार.
विजयदशमी पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ.
कभी-कभी खुद को पहचानने के लिए हमें दर्पण में झांक लेना ही चाहिए।
जवाब देंहटाएंविजय दशमी की शुभकामनाएं।
kitani sundar aur komal abhivayakti hai...
जवाब देंहटाएंsundar rachna...
जवाब देंहटाएंsacch ka darpan...anoothi abhivyakti..
जवाब देंहटाएंविजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंकल 08/10/2011 को आपकी कोई पोस्ट!
जवाब देंहटाएंनयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद
बहुत सुंदर रचना,
जवाब देंहटाएंक्या कहने.
.पूनम जी, दर्पण की एक खास विशेषता यह होती है कि वह कभी झूठ नही बोलता ,. इसलिए हम सबको जो चिर शाश्वत सत्य है उसे विधाता की देन समझ कर सहर्ष स्वीकार कर लेना चाहिए। मेरे नए पोस्ट पर आपका आमंत्रण है । पोस्ट अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ।
bahut hi gahan bhaw
जवाब देंहटाएंदर्पण कहता सच सच....
जवाब देंहटाएंसुन्दर/अनोखी रचना....
विजयादशमी की सादर बधाईयाँ...
Darpan hamesha saty kahta hai.aur usse saty apki abhivyakti...
जवाब देंहटाएंदर्पण सब समझा देता है ...
जवाब देंहटाएंगहन अभिव्यक्ति !
bahut kuch bata deta hai ye aaina..
जवाब देंहटाएंsundar abhiwykti..
jai hind jai bharat
JHOOTH KAHTAA NAHEEN AAINAA /
जवाब देंहटाएंMAUN RAHTAA NAHEEN AAINAA /
RAAJ SAARE PARAT DAR PARAT KHOL DE ,
JHOOTH , KAHTAA NAHEEN AAINAA //
BADHAYEE, AAPKEE PRASTUTI NE
MERI GAZAL KE MATLE AUR SHER KEE
YAADDILAA DEE .MERE VRINDAAVAN BHEE AAIYE .
दर्पण सच ही दिखाता है.. अब ये बात और है कि हम उसको आभासी प्रतिबिम्ब कहते हैं विज्ञान में!!
जवाब देंहटाएंdarpan jhooth na bole......bahut sundar rachana
जवाब देंहटाएंआईना ही है जो हमें बीते वख्त की याद दिलाता है,अब यह ख्याल अगर समाज के संदर्भ में देखें तो बस इतना ही कहते बनता है कि:
जवाब देंहटाएंकोई ऐसा शहर बनाओ यारों,
हर तरफ़ आईने लगाओ यारों!
नींद में खो गये हैं ज़मीर सभी,
शोर करो इन को जगाओ यारों!
दर्पण जो आज देखा वो मुंह चिढ़ा रहा था
जवाब देंहटाएंचेहरे की झुर्रियों से बीती उम्र बता रहा था।
कब कैसे कैसे वक्त सारा निकल गया था
कुछ याद कर रहा था मैं कुछ वो दिला रहा था।
जीवन की इस आपाधापी में उम्र कहाँ गुजर जाती है पता ही नहीं लगता. सुंदर प्रस्तुति.
दर्पण जो आज देखा वो मुंह चिढ़ा रहा था
जवाब देंहटाएंचेहरे की झुर्रियों से बीती उम्र बता रहा था।
कब कैसे कैसे वक्त सारा निकल गया था
कुछ याद कर रहा था मैं कुछ वो दिला रहा था।
बहुत ही अच्छी रचना ।
क्या क्या याद दिला दिया आपकी इस रचना ने ....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
बहुत सुन्दर. दर्पण सच ही बोलता है पूनम जी :)
जवाब देंहटाएंकभी कभी, वक़्त के थपेड़ो में धुन्दले हुए दर्पण को साफ़ कर के उसमे ज़रूर झांक लेना चाहिए... वह अकेले एक ऐसी चीज़ है जो कुछ नहीं कह के भी सब कुछ कह जाता है ... बहुत सुन्दर प्रस्तुति पूनमजी, युही लिखते रहना. :)
जवाब देंहटाएंदर्पण का सच
जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्र के साथ बेहद ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! पूनम जी आपकी लेखनी को सलाम!
जवाब देंहटाएंदर्पण झूठ न बोले!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
बहुत अच्छी रचना,बधाई!
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचना,
जवाब देंहटाएंसाभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
gahri sachchayee.....
जवाब देंहटाएंbadia rachna........................
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