घर
घर की ये घण्टी बजाकर
मूक
बधिर बन के आते
धर्म
का पर्चा दिखा दिखा कर
चंदे
की हैं भीख मांगते।
इनसे
बढ़कर वो और निराले
जो चंदन
तिलक लगा के आते
हाथ
लिये थाल आरती का
भगवान
के नाम पर लूट मचाते।
ललाट
देख देख कर आपका
अपना
प्रवचन चालू कर देते
झूठी
सच्ची बात बता कर
भूत
भविष्य वर्तमान बताते।
अपनी
बातों में उलझा कर
लोगों
को ये हैं भरमाते
दिमाग
न माने बातें इनकी
पर
दिल ही दिल में हम डरते।
धन
दें इनको मन नहीं करता
न
दें तो ईश्वर से डर लगता
शिक्षित
हैं पर अंधविश्वास में जकड़े
क्यों
हम सब झूठी बातों से डरते।
अपना
उल्लू सीधा करके
लोगों
पर अपना रंग चढ़ाते
हम
भी तो इनकी बातों में आ जाते
कैसे
हमको ये पाठ पढ़ाते।
उन
पैसों का चंदा लेकर
ये
गुटखा देशी ठर्रा पीते
कौन
सच्चा कौन है झूठा
ये
समझ नहीं हम हैं पाते।
रोज
का इनका धंधा है
इसमें
इनका क्या है बिगड़ता
हमीं
बहकावे में भी आकर
खुद
क्यों लुटते और लुटाते।
इनसे
तो वो बेहतर होते
जो
मेहनत मजदूरी करके
तन
का पसीना बहा बहा कर
अपने
परिवार का पालन करते।
हृष्ट
पुष्ट ये रहते तन से
पर
इनको शरम न आती है
नए
नए हथकण्डे अपना कर
रोज
कमाई ये हैं करते।
0000
पूनम
34 टिप्पणियां:
सच कहा पूनम जी.....
ढोंगी बाबाओं को दान दिया नहीं जाता और न दो तो भय भी लगता है...........
सार्थक रचना.......
अनु
हृष्ट पुष्ट ये रहते तन से
पर इनको शरम न आती है
नए नए हथकण्डे अपना कर
रोज कमाई ये हैं करते।
यह भावनाएं सभी की हैं. अच्छा विषय लिया है. दान किसी सुपात्र को न दिया जाये तो वह व्यर्थ है. ऐसे ढोंगियों को तो बिलकुल नहीं.
सार्थक कविता.
आभार.
देश में धर्म के नाम पर जितने कर्मकांडी और ढोंगी बाबा घूमते फिरते हैं , उनके द्वारा लोगों के साथ जो बर्ताव किया जाता है किस तरह से आम व्यक्ति को लूटा जाता है एक स्पष्ट चित्र और वास्तविक स्थ्तित का रेखांकन आपने अपनी कविता के माध्यम से किया है ....!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ढोंगियों ने सचमुच के साधुओं को बदनाम कर दिया है..
सच मे ऐसे लोगों ने नाक मे दम कर रखा है। मै तो इन्य्हें बाहर से ही भगा देती हूँ। अच्छी रचना।
सच कहा है ऐसे लोग ही आस्था के नाम पे धब्बा लगाते हैं ... और समाज में अच्छे लोगों का नाम भी बदनाम करते हैं .. ...
पूनम जी ! आज कल इन बाबाओ की वजह से अच्छे -बुरे की पहचान बड़ी मुश्किल हो गयी है !सुन्दर कविता !
बढिया
बहुत सुंदर
जागरूकता देती रचना ..
शुभकामनायें ....
इस पढ़े लिखे समाज कर करारा व्यंग्य ..
बस सब से ये ही कहंगे की ऐसे साधुओं से बच्चो ...ये बस लूट के इरादे से ही आते हैं
दूसरे की जेब से पैसा निकलवाना एक कला है...चाहे कोई खुश होके दे या डर के...ये भी हुनर है...
बेहतरीन सुंदर रचना,,,,, ,
MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: ब्याह रचाने के लिये,,,,,
सटीक पंक्तियाँ
सही और ग़लत का फ़र्क तो पहचानना ही मुश्किल हो जाता है।
बेहतर !
खरी खरी कहती सुन्दर रचना...
सादर.
इन बाबाओं से डरने की आदत को सबसे पहले छोड़ना चाहिए. ग़रीबों का हाय भ्रष्ट लोगों को नहीं लगती तो ये बाबा क्या बिगाड़ लेंगे. आपकी कविता सामाजिक दृष्टि से बहुत रचनात्मक और सकारात्मक है.
सच कहा पूनम जी .. सुन्दर प्रस्तुति!
हम भी बाबा बनने के चक्कर में हैं ...
यथार्थ को दर्शाती जागरूक करती सार्थक रचना यही आज का सच है पूनम जी पढे लिखे होकर भी हम अंधविश्वास का शिकार हैं तभी आज राधे माँ और निर्मल बाबा जैसों का बोल बाला है।
ढोंगी बाबाओं को हम ही बढावा देते हैं.
हमें अपने भय पर विजय प्राप्त करनी होगी.
भय का कारण अज्ञान है,इसलिए ज्ञान द्वारा अज्ञान
को दूर करना होगा.
असतो मा सद्गमय
तमसो मा ज्योतिर्गमय
सुन्दर सीधी सच्ची प्रस्तुति के लिए आभार,पूनम जी.
शिव जब जटाधारी बाबा बनकर बाल कृष्ण से
मिलने आये थे, तो यशोदा जी उनका रूप देख कर
डर गयी थीं.अधिक प्रेम में भी ऐसा ही होता है.
बहुत ही सार्थक व सटीक लेखन ... आभार इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए ।
हृष्ट पुष्ट ये रहते तन से
पर इनको शरम न आती है
नए नए हथकण्डे अपना कर
रोज कमाई ये हैं करते।
....आज के ढोंगी बाबाओं और हमारे अन्धविश्वास का सटीक चित्रण...अगर हम इनका पालना बंद करके, किसी असमर्थ की सहायता करें तो बेहतर होगा. बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...
हृष्ट पुष्ट ये रहते तन से
पर इनको शरम न आती है
नए नए हथकण्डे अपना कर
रोज कमाई ये हैं करते।
सच कह रही हैं । हमें ऐसे लोगों के लिये दरवाज़ा खोलना ही नही चाहिये ।
इसी पाप-पुण्य के चक्कर में
बार-बार अपनी जेब कटवाते......
सटीक लेखन ...
शुभकामनाएँ!
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ।
उन पैसों का चंदा लेकर
ये गुटखा देशी ठर्रा पीते
कौन सच्चा कौन है झूठा
ये समझ नहीं हम हैं पाते।
bilkul samayikata ke sath sath aj ke babaon pr sarthak tippani ki hai ap ne ....bahut hi achchhi rachana ...sadar abhar poonam ji .
निर्मल बाबा पेट्रोलियम हैं तो ये बहरूपिए क्रूड आयल है .लघु कुरूप हैं निर्मलों का ये .
निर्मल बाबा पेट्रोलियम हैं तो ये बहरूपिए क्रूड आयल है .लघु कुरूप हैं निर्मलों का ये .
पूनम जी, सच कहा इन ढोंगी बाबाओं ने समाज में धर्म के प्रति बड़ा अविश्वास बढाया है...
हृष्ट पुष्ट ये रहते तन से पर इनको शरम न आती है नए नए हथकण्डे अपना कर रोज कमाई ये हैं करते।
क्या पता आपकी कविता पढ़ इन्हें शर्म आ जाये .....:))
मेहनत से डरते हैं ये,
ढोंग तभी करते हैं ये।
अच्छी रचना।
hamare aas pas ka 1 ubharta sach....
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