अब मेरे बगीचे में
नहीं आता है
चिड़ियों का हुजूम
दाना चुगने के लिये।
अब भोर की बेला में
नहीं सुनाई देती
उनकी चीं चीं चूं चूं
उनकी चहचहाहट।
अब नजरें तरस गयी हैं
उन्हें देखने के लिए
पानी भरे अधफ़ूटे मटके में उनका
फ़ुदक फ़ुदक कर
अपने पर फ़ड़फ़ड़ा नहाना
और अपने पंखों को
फ़ैलाकर सुखाना।
उनका वो लुका छुपी
का खेल
एक रोमांच सा लगता था
जिनको देख हम भी
बन जाते थे बच्चे।
घने पौधों के बीच
उनका घोंसला बनाना
और फ़िर
हर वक्त अपने घोंसले के
चारों ओर
बड़ी सजगता से
निगरानी करना।
घोंसले के पास
किसी को देख
भयातुर स्वरों में चीं चीं
की करुण पुकार
उनकी हरकतें
आज भी बहुत याद आती हैं
पर क्या करें वो भी
हमने ही तो भौतिकता की
अंधी दौड़ में उन्हें
रास्ता बदलने पर
मजबूर कर दिया।
क्या कोई उन्हें
फ़िर से मना कर
हमारे बगीचे में
वापस नहीं ला सकता।
000
पूनम
हमने ही तो भौतिकता की
जवाब देंहटाएंअंधी दौड़ में उन्हें
रास्ता बदलने पर
मजबूर कर दिया।
संवेदनशील विचार ....
अब उन्हें फिर मनाने की कोशिशें भी करनी होंगीं
मोनिका जी ठीक कहती हैं....हमने ही नाराज़ किया है हमें ही मनाना होगा...
जवाब देंहटाएंविचारणीय रचना...
अनु
भौतिकता की दौड में ,हमने किया मजबूर
जवाब देंहटाएंकोशिश गर मिलकर करें,लौट आयेगीं जरूर,,,,
RECENT POST ...: जिला अनुपपुर अपना,,,
monika ji se poori tarah sahmat.जनपद न्यायाधीश शामली :कैराना उपयुक्त स्थान
जवाब देंहटाएंsach me chidiyaon ka na aana sabhi ko khalta hai .sarthak post
जवाब देंहटाएंWORLD'S WOMAN BLOGGERS ASSOCIATION-JOIN THIS NOW
बड़ा ही गहरा प्रश्न उठाया है आपने..काश इसके उत्तर मिल पाते..
जवाब देंहटाएंBhaavpradhaan rachna.
जवाब देंहटाएंइसके जिम्मेदार हम खुद ही है ..
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
nice presentation....
जवाब देंहटाएंAabhar!
Mere blog pr padhare.
गहरा प्रश्न है ... इंसान की भूख ने ये सब कर्म किया है ... और अभी अगर वो चाहे तो ये सब वापस आ सकता है ... पर देर हों से पहले ...
जवाब देंहटाएंgahri abhivaykti....
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसुंदर !
पूछना पडे़गा चिडियों से अब
फिर शुरू करेंगी आना वो कब!
आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 25/08/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंmeri tippani spam ke havale...
जवाब देंहटाएंvikas kee keemat chukaa rahe hain ham
जवाब देंहटाएंविचारणीय रचना..
जवाब देंहटाएंचलो पेड़ लगाये
चिडियों को बुलाये..
:-)
संवेदनशील, विचारणीय रचना |
जवाब देंहटाएंवो चिड़ियाएँ अब रूठ गई हैं. नहीं लौटेंगी शहर के वातावरण में.
जवाब देंहटाएंइंसान ने अपने स्वार्थ की खातिर परिंदों को भी नहीं बख्शा .... मार्मिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंsahi kaha aapne aaj wah hoojom dekhne ko najre taras gayi hamen hi manana hoga
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
apki rachna soochne par majboor karti hai....
जवाब देंहटाएंसुंदर और काफी मासूम रचना।
जवाब देंहटाएंवाह खुबसूरत अति सुन्दर बधाई
जवाब देंहटाएं(अरुन =arunsblog.in)
संवेदनशील, विचारणीय रचना ......
जवाब देंहटाएंपोस्ट बहुत अच्छा लगा । धन्यवाद ।
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