शुक्रवार, 2 मई 2014

मौसी की चालाकी

बिल्ली ने ये मन में ठाना
चूहों को है सबक सिखाना
खेल चुके घण्टी का खेल
अब मुझको है शंख बजाना।

बहुत विचार किया मौसी ने
शुरू किया फ़िर गाना गाना
जंगल के सारे जीवों को
लगी सिखाने ढोल बजाना।

चूहों को भी शौक लगा फ़िर
क्यूं ना सीखें हम भी गाना
भूल गये मौसी का गुस्सा
लगे सीखने ढोल बजाना।

मौसी मन ही मन मुस्काई
चूहों पर खुब प्यार लुटाई
जितने चूहे आते जाते
मौसी खाके गाती गाना।
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पूनम श्रीवास्तव


8 टिप्‍पणियां:

  1. चूहा बिल्ली का खेल निराला

    बहुत सुंदर बाल रचना

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  2. चूहे ड़ाल ड़ाल
    तो बिल्ली भी पात पात

    बहुत सुन्दर पूनम जी,

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