घनन घनन अब बरसो बदरवा
धरती का हियरा तड़पत है
खेतिहर की अंखियां हरदम
अंसुअन से अब भीगत हैं।
राह निहारे पंख पसारे
पाखी एकटक देखत हैं
अब बरसोगे तब बरसोगे
मन में आस लगावत हैं।
बिन पानी सब सूना सूना
जीव सभी अब भटकत हैं
दिखे पानी की एक बूंद
सब पूरी जान लगावत हैं।
बड़ी बेर भई बादल राजा
सावन सब कहां निहारत हैं
नैनन में अंसुअन भर भर के
सब अपनहि देह भिगोवत हैं।
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पूनम श्रीवास्तव
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंइधर पानी गिरा उधर प्रकृति की हरियाली मन को हरा-भरा कर देती है ..
बढ़िया
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सामयिक रचना
जवाब देंहटाएंवाह ... स्वागत है बरखा का ....
जवाब देंहटाएंhttp://bulletinofblog.blogspot.in/2016/09/4.html
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंMOUTH WATERING RECIPES OF INDIA
बहुत सुन्दर रचना Ad Posting Job
जवाब देंहटाएंशुन्दर शब्द रचना
जवाब देंहटाएंhttp://savanxxx.blogspot.in