बुधवार, 4 फ़रवरी 2009

समय


दरवाजे की झिरी से
देखने की कोशिश करती हूँ
आती पदचाप को
कानों से सुनने को आतुर
दिल की धड़कन द्वारा
उसको गिनने की कोशिश करती हूँ
हाथ बढ़ा कर
उसे पकड़ लेना चाहती हूँ
पर अपने को
पाती हूँ लाचार
क्योंकि वो समय है।
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पूनम

7 टिप्‍पणियां:

  1. रेत की तरह हाथों से फिसल जाता है,
    पर कुछ मर्म दे जाता है........
    जिसे आपने खूबसूरती से लिखा है.....

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  2. वक्त ही एक ऐसी चीज़ है इस कायनात में,
    जो न रुक सका है न कभी रुकेगा

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  3. सही है, वक्त को कौन थाम पाया है। बढ़िया रचना।

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  4. समय ! बिल्कुल सही अंदाज़ में पेश किया है.....u r not only a simple house wife . u r a good thinker...isi tarah apne soch ko hamare saath bante rahe....ham yuvao ko aaplogo ki bahut jarurat hai

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