रविवार, 3 अक्तूबर 2010

दंश


कभी कभी जमीन पर

रेंगने वाले

कीड़े के डंक भी

इतने घातक नहीं होते

जितने कि जहरीले

शब्दों के व्यंग्य बाण ।

जो इंसान के मानस पटल

पर इस तरह

अंकित हो कर उसे

अंदर ही अंदर

इस कदर

खोखला बना देते हैं

कि वह

तिल तिल कर

जलने को

मजबूर हो जाता है

एक जलती हुई

चिता के समान ।

000

पूनम

30 टिप्‍पणियां:

  1. bahut hi khubsurat rachna....
    behtareen...
    मेरे ब्लॉग पर इस बार ....
    क्या बांटना चाहेंगी हमसे आपकी रचनायें...
    अपनी टिप्पणी ज़रूर दें...

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  2. ना सिर्फ पूनम जी, बल्कि मेरे जो भी ब्लॉग मित्र इस टिप्पणी को पढ़ें अपनी राय ज़रूर दें....

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  3. तिक्त शब्दों से अधिक विषैला और कुछ नहीं।

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  4. poonam sahee baat hai par meree dadee hamesha kahtee thee ki sukhee insaan vo hee hai jo


    JO GUM KHATA HAI..............( MAANSIK TOUR PAR )

    AUR

    JO KUM KHATA HAI.............(SWASTHY KEE DRUSHTI SE )

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  5. और ज़ुबान से निकला शब्द वापस भी नही निकलता .... इसलिए हमेशा मीठा और अच्छा ही बोलना चाहिए ....
    बहुत अच्छी रचना है पूनम जी ....

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  6. सत्यवचन ... नुकीले नश्तर वो घाव नहीं दे सकते हैं जो कटु वचन दे जाते हैं ...

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  7. आप से सहमत हुं, ओर फ़िर ऎसे बाण बहुत देर तक दर्द देते है, बहुत सुन्दर प्रस्तुति। धन्यवाद

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  8. sach...shabdon ke baan...man ko ghaayal bana kar choodte hain...jiska ghaav kabhi nahi bharta

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  9. इसीलिये शब्दों का उपयोग बहुत सोच समझ कर करना चाहिये ।

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  10. कभी कभी ऐसा भी होता है...बढ़िया रचना..बधाई

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  11. पूनम जी बहुत ही सरल शब्दों में साफ़ बात कह दी.

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  12. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  13. बहुत बेहतरीन रचना पूनम जी बड़ी बात कम शब्दों में कह दी आपने और आपकी बेटी अनुष्का

    भी आपको याद करती है ...आंटी भूल गई क्या ??

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  14. बिलकुल सही कहा आपने ...यह बेहद कष्ट दायक होते हैं !

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  15. बिलकुल सही कहा। वाणी दंश तो जीवन भर पीछा नही छोदते। बहुत अच्छी लगी आपकी रचना। बधाई। कृ्प्या मेरा ये ब्लाग भी देखें
    www.veeranchalgatha.blogspot.com
    dhanyavaad|

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  16. बिल्कुल ठीक .एसी वानी बोलिये मन का आपा खोय /औरन को शीतल करे,आपहु शीतल होय

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  17. पूनम जी
    नमस्ते
    मै बाहर होने क़े करण आपकी कविता पर कमेन्ट में देर कर रहा हू आपकी रचना तो कबीले तारीफ होती ही है आपकी कबिता की विशेषता है की कबिताये भाव व अर्थ पूर्ण होती है .
    पिछली पोस्ट पर हमारी प्रतिक्रिया पर हमने दुःख पहुचाया क्षमा प्रार्थी हू अपना समाज पुरुष प्रधान होने क़े करण बंश लडको क़े द्वारा चलता है लकिन लडकियों क़ा महत्वा काम नहीं है समाज में बुराइयों को समाप्त करना ही होगा बीच क़े काल में ये बाते जरुर थी कुछ स्थानों पर आज भी है मै आपसे सहमत हू मै स्वाभाविक रूप से अपने धर्म ,संस्कृति पर सकारात्मक सोचने क़े करण मैंने ऐसा लिखा --- लेकिन आपकी बात को मै नकार नहीं सकता ,अच्छे गीत व कविता लिखने क़े लिए ---बहुत-बहुत धन्यवाद.

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  18. बहुत ही खुबसूरत रचना...अपनी कलम का जादू यूँ ही बनाये रखें..

    मेरे ब्लॉग पर मेरी नयी कविता संघर्ष

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  19. didi
    in jahreele vyngyvano se apne aap ko bchane ke liye hme apni ichchhashkti ko mjboot krna hi hoga .tb ek vkt aisa jroor aayega jb dnsh ko chubhne ke liye ijazt ki drkar hogi .kshma yachna shit ---rajwant raj .

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