शनिवार, 23 जुलाई 2011

सावन की छ्टा


सावन की छाई प्यारी छ्टा

मदमस्त पवन घनघोर घटा

बरसो रे मतवारी बदरिया

जरा झूम बरसो रे

बरसो रे---------------।

नील गगन में ताने चादर

अपनी काली पीली भूरी

कभी गरज गरज कभी कड़क कड़क

बिजली संग तुम चमकी।

बरसो रे---------------।

बरसो तो ऐसे बरसो

कि तन मन सबका भीजे

जाने कब से प्यासी

धरती की भी प्यास बुझे।

बरसो रे---------------।

कभी करती जोरों की बारिश

कभी रिमझिम सी फ़ुहार

कहीं प्रियतम संग हंसी ठिठोली

कहीं बिन पिया है जिया उदास।

बरसो रे-----------------।

आसमान में जब तब तुम

करती लुका छिपी का खेल

अब मानो बतिया मेरी

धरती संग तुम कर लो मेल।

बरसो रे-------------------।

चंचल शोख हवाओं संग

तुम फ़िरती फ़िरती इधर उधर

तुझे समाने को सीने में

धरा खड़ी बाहें पसार।

बरसो रे-----------।

बूंद बूंद बन कर जब

पत्तों से धरती पर टपकी

रूप सलोना देख तुम्हारा

मन की बांछें खिल उठीं।

बरसो रे---------------।

झूम के लाई ठंडी बयार

कोयल भी बोले कुहू कुहू

नाचे मोर दादुर चातक

पपीहा भी गाये पिहू पिहू।

बरसो रे---------------।

हरी चूड़ियां ओढ़े हरी चुनरिया

गोरी के मन भावे सावन

मंदिर घर और शिवालय में

गूंज रहा भोले का कीर्तन।

बरसो रे--------।

कितना तेरा रूप सुहाना

नहीं बनाना इसको विकराल

कहीं पे छाये खुशहाली

और कहीं जीना हो मुहाल।

बरसो रे--------------।

000

पूनम

40 टिप्‍पणियां:

  1. savan me aaapki is prastuti ne aur bhi rang bhar iska aanand do-guna kar diya.aabhar

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  2. saavan ke mausam me itni sundar kavita...antarang pura ka pura bheeg gaya...bhut badhiya..thnks

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  3. सुन्दर सावनी रचना , सुन्दर गीत

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  4. बरसो तो ऐसे बरसो

    कि तन मन सबका भीजे

    जाने कब से प्यासी

    धरती की भी प्यास बुझे।


    सावन में ऐसी मस्त मधुर प्रस्तुति
    मन को मगन कर रही है.अंत में
    यह कहना कि

    कितना तेरा रूप सुहाना
    नहीं बनाना इनको विकराल कहीं पे

    से आपके कोमल हृदय की झलक दिखलाई
    पड़ रही है.
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.

    मेरी नई पोस्ट पर आपका इंतजार है.

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  5. सावन को उतार दिया शब्दों में ..खूबसूरत रचना

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  6. बरसो तो ऐसे बरसो
    कि तन मन सबका भीजे
    जाने कब से प्यासी
    धरती की भी प्यास बुझे ...

    बहुत खूब ... सावन तो जब जब आता है धरती की प्यास बुझाने ही आता है ... लाजवाब रचना ...

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  7. बड़ी प्यारी छटा है सावन की
    सुंदर ........

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  8. बरसो तो ऐसे बरसो
    कि तन मन सबका भीजे
    जाने कब से प्यासी
    धरती की भी प्यास बुझे ...

    सावन में बारिस की बूंदों की तरह तन मन को भिगोती बहुत सुन्दर प्रस्तुति..आभार

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  9. सावन की रिमझिमी फ़ुहारों की अद्भुत छटा बिखेरती सुंदर प्रस्तुति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  10. बड़ा प्यारा लगा यह स्वागत गीत ! वर्षा ऋतु की छटा ही अलग है ...
    शुभकामनायें !!

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  11. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग इस ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो हमारा भी प्रयास सफल होगा!

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  12. सावन की बरसती फुहारों से मनमोहक कविता।

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  13. दिल्ली में हूं, लेकिन सावन के दिनों में अपने घर मिर्जापुर की याद आती है, जहां लोग खूब कजरी गाते हैं।

    अरे रामा कृष्ण बने मनुहारी
    कि अंगने आएं हो हरी.........

    बहुत सुंदर रचना
    आभार

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  14. बहुत सुन्दर, बहुत सामयिक। सावन छाया भी है सारी सीमायें तोड़ कर! निर्बाध!

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  15. बहुत सुंदर सावनी गीत । बरसो रे बरसो रे कहते कहते चेतावनी भी है कि कहर न बरपाना । आसा है भारत में खूब बरस रहे होंगे बादल ।

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  16. बहुत ख़ूबसूरत और मनमोहक गीत! मन प्रफुल्लित हो उठा चित्र देखकर और आपकी कविता पढ़कर!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
    http://seawave-babli.blogspot.com

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  17. बरसो तो ऐसे बरसो
    कि तन मन सबका भीजे
    जाने कब से प्यासी
    धरती की भी प्यास बुझे ...
    ..बहुत बढ़िया सन्देश देती सावन की अनोखी छटा बिखेरती मन को तर-ब -तर कर गयी...
    बहुत सुन्दर सावनी प्रस्तुति!

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  18. पूनम जी मजा आ गया सावन की रिमझिम में हरियाली में मन मोर सा नाच उठा लेकिन विरहिणी ने तो मन में ...जल्दी ही सावन के बदरा आ जाएँ ...
    सुंदर रचना कोमल भाव
    बधाई हो
    शुक्ल भ्रमर ५
    बाल झरोखा सत्यम की दुनिया

    कहीं प्रियतम संग हंसी ठिठोली

    कहीं बिन पिया है जिया उदास।

    बरसो रे-

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  19. कितना तेरा रूप सुहाना

    नहीं बनाना इसको विकराल

    कहीं पे छाये खुशहाली

    और कहीं जीना हो मुहाल।

    बरसो रे--------------।

    सावन का महीना ही तो मनभावन होता है।इस पर आपका पोस्ट तो कही उससे भी मनभावन निकला। अच्छी प्रस्तुति।

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  20. वाह...सावन साकार हो गया आपकी रचना में...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  21. इस बेहतरीन अभिव्‍यक्ति के लिये आपका आभार ।

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  22. सावन की मस्ती में मेरे ब्लॉग पर भी कुछ रस बरसा दीजियेगा.मेरी पोस्ट आपका कबसे बेसब्री से इंतजार कर रही है पूनम जी.

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  23. arey me apni tippani dhoondh rahi hun. kya abhi tak me aayi nahi yaha...padh to liya tha.

    bahut pyara sawan ka geet. man bheegne laga hai.:)

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  24. कल ,शनिवार (३०-७-११)को आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है ,नई -पुराणी हलचल पर ...कृपया अवश्य पधारें...!!

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