सावन की छाई प्यारी छ्टा
मदमस्त पवन घनघोर घटा
बरसो रे मतवारी बदरिया
जरा झूम बरसो रे।
बरसो रे---------------।
अपनी काली पीली भूरी
कभी गरज गरज कभी कड़क कड़क
बिजली संग तुम चमकी।
बरसो रे---------------।
कि तन मन सबका भीजे
जाने कब से प्यासी
धरती की भी प्यास बुझे।
बरसो रे---------------।
कभी रिमझिम सी फ़ुहार
कहीं प्रियतम संग हंसी ठिठोली
कहीं बिन पिया है जिया उदास।
बरसो रे-----------------।
करती लुका छिपी का खेल
अब मानो बतिया मेरी
धरती संग तुम कर लो मेल।
बरसो रे-------------------।
तुम फ़िरती फ़िरती इधर उधर
तुझे समाने को सीने में
धरा खड़ी बाहें पसार।
बरसो रे-----------।
पत्तों से धरती पर टपकी
रूप सलोना देख तुम्हारा
मन की बांछें खिल उठीं।
बरसो रे---------------।
झूम के लाई ठंडी बयार
कोयल भी बोले कुहू कुहू
नाचे मोर दादुर चातक
पपीहा भी गाये पिहू पिहू।
बरसो रे---------------।
हरी चूड़ियां ओढ़े हरी चुनरिया
गोरी के मन भावे सावन
मंदिर घर और शिवालय में
गूंज रहा भोले का कीर्तन।
बरसो रे--------।
नहीं बनाना इसको विकराल
कहीं पे छाये खुशहाली
और कहीं जीना हो मुहाल।
बरसो रे--------------।
000
पूनम
bahut sundar..bheege bheege sawan me bheegi bheegi kavita..
जवाब देंहटाएंसुंदर सावन गीत।
जवाब देंहटाएंsavan me aaapki is prastuti ne aur bhi rang bhar iska aanand do-guna kar diya.aabhar
जवाब देंहटाएंsaavan ke mausam me itni sundar kavita...antarang pura ka pura bheeg gaya...bhut badhiya..thnks
जवाब देंहटाएंsunder chhata bikherta ..sawan geet ....
जवाब देंहटाएंसुन्दर सावनी रचना , सुन्दर गीत
जवाब देंहटाएंबरसो तो ऐसे बरसो
जवाब देंहटाएंकि तन मन सबका भीजे
जाने कब से प्यासी
धरती की भी प्यास बुझे।
सावन में ऐसी मस्त मधुर प्रस्तुति
मन को मगन कर रही है.अंत में
यह कहना कि
कितना तेरा रूप सुहाना
नहीं बनाना इनको विकराल कहीं पे
से आपके कोमल हृदय की झलक दिखलाई
पड़ रही है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
मेरी नई पोस्ट पर आपका इंतजार है.
bhaut hi sunder...
जवाब देंहटाएंsawan ka geet man ko moh liya......
जवाब देंहटाएंसावन को उतार दिया शब्दों में ..खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंबरसो तो ऐसे बरसो
जवाब देंहटाएंकि तन मन सबका भीजे
जाने कब से प्यासी
धरती की भी प्यास बुझे ...
बहुत खूब ... सावन तो जब जब आता है धरती की प्यास बुझाने ही आता है ... लाजवाब रचना ...
बड़ी प्यारी छटा है सावन की
जवाब देंहटाएंसुंदर ........
बरसो तो ऐसे बरसो
जवाब देंहटाएंकि तन मन सबका भीजे
जाने कब से प्यासी
धरती की भी प्यास बुझे ...
सावन में बारिस की बूंदों की तरह तन मन को भिगोती बहुत सुन्दर प्रस्तुति..आभार
सावन की रिमझिमी फ़ुहारों की अद्भुत छटा बिखेरती सुंदर प्रस्तुति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
बड़ा प्यारा लगा यह स्वागत गीत ! वर्षा ऋतु की छटा ही अलग है ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
जवाब देंहटाएंयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग इस ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो हमारा भी प्रयास सफल होगा!
बरसात पर एक सुन्दर गीत ...वाह ..
जवाब देंहटाएंSawan ko sabdon me byan kar diya aapne.........jai bhole baba
जवाब देंहटाएंBahut sunadar rachna...rangon se bharpur..
जवाब देंहटाएंसावन की बरसती फुहारों से मनमोहक कविता।
जवाब देंहटाएंफुहारों का सुंदर गीत,
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
सावन पर अच्छी कविता.
जवाब देंहटाएंदिल्ली में हूं, लेकिन सावन के दिनों में अपने घर मिर्जापुर की याद आती है, जहां लोग खूब कजरी गाते हैं।
जवाब देंहटाएंअरे रामा कृष्ण बने मनुहारी
कि अंगने आएं हो हरी.........
बहुत सुंदर रचना
आभार
बहुत सुन्दर, बहुत सामयिक। सावन छाया भी है सारी सीमायें तोड़ कर! निर्बाध!
जवाब देंहटाएंtan ke saath saath man ko bhi bhigo gyi aapki ye sunder rachna
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सावनी गीत । बरसो रे बरसो रे कहते कहते चेतावनी भी है कि कहर न बरपाना । आसा है भारत में खूब बरस रहे होंगे बादल ।
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत और मनमोहक गीत! मन प्रफुल्लित हो उठा चित्र देखकर और आपकी कविता पढ़कर!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com
बरसो तो ऐसे बरसो
जवाब देंहटाएंकि तन मन सबका भीजे
जाने कब से प्यासी
धरती की भी प्यास बुझे ...
..बहुत बढ़िया सन्देश देती सावन की अनोखी छटा बिखेरती मन को तर-ब -तर कर गयी...
बहुत सुन्दर सावनी प्रस्तुति!
पूनम जी मजा आ गया सावन की रिमझिम में हरियाली में मन मोर सा नाच उठा लेकिन विरहिणी ने तो मन में ...जल्दी ही सावन के बदरा आ जाएँ ...
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना कोमल भाव
बधाई हो
शुक्ल भ्रमर ५
बाल झरोखा सत्यम की दुनिया
कहीं प्रियतम संग हंसी ठिठोली
कहीं बिन पिया है जिया उदास।
बरसो रे-
कितना तेरा रूप सुहाना
जवाब देंहटाएंनहीं बनाना इसको विकराल
कहीं पे छाये खुशहाली
और कहीं जीना हो मुहाल।
बरसो रे--------------।
सावन का महीना ही तो मनभावन होता है।इस पर आपका पोस्ट तो कही उससे भी मनभावन निकला। अच्छी प्रस्तुति।
वाह...सावन साकार हो गया आपकी रचना में...बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंनीरज
bahut pyari sawan ki chata brsayi aapne.badhai
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता .....बधाई
जवाब देंहटाएंइस बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये आपका आभार ।
जवाब देंहटाएंsunder savan geet.....
जवाब देंहटाएंसावन की मस्ती में मेरे ब्लॉग पर भी कुछ रस बरसा दीजियेगा.मेरी पोस्ट आपका कबसे बेसब्री से इंतजार कर रही है पूनम जी.
जवाब देंहटाएंarey me apni tippani dhoondh rahi hun. kya abhi tak me aayi nahi yaha...padh to liya tha.
जवाब देंहटाएंbahut pyara sawan ka geet. man bheegne laga hai.:)
कल ,शनिवार (३०-७-११)को आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है ,नई -पुराणी हलचल पर ...कृपया अवश्य पधारें...!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर सावन कविता .
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