सोमवार, 25 जून 2012

इन्तहां प्यार की---



हद से गुजर जाती है जब इन्तहां प्यार की
इक आह सी निकली इस दिल के गरीब से।

नजरे अंदाज उनके कुछ इस कदर बदले
अनजाने से बन निकलते वो मेरे करीब से।

हाले दिल जो गैरों ने सुना वो लेते तफ़री
अपने भी देखते हमको बड़े अजीब से।

ये दिल दौलत की दुनिया होती जब तक पास
बन जाते हैं सब बड़े हम नसीब से।

ताउम्र  जीने की अब ललक हमको नहीं
बस एक मुलाकात हो जाए मेरी महजबीं से।
000
पूनम

31 टिप्‍पणियां:

  1. ताउम्र जीने की अब ललक हमको नहीं
    बस एक मुलाकात हो जाए मेरी महजबीं से।


    मन को प्रभावित करती सुंदर अभिव्यक्ति ,,,,,

    RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,

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  2. बहुत खुबसूरत ग़ज़ल हर शेर लाजबाब , मुबारक हो

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  3. लाजवाब ग़ज़ल है ... एक एक शेर जैसे एक एक अनमोल मोती ..

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  4. आदरणीय पूनम जी
    नमस्कार !
    जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ !

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  5. बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ
    बहुत खुबसूरत बहुत लाजबाब
    और आप मेरे ब्लॉग पे आये इस के लिए आपका बहुत बहुत आभार
    मेने आपको follow कर लिया है आप मुझे भी और मेरे ब्लॉग को follow करती है तो मुझे और ख़ुशी होगी

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  6. अगर झरोखे में दिखे, गजल गजब उत्कृष्ट ।

    ताक-झाँक नियमित करूँ, नहीं हटाऊं दृष्ट ।

    नहीं हटाऊं दृष्ट , गरीबी बड़ी नियामत ।

    जिन्दा वह इंसान, झेल के बड़ी क़यामत ।

    स्नेह दीप को बार, चुने चेहरे वह चोखे ।

    बाइस्कोप संवार, ताकता उसी झरोखे ।।

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  7. "ताउम्र जीने की अब ललक हमको नहीं
    बस एक मुलाकात हो जाए मेरी महजबीं से"...

    सुंदर अभिव्यक्ति.

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  8. वाह ... बहुत खूब ।

    कल 27/06/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    ''आज कुछ बातें कर लें''

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  9. बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ सुन्दर अभिव्यक्ति..

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  10. सुन्दर भाव... बढ़िया रचना...
    सादर.

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  11. ताउम्र जीने की अब ललक हमको नहीं
    बस एक मुलाकात हो जाए मेरी महजबीं से ..

    वो एक झलक ही तो पूरी जिंदगी होती है .... सब कुछ तो मांग लिया एक दुआ में ...

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  12. बात तो सही है....आह ही निकलती है गरीब के दिल से ...प्यार की इतंहा तो ये भी हो जाती है जब जाते-जात आंखे खुली रहती हैं इंतजार में

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  13. ताउम्र जीने की अब ललक हमको नहीं
    बस एक मुलाकात हो जाए मेरी महजबीं से।


    बहुत सुन्दर .. वाह

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  14. बेहतरीन अभिव्यक्ति, कितने कम की आस और कितनी गहरी प्यास..

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  15. कोमल भावनाओं में रची-बसी सुन्दर रचना ....

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  16. हाले दिल जो गैरों ने सुना वो लेते तफ़री
    अपने भी देखते हमको बड़े अजीब से।
    तुम जो आओ , तो प्यार आ जाए ,ज़िन्दगी में बहार आ जाए ....सुन्दर भाव पूर्ण आधुनिक भाव बोध से संसिक्त ग़ज़ल .

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  17. ताउम्र जीने की अब ललक हमको नहीं
    बस एक मुलाकात हो जाए मेरी महजबीं से।


    आपने तो इन्तहां कर दी है प्यार की.
    सुन्दर भावमय प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
    नई पोस्ट जारी की है.

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  18. बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति..
    सुन्दर रचना...
    :-)

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  19. हद से गुजर जाती है जब इन्तहां प्यार की / इक आह सी निकली इस दिल के गरीब से।

    achhi ghazal ahi poonam par gustakhi maaf , matle ki first line mein kaafiya nahin hai

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  20. ताउम्र जीने की अब ललक हमको नहीं
    बस एक मुलाकात हो जाए मेरी महजबीं से।

    उम्दा दर्जे की ग़ज़ल।

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  21. पूनम जी सभी शब्द अर्थ प्रधान है ! करिश्मे के पुजारी बहुत है !बधाई !

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  22. ताउम्र  जीने की अब ललक
    हमको नहीं..
    बस एक मुलाकात हो जाए
    मेरी महजबीं से......
    बहुत खुबसूरत बहुत लाजबाब.....

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  23. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति। मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद।

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  24. ताउम्र जीने की अब ललक हमको नहीं
    बस एक मुलाकात हो जाए मेरी महजबीं से

    सुंदर भाव !

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