रविवार, 13 जनवरी 2013

यादों का सिलसिला


यादों का सिलसिला चलता है साथ साथ
यादों के साए से निकलना बड़ा मुश्किल।

गुजरता है जमाना गुजर जाते हैं लोग
बिखर जाता परिवार समेटना बड़ा मुश्किल।

कहते हैं वक्त हर मर्ज का इलाज पर
छोड़ गये हैं जो निशान उसे मिटाना बड़ा मुश्किल।

बीते हुये लम्हों का रहता ना हिसाब
फ़िर से जवाब पाना होता बड़ा मुश्किल।

ये समझना और समझाना होता नहीं आसान
जिन्दगी बख्शी जिसने उसी को समझाना बड़ा मुश्किल।

                0000
पूनम

14 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 16/01/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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  2. कहते हैं वक्त हर मर्ज का इलाज पर
    छोड़ गये हैं जो निशान उसे मिटाना बड़ा मुश्किल ..

    सच कहा है निशान नहीं मिटते ... दर्द कम हो जाता है समय की साथ ...

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  3. सच है कई दर्द का मर्ज वक्त भी नहीं होता....रह रह कर टीस उठती रहती है...

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  4. पूनम जी - कविता का शीर्षक सब कुछ कह गया |शब्दों में हम उलझ से गए है |मकर संक्रांति के इस संध्या वेला में आप को सपरिवार शुभकामनाएं|

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  5. यादों का संसार अनूठा,
    कब मुस्काया, कब वह रूठा।

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  6. बहुत सुन्दर रचना पूनम जी...

    मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ!

    अनु

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  7. बहुत सुंदर प्रभावी उम्दा प्रस्तुति,,,पूनम जी

    recent post: मातृभूमि,

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  8. वाह ... बहुत ही अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने

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  9. यह समझने और समझने में ही तो सारी उम्र बीत जाती है।...

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