बुधवार, 20 अप्रैल 2011

जरा ठहर जा


जब मैं बेसब्री से तुम्हारा

करता हूं इन्तजार

तब तुम आती नहीं।

जब मैं तुमको भुलाना चाहता हूं

तब तुम अकस्मात ही मेरे सामने

आकर खड़ी हो जाती हो।

यूं आकर पल में छलावे

की तरह चल देती हो

कि मेरे दिल की धड़कने

चंद लम्हों के लिये

जाती हैं ठहर।

इसलिये तुमसे करबद्ध विनती है मेरी

या तो तुम सदा के लिये

मुझे अपना लो

या फ़िर मुझे अपनी

दुनिया में जीने दो।

ताकि मैं अपने और

सपनों को तो

कम से कम

पूरा कर सकूं।

फ़िर मैं खुद ही तुम्हारे

आगोश में समाने के

तैयार हूं पर

प्लीज अभी नहीं

जरा ठहर कर आना

ऐ मौत।

000 पूनम

30 टिप्‍पणियां:

  1. poonam aankhe nam ho gayee hai...
    aisee rachana man bharee kar gayee .....
    apana dhyan rakho........
    shubhkamnae.........

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  2. फ़िर मैं खुद ही तुम्हारे
    आगोश में समाने के
    तैयार हूं पर
    ठहर कर आना
    ऐ मौत।

    मौत को ललकारती मर्मस्पर्शी रचना. क्या साहस ओर जिजीविषा झांक रही है कविता में.

    बहुत बधाई.

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  3. भावुक प्रस्तुति ...मौत ने कब किसका इंतज़ार किया है ..बिना बुलाये और बहाने से आती है

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  4. मांगने से जो मौत मिल जाती,
    कौन जीता इस ज़माने में!
    पूनम जी, मौत के नाम या आवेदन नामंजूर किया जाता है!

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  5. आदरणीय पूनम जी..
    नमस्कार !
    फ़िर मैं खुद ही तुम्हारे आगोश में समाने के तैयार हूं पर ठहर कर आना ऐ मौत
    ...मर्मस्पर्शी रचना.....सार्थक लेखन के लिए बधाई।

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  6. फ़िर मैं खुद ही तुम्हारे
    आगोश में समाने के
    तैयार हूं पर
    ठहर कर आना
    ऐ मौत।
    गहन भाव ...भावुक करने वाली रचना ......

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  7. 'करबद्ध विनती ' , bahut dinon baad ye shabd suna hai poonam , rachna tum hamesha hi seedhe saral shabdon mein aur marmik likhti ho.

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  8. इसलिये तुमसे करबद्ध विनती है मेरी
    या तो तुम सदा के लिये
    मुझे अपना लो
    या फ़िर मुझे अपनी
    दुनिया में जीने दो।

    मर्मस्पर्शी रचना ..जीवन के अनुभत सत्य को सामने लाती हुई ...आपका आभार

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  9. वाह जी वाह .ये मौत न हुई माशूका हो गई
    "जिंदगी को बहुत प्यार हमने किया
    मौत से भी मोहब्बत निभाएंगे हम
    रोते रोते ज़माने में आये थे हम
    हँसते हँसते ज़माने से जायेंगें हम"
    पूनम जी, शानदार अनुपम अभिव्यक्ति केलिए बहुत बहुत आभार आपका.

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  10. वाह .. बहुत खूब कहा है आपने ... इस बेहतरीन शब्‍द रचना के लिये आपका आभार ।

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  11. maut yun n ghabraya karo
    pata hai tu aayegi ek din
    per waqt ki nazaakat samjho
    baar baar darwaze ko hilaya n karo

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  12. आगोस के सामने ठहर जा बस ------------
    बहुत उत्तम कोटि की रचना .
    बधाई.
    अपने हमारे ब्लॉग पर लिखा है की मई इस्लाम के प्रति vayasd हु पर ऐसा नहीं बड़ी ही विनम्रता के साथ मई जिम्मेदारी से कहता हु की कुरान जो मानवता में बैर सिखाती है जिसने भारत का विभाजन कराया इतना ही नहीं यदि हिन्दू सचेत नहीं हुआ तो पुरे भारत की हालत कश्मीर जैसे ही होगी आज कोई भी कश्मीरी हिन्दू घटी में नहीं है क्यों ?
    अब हम दुबारा अपनी बहन=बेटियों के साथ बलात्कार नहीं देख सकते पुनः हमारी भारत माता का विभाजन नहीं देख सकते इस नाते हिन्दू समाज का जागरण अवश्यक है.
    पूनम जी छमा प्रार्थी इस धृष्टता के लिए.

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  13. ye sawal sirf maut ke liye hi nahi balki har aise avsar k liye hai jiska ham intzar karte hain aur chaahne par vo nahi aata.

    sunder abhivyakti.

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  14. गुलज़ार साहब ने कहा था
    मौत तू एक कविता है
    मुझसे एक कविता का वादा है
    मिलेगी मुझको!!
    पूनम जी! ऐसी कवितायें आपके लिए नहीं हैं!!

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  15. पुनमजी..आप मेरे ब्लॉग पर आई और अपने सुबिचार से अवगत करायी ....इसके लिए बहुत-बहुत धन्यबाद ! जीवन नकली है,मृत्यु ही असली है, भावपूर्ण कवितायें! आप को मै अप्रत्यक्ष रूप से फोल्लो कर रहा हूँ !

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  16. बस निशब्द ही हूँ आँखें नम हो गयी। शुभकामनायें।

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  17. मौत को ललकारती मर्मस्पर्शी रचना|

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  18. बहुत ही मार्मिक दर्शन, रचना बहुत अच्छी हैं
    अक्षय-मन

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  19. जाने क्यू निराशा झलकती है , नैराश्य में आशा की किरन खोजता हूँ मै . मौत महबूबा है अपने साथ लेकर जाएगी लेकिन उससे पहले छक कर तो जी लू .

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  20. poonam ji , aapne to kamaal kar diya .. ye ek prem kavita bhi hai aur jeevan se bhari hui asha ki bhi kavita hia ... waah

    badhayi .

    मेरी नयी कविता " परायो के घर " पर आप का स्वागत है .
    http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/04/blog-post_24.html

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  21. बहुत खूब. आखरी एक ही पंक्ति ने पुरे काव्य का अर्थ पलट दिया.

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