बुधवार, 19 अक्तूबर 2011

अभियान गीत



मैं तुम्हारी मुस्कुराहटों को गीत दूं

तुम हमारे गीत के सुरों को रूप दो।

चलो चलें विजय के गीत साथ ले

मंजिलों से दूर हैं ये काफ़िले

काफ़िलों को एक नया मार्ग दो

एक नई उमंग एक विचार दो।

अन्धकार छा रहा है क्यूं यहां

सत्य लड़खड़ा रहा है क्यूं यहां

इक प्रकाश पुंज तुम बिखेरे दो

क्रान्ति गीत है नया ये छेड़ दो।

आदमी क्यूं आदमी को डस रहा

हर शहर क्यूं लाश से है पट रहा

आदमी के हर ज़हर निकालकर

इक नये समाज को तुम नींव दो।

मैं तुम्हारी मुस्कुराहटों को गीत दूं

तुम हमारे गीत के सुरों को रूप दो।

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पूनम

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

दर्पण


दर्पण जो आज देखा वो मुंह चिढ़ा रहा था

चेहरे की झुर्रियों से बीती उम्र बता रहा था।

कब कैसे कैसे वक्त सारा निकल गया था

कुछ याद कर रहा था मैं कुछ वो दिला रहा था।

नटखट भोला भाला बचपन कितना अच्छा होता था

जब बाहों में मां के झूले झूला करता था।

धमा चौकड़ी संग अल्हड़पन कब पीछे छूट गया था

इस आपाधापी के जीवन में वो भी बिसर गया था।

कब उड़ाने मारीं हमने कब सपना मीठा देखा था

सच में सब कुछ वो बहुत रुला रहा था।

कब हंसे कब रोया हमने क्या कैसे पाया था

गिनती वो सारी की सारी करा रहा था।

मैं रो रहा था और वो मुझ पर हंस रहा था

क्यों नहीं हमने सबको रक्खा सहेजे था।

पछता के अब क्या वो ये जता रहा था

जो बीता वो ना लौटे वो यही समझा रहा था।

अब समझ रहा था मैं जो वो कहना चाह रहा था

आने वाले पल के लिये वो तैयार करा रहा था।

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पूनम