शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

आया सावन


सावन में बदरा बरसे

घनन घनन घन घन

बगिया में फ़ुलवा गमके

भीजे तन और मन

प्रियतम प्रियतम फ़िर बोले

दिल का ये आंगन।

पेड़ों पर पड़ गये झूले

सखियां लगी झूलन

पेंग पे पेंग बढ़ावें जैसे

छूलें नील गगन

खिलखिलाती ऐसी जैसे

बातें करें पवन।

भौंरे भी झूमन लगे

पी के फ़ूल परागण

जिन फ़ूलन पर जा बैठे

वो फ़ूल हुये मगन

इतराये वो ऐसे जैसे

बचपन में अल्हड़पन।

जूड़न में गजरे सज गये

खुशबू लिये चमेलन

काले कजरों से भर गये

खंजन जैसे नयन

रंग बिरंगी चूड़ियों संग

सजे हाथ कंगन।

पांवों में बिछुआ सोहे

बाजे संग पाजन

लगा महावर पैरों में

इतराये गोरी मन मन

सजा के टिकुली माथे पे

सखी बनी दुल्हन।

सावन तो होवे ही ऐसे

हो जाये सभी मगन

सजनी को झूला झुलाये साजन

जैसे राधा किशन

सखियन संग मन मेरा भी गाये

जल्दी आना सजन।

000

पूनम

रविवार, 25 जुलाई 2010

तुम मिले


तुम मुझे मिले

अचानक से तो

जाने कब के देखे

ख्वाब दिल की

गलियों से निकल कर

आंखों के सामने लहराने लगे।

बगैर ये मालूम किये

कि तुम

मेरी नहीं किसी और

के सपनों की दुनिया को

अपने साथ सजाने के लिये

सिर्फ़ मेरा साथ

भर मांगने आये थे।


और मैं अवाक सी

होकर तुम्हें भावशून्य

नजरों से यूं देखने लगी

मानो मेरे सामने कोई

दीवार खड़ी है

और तुम भी मुझे

इस तरह देखता देखकर

चले गये यूं

मानो तुम्हारा उत्तर

तुम्हें मिल गया।

और फ़िर मैं भी

पागलों की तरह

आसमान को यूं ही

देखने लगी जैसे

मेरे सारे अरमान

उसी आसमां में

बादलों के साथ

उमड़ घुमड़ कर

यूं गायब हुये

जैसे जलते तवे पर

किसी ने पानी के

छींटे मारे हो

और उसका अस्तित्व

तुरंत मिट गया हो।

000

पूनम

बुधवार, 21 जुलाई 2010

सूरज और रजनी


पेड़ों की शाखाओं

के झरोखों से

जब छिटकती हैं

सूरज की किरणें

हरित पत्तियों पर

तो लगता है

प्रकृति के प्रांगण में

हर तरफ़

चांदी की थाल

पत्तों पर बिखर गयी है।

भोर में उगता सूरज

धीरे धीरे

अपने पदार्पण की सूचना

देता है

तब उसकी गुनगुनाती धूप

मन को ऊर्जा

और एक अनोखे

अहसास से

मानो भर जाती है।

दिन भर अपनी

पूरी सामर्थ्य दिखाकर

जब पत्तियों से

छनती हुयी चमक

धीरे धीरे कम

होती जाती है

तब साथ निभाने

प्रकृति का

रजनी मिलाती है हाथ

सूरज से

उसके पदागमन के साथ ही

प्रकृति के लिये

उसके प्रांगण में

उतर आयी रजनी

अपने पूरे मनोयोग के साथ

प्रकृति से

करने लगती है अठखेलियां ।

000

पूनम

सोमवार, 5 जुलाई 2010

वक्त की डोर


कहते हैं जो रात गयी

सो बात गयी ऐसा भी

कभी ही होता है

पर बात जो दिल में जाये उतर

क्या वो लाख भुलाये

भी भूलता है।

ये तो एक बहाना है

अपने मन को बहलाने का

वरना इतना आसान नहीं

जो धोखे पे खाता धोखा है

क्या दिल उसका

इसे मानता है।

है वक्त बड़ा मरहम सबसे

जो बड़े से बड़े घावों को

खुद ही भरता है

पर वो इन्सां करे ही क्या

जिसे वक़्त ही

धोखा देता है।

फ़िर दामन वक्त का जो

हर क्षण है हमसे जुड़ा हुआ

उसके बिन इशारे के

इस जीवन का

इक पत्ता तक

नहीं हिल पाता है।

वक्त के संग संग चलना

मजबूरी नहीं जरूरत है

जो कदम मिला ले

वक्त के संग तो

वक्त भी हम कदम बन जाता है।

जीवन का पर्याय है वक्त

वक्त का मतलब ही जीवन है

सही जीवन तो वही

निभा पाता जो वक्त की

डोर से बंधता है।

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पूनम