शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

नया जमाना

सभी पाठकों को दुर्गा अष्टमी एवं
दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएं

सादर प्रणाम चरण स्पर्श का
शायद जमाना बीत गया
हाय हैलो और जमाना
यार का अब आ गया।

अम्मा बाबू जी कहने में
जो मिठास होती थी
मम्मा डैडी जैसे शब्दों
के बीच कहीं खो गया।

मां के हाथ की रोटियों का
स्वाद भी शायद भूल गया
मजबूरी में या वैसे भी
जमाना होटलों का हो गया।

घर के छप्पन व्यंजन भी
खिलाने में शर्म है लगती
अब तो पिज्जा बर्गर और
चिली चिकन का जमाना आ गया।

महाभारत रामायण जैसी
पौराणिक कथायें खो रही
अब तो कार्टून मिक बीन
पोगो का जमाना आ गया।

आजादी हमें कैसे मिली
अब भी बहुत लोग नहीं जानते
अब तो खुद ही आजाद
होने का जमाना आ गया।

बच्चों को समझाने की
कोशिश तो करके देखिये
शायद जवाब ऐसा ही मिले
जमाना आपका चला गया।

ताल में ताल मिला के
हम भी संग जमाने के चले
फ़र्क आया नजर बुराई वक्त में नहीं
सोचों में अन्तर आ गया।

अब दौर है नये जमाने का
तो आप भी ढल जाइये
मिल के संग इनके हम भी कहें
कि अब नया जमाना आ गया
००००
पूनम

गुरुवार, 17 सितंबर 2009

गज़ल-जमीं से आसमा तक


आज हम छूने चले हैं आसमां को
पर सहारा तो जमीं का चाहिये।

लाख मोड़ लें रुख चाहे जिधर भी
पर अन्त में किनारा तो नदी को चाहिये।

चाहे कितने भी बड़े हो जायें हम फ़िर भी
लोरी सुनने के लिये इक गोद मां की चाहिये।

कुछ भी पाने के लिये सोच ऊंची है जरूरी
मिल जाये कितनी शोहरत मन न बढ़ना चाहिये।

हमें मिले जो संस्कार हैं बुजुर्गों की निशानी
गर पड़ें कमजोर तो सम्बल इन्हीं का चाहिये।

है बहुत आसान कीचड़ उछालना दूसरों पर
पर पहले खुद पे भी एक नजर डाल लेना चाहिये।
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पूनम

शुक्रवार, 11 सितंबर 2009

गीत---अजनबी शहर में


इस शहर में हम अजनबी हैं
जाने पहचाने से चेहरे हैं फ़िर भी
हर पल में लगता ये और ही कोई है।
इस शहर में-----------------।

बेमतलब यहां पे तो कुछ भी नहीं है
ऐसा हो शायद ही इन्सान कोई
यहां जो मतलबी नहीं है
इस शहर में-------------------।

है खून का रिश्ता जिससे भी जिसका
वक्त पड़ने पे देखा
बदल रक्त की रंगत ही गई है।
इस शहर में ----------------।

दुश्मनी होती नहीं किससे किसीकी
खुरच दे उसे जिल्द पुरानी समझ के
फ़िर चढ़ा दे कवर दोस्ती की नई सी।
इस शहर में ---------------------।

जाना पहचाना या हो वो बेगाना
पहले हम इन्सां हैं
फ़िर हम कोई हैं
इस शहर में -------------------।

कभी झांक कर देखो औरों के दिल में
उनमें जो है वो हमारे में भी
क्या लगता है फ़र्क थोड़ा भी कोई है
इस शहर में ---------------।

रंजो सितम से ये दुनिया भरी है
है जीना इसी में और मरना यहीं है
आपस में फ़िर क्यूं यूं ही ठनी है
इस शहर में ---------------।

शहर में ही जब अपने हम अजनबी हैं
तो दुनिया तो फ़िर भी बहुत ही बड़ी है
फ़िर भी हम क्यों अजनबी हैं।
इस शहर में ---------------।
00000000
पूनम



शनिवार, 5 सितंबर 2009

ख्वाब देखो जरूर-----


ख्वाब देखो तो जरूर पर इतना देखो
तुम्हारे पांवों को ढंक सके चादर इतना तो देखो।

अपने से ऊपर देखो तो जरूर पर इतना देखो
तुमसे नीचे भी कोई है इतना तो देखो।

एक चींटी भी कोशिश से चढ़ती है पहाड़ इतना देखो
कुछ पाने के लिये हिम्मत है जरूरी इतना तो देखो।

अच्छा बीज ही बनता बेहतर पौधा इतना देखो
अच्छे कर्मों से ही होता है बड़ा इन्सां इतना तो देखो।

यदि चाहत है तो उंचाई तक पहुंचोगे जरूर इतना तो देखो
पांव टिके हैं जमीं पर कितने इतना तो देखो।

एक माचिस की लौ भी दूर करती है अंधेरा इतना तो देखो
बन के देश के दीपक रौशनी दे सकते सबको इतना तो देखो।
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पूनम