गुरुवार, 26 जुलाई 2012

प्रकृति के रंग


प्रकृति ने बिखेरी अनुपम छटा
देखने को आंखें बरबस मचल उठीं
सूरज की किरणों ने धरती को चूमा
धरा भी गुनगुनी धूप में नहा उठी।

चांद ने जो रात में चांदनी बिखेरी
पृथ्वी रुपहली चादर में लिपटी
पहाड़ों से झरनों की जो फ़ूटी धार
हर तरफ़ कल-कल निनाद सी गूंज उठी।

बांसों के झुरमुट में सरसराती हवा
बांसुरी के स्वर जैसी लहरा उठी
हरी हरी घास पर ओस की बूंदें
नई नवेली दूल्हन सी मुस्कुरा उठीं।

हरियाली खेतों में झूमती सरसों
मानों खुशी के गीत सी गा उठी
भोर के प्रांगण में पक्षियों की कलरव
वीणा के तारों सी झंकृत हो उठी।
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पूनम


मंगलवार, 17 जुलाई 2012

सीख

जला जला कर खुद को,खाक करते हो क्यूं।
ज़िन्दगी अनमोल खजाना,जीना तो सीख लो।

देख कर औरों की खुशियां कुढ़ते हो क्यूं
गैरों की खुशी में भी,हंसना तो सीख लो।

रास्ते मंजिलों के,आसान ढूंढ़ते हो क्यूं
मुश्किलों का सामना,करना तो सीख लो।

छूने को आसमान की हद,कोशिश करो जरूर
पहले पांव को जमीं पर,जमाना तो सीख लो।

अपने को गैरों से,ऊंचा समझते हो क्यूं
एक बार खुद को भी कभी,आंकना तो सीख लो।

तक़दीर को ही हर कदम पर,कोसते हो क्यूं
रह गई कमी कहां पे है,जानना तो सीख लो।

कर के भरोसा दूसरों पे,पछताते हो क्यूं
बस हौसला बुलंद करना,खुद का तो सीख लो।

बात सिर्फ़ इतनी सी है,जीवन फ़कत पाना ही क्यूं,
खोना भी पड़ता है बहुत,सब्र करना तो सीख लो।
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पूनम