शनिवार, 29 मार्च 2014

ये भी तो कुछ कहते हैं-----

पड़ते कुल्हाड़े पेड़ों पर जब
उनके भी  आंसू बहते हैं
सोचो जरा इक बात तो आखिर
क्या वो भी हमसे कुछ कहते हैं?

जो हैं हमारे जीवन रक्षक
क्यूं हम उनके भक्षक बन जायें
जो जीवन को देने वाले हैं
उनके ही दुश्मन कहलायें।

काटने पर हम तुले हैं जिसको
शहर शहर और गांव गांव
आने वाले समय में फ़िर तो
मिलेगी न हमको उनकी छांव।

जो धरती का आंचल लहराये
पर्यावरण को सदा बचाए
धूप ठंढ बारिश को बचा के
मानव जीवन को हरसाए।

प्रकृति है जिससे हरी भरी
जो बादल से बारिश ले आते
जिनके कारण ही तो हम
नव जीवन हैं अपनाते।

आओ हम सब बच्चे मिल जाएं
फ़िर एक पेड़ न कटने पाये
जगह जगह पर पेड़ लगा कर
हरियाली वसुन्धरा पर लायें।
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पूनम