रविवार, 28 फ़रवरी 2010

फ़ागुन रीता जाये ना


दिन फ़ागुनी रंग बासन्ती

मौसम भीना भीना सा

इंतजार तेरा करते करते

बीते सावन का महीना ना॥

मौसम ने ली है अंगड़ाई

अब तो प्रियतम आ जाना

तेरे बिन हर पल अब तो

मेरे जी को भाये ना।…

संग सहेलियां इतराती

हौले हौले फ़ागुन गा्यें ना

हंसी ठिठोली मुझसे करतीं

जो मेरे जी को जलायें ना॥

रिमझिम बारिश की फ़ुहारें

अब तो अच्छी लागें ना

लगता जैसे वो हसीं उड़ातीं मेरी

दिल मे तीर सी चु्भोयें ना।

बीत गया सावन का महीना

बीती पिछली दिवाली ना

कहे मेरा दिल रो रो करके

अब के फ़ागुन में आना ना॥

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पूनम

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

पैगाम


ख्वाबों में ही छलनी हो, गया जिगर जिसका

वही तो जिगर हमारा है, वहीं तो जिकर हमारा है।

खयालों के धागे बुनते बुनते, कुछ बिगड़े कुछ सूत बने।

वही तो फ़िर उम्मीद बने, वही तो फ़िर सहारा है।

सूरज चांद बादल सारे, झिलमिल करते ये तारे

वही धरती ,नील गगन हमारा, वही तो प्यारा नजारा है।

वही पोखर ,वही नदियां,वही लहरें समुन्दर की

वही सुनामी बन जाती कभी, वही प्यासे की अमृतधारा है।

जिस्म भी एक जान भी एक, है रंग गोरा, काला तो क्या

वही मन सबका एक हो गर ,तो बदले जहां ये सारा है।

वही सोना, वही चांदी, वही मोती, मांनिक भी

खान से कोयले के निकले जो, वही तो हीरा हमारा है।

जो रंगत रक्त की एक ही है,तो नफ़रत क्यों पनपती है

जीतें दिलों को मोहब्बत से, यही पैगाम हमारा है।

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पूनम

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

वक्त की डोर


कहते हैं जो रात गयी

सो बात गयी ऐसा भी

कभी ही होता है

पर बात जो दिल में जाये उतर

क्या वो लाख भुलाये

भी भूलता है।

ये तो एक बहाना है

अपने मन को बहलाने का

वरना इतना आसान नहीं

जो धोखे पे खाता धोखा है

क्या दिल उसका

इसे मानता है।

है वक्त बड़ा मरहम सबसे

जो बड़े से बड़े घावों को

खुद ही भरता है

पर वो इन्सां करे ही क्या

जिसे वक़्त ही

धोखा देता है।

फ़िर दामन वक्त का जो

हर क्षण है हमसे जुड़ा हुआ

उसके बिन इशारे के

इस जीवन का

इक पत्ता तक

फ़िर नहीं हिल पाता है।

वक्त के संग संग चलना

मजबूरी नहीं जरूरत है

जो कदम मिला ले

वक्त के संग तो

वक्त भी हम कदम बन जाता है।

जीवन का पर्याय है वक्त

वक्त का मतलब ही जीवन है

सही जीवन तो वही

निभा पाता जो वक्त की

डोर से बंधता है।

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पूनम

रविवार, 14 फ़रवरी 2010

यादों के झरोखों में माँ







पिछ्ले साल आज के ही दिन पन्द्रह फ़रवरी को मां की याद में एक कविता लिखी थी,जो आज हकीकत में बदल गई ।पिछ्ले महीने सोलह जनवरी को मां का निधन हो गया । आज अपने ही जन्म दिन पर मां को अब तस्वीरों मे देख कर कुछ बातें दिल ही दिल ही में रूला गईं।

वही कमरा वही आंगन

फ़िर भी लगता है कुछ सूना

वही दीवारें वही दरवाजें जैसे

ढूंढ्ता घर का भी कोना, कोना।

लोरी सुनाती थक भी जाती

फ़िर भी नहीं खुद सोती थीं

थपकी देंती, धीरे गातीं,

जब तक मैं सो जाऊं ना।

याद आई फ़िर छूटे बचपन की,

वही रसोईं छोटी सी,

ताक पे रखे चीनी को देख मेरा वो ,

ललचा कर,फ़िर खा के जल्दी से मुँह धोना।

घी से चुपडी रखी रोटी

कुछ पतली, कुछ मो्टी-मोटी

कौन किससे पहले खाये

याद है उस प्रेम भरी टकरार का होना।

भैया बहनो संग उधम मचाना

ज़रा सी बातो पे इतराना

दिल मे प्यार आँख मे गुस्सा

याद है माँ के आँचल मे छुप के मुस्काना।

बचपन की बातें होती ऐसी

जो कभी नही मिटती दिल से

कोई बचपन से ही सीखे

संघर्षों में भी मुस्काना।

नहीं ज़रूरी सबका बचपन

एक ही साँचे में ढल जाये

किसी क बचपन महलो में बीते

किसी को मिले धरती का बिछौना।

यादें बहुत हैं बहुत सी हैं बातें

बयाँ करूँ क्या क्या और कैसे

यादों की मोती को जोडूं तो

लगे सामने है बीता जमाना।

मां तू तो ईश्वर स्वरूप है

भला तुझे मैं क्या दे सकती हूं

जो तूने आशीष दिया

वही है सपना अब पूरा करना।

दिल में तेरी याद बसी

आखें तस्वीरों में ढूंढ्ती है

लाख बुलाऊं तुझको मैं

पर फ़िर भी तू तो आये न॥

मां तो वो अनमोल खजाना

जो जीवन में ईक बार मिले

जिससे भी ये छिना खजाना

उसने ही इस दर्द को जाना।

पूनम

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गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

भोले बाबा के नाम


आप सभी को महा शिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें।

भोले बाबा के नाम

भंग का रंग जो चढ़ा भोले को तो इधर उधर फ़िर डोले

फ़िर सोचे जरा रंग जमा लें डम डम बजा के डमरू बोलें।

आओ उमा तुम भी आ जाओ थोड़ी सी भंग चढ़ा लें

फ़िर देखो क्या होगा तमाशा बम बम बोले बाबा भोले।

उमा ने साथ दिया पति का सोचा कैसे इंकार करें

बाबा पल में गुस्सा पल में भोले, कब तीसरा नयन भी खोलें।

डम डम फ़िर जो डमरू बजा हो गये बाबा जोशीले

ताल में ताल मिला डमरू के नाचते बीच में थोड़ी भंग भी पीलें।

सुनी आवाज जो डमरू की हुये कान खड़े सभी देवों के

लगा सभी को क्या हुआ अचानक थर थर मन सबका डोले।

दौड़े आये ब्रह्मा विष्णु संग में देवता इन्द्र भी

सात रथों पे होके सवार सूर्य देव भी दौड़ चले।

कुछ तो बात है गड़बड़ जी आपस में सभी फ़ुस फ़ुस बोले

हिम्मत नहीं थी किसी की इतनी जो शिव के रंग में भंग डाले।

सभी देवों पर जब पड़ी नजर थोड़ा नशा उतर आया भले

पूछा भोले नाथ ने फ़िर क्या बात कोई कुछ ना बोले ।

समझ गई सब गणपति की मां देख के देवों की नजरें

खिल खिला कर हंसीं जोर से कुहनी मारी शिव को हौले।

फ़िर समझ गये शंकर जी भी पास जा भोले पन से बोले

आज जो मेरे मन में आया सोचा वो ही कर डालें।

एक साथ फ़िर देव सभी बोले आज की रात फ़िर आपके नाम

भंग की मस्ती में शिव भी जाके सबके गले मिले।

विष्णु बोले आज का दिन शिव रात्रि कहलायेगा

बेर धतूरा बेल पत्र, मस्तक चंदन और गले में शेष नाग झूलें।

खुश हो गये फ़िर सभी देवता हर हर महादेव का नारा लगा

फ़िर सबने चढ़ाई भंग और अपने अपने रस्ते को चले।

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पूनम

शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

कविता की जुबानी-----


आज कविता खुद अपनी

दास्तां सुनाने आई है

अपनी जुबान से अपने को

आपका बनाने आई है।

लोग कहते हैं

मुझे पढ़ कर क्या हूं मैं

कोई कहता है कविता

तो दिल की आवाज है

तो कोई उसे महज एक

नजर देखकर समझता

टाइम पास है

किसी के लिये यह सिर्फ़

कोरी बकवास है

तो किसी के लिये

एक कोमल अहसास है।

इल्जाम तो मैं नहीं लगाती

क्योंकि वो मेरा काम नहीं

जो नहीं समझ सके मुझे

उनको भी दोषी कहना ठीक नहीं

क्योंकि मैं तो

एक निश्छल निर्मल और

हकीकत को बयां करने वाली

आपके ही दिल की आवाज हूं।

जो मैं देखती सुनती और

समझती हूं

आपके दिल की धड़कनों से

उसे ही आपके कर कमलों से निकाल कर

एक रचना के रूप में

आपके सम्मुख पेश हो जाती हूं

कोरे कागज पर।

मैं ही तो

महर्षि वाल्मीकि के

मुख से निकला हुआ

पहला छंद हूं

जो क्रौन्च पक्षी के जोड़े को

देख कर अचानक

ही उनके मुख से निकला

और आगे चलकर

अपने अलग अलग रूपों में

सामने आता रहा।

मैं ही सात सुरों के सरगम से

निकलकर

बन जाती हूं

गीत गज़ल कविता या छंद

मैं ही तो वो संगीत हूं

जो आपके दिलों के तार को

छेड़ते हुये

आपके ही दिल से

बाहर निकलती हूं।

मैं आप को भी

यथार्थ से परिचित कराने

के लिये मजबूर हो जाती हूं

क्योंकि जब सब कुछ

देखकर कुछ कर नहीं पाती

तो फ़िर आपके मन में

उमड़ घुमड़ कर

विचलित सी मचलती

हुई रह जाती हूं।

फ़िर खुद न कह कर

आपके

द्वारा कई रूपों में बेनामी

से निकल कर सच्चाई

से सबको रूबरू कराने के लिये

पन्नों पर उतरती जाती हूं

क्योंकि मैं अच्छी या बुरी भी

नहीं हूं

मैं तो सिर्फ़ एक रचना हूं

जो कि आपके दिल की

आवाज हूं

और एक कोमल और स्वच्छ

अहसास भी।

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पूनम