आ मुसाफ़िर लौट आ अब भी अपने डेरे पर,
भटकता रहेगा कब तलक,तू यूं ही अब डगर डगर।
दिन ढले सूरज भी देख जा छुपा है आसमां में,
सुरमई शाम आ चुकी है अब अपने वक्त पर।
पेड़ पशु पक्षी भी देख अब तो सोने जा रहे,
कह रहे हैं वो भी अब तू भी तो जा आराम कर।
लुटा दिया जिनकी खातिर तूने जीवन अपना ताउम्र,
क्या तुझे पूछा उन्होंने इक बार भी पलटकर।
तेरे ही लहू के अंश हो गये तितर बितर,
बेगाने हो गए जिन्हें तूने रखा सीने से लगाकर।
जाने वक्त की घड़ी कब किधर रुख बदल ले,
कब तक खड़ा रहेगा तू जिन्दगी के हाशिये पर।
वक्त है अब भी सम्हल जा अपने लिये भी सोच तू,
जी लिया गैरों की खातिर अपने लिये भी जी ले जी भर।
000000
पूनम
38 टिप्पणियां:
Hi..
Apne kandhon par uthaye bojh jo chalta raha..
Wo kaabhi bhi, saans tak..
Lene ki khatir na ruka..
Sundar bhaav...
Deepak Shukla..
बहुत सुंदर,
क्या कहने
शुभकामनाएं
दिनभर के श्रम को रात का विश्राम आवश्यक है।
nadan pariney ghar aa jaa :)
कई अर्थों को समेटे हुए एक अच्छी रचना बधाई
bhtrin rchnaa ke liyen mubark ho .akhtar khan akela kota rajsthan
बहुत सुंदर रचना .....
पूनम जी बहुत सुंदर प्रस्तुति बधाई...
बेहतरीन प्रस्तुति तमाम भावों को समेटे हुए ...
बहुत सुंदर रचना .....
बहुत ही अच्छे भाव कलम को बख्शें हैं आपने ।
अपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।
औचित्यहीन होती मीडिया और दिशाहीन होती पत्रकारिता
बहुत ही सुन्दर भाव कविता के। अगर इन पंक्तियों को एक समान मीटर में लिखा जाये तो सोने पे सुहागा वाली बात हो जायेगी।
भावपूर्ण प्रस्तुति।
नादान परिंदे घर आ जा......
पूनम जी , इस कविता में एक छुपी हुयी दर्द और उसके साथ ही हर एक की एक किनारा होता है - को आपने बहुत ही सहज भाव में प्रस्तुत कर दिखाया है ! बहुत - बहुत शुभ कामनाएं !!
पूनम जी इंसान बस वापस ही नही लौटना चाहता चाहे नीड कितना भी दुखदायी क्यो ना हो उससे जुडा रहना चाहता है जब तक कि कोई उसे बाहर ना निकाले………॥जबकि अन्तिम परिणति तो यही है ना……………अगर हम सब पहले ही इस सत्य को जान ले और स्वीकार कर ले तो जीना बहुत आसान हो जाये।
वक्त है अब भी सम्हल जा अपने लिये भी सोच तू,
जी लिया गैरों की खातिर अपने लिये भी जी ले जी भर।
बहुत ही बढि़या ...भावमय करते शब्दों का संगम ।
behtreen aur bhaavpurn.......
एक पेंटिंग की तरह सुन्दर कविता है पूनम बहिन!!
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
सुंदर!
आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है ... नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार 19-11-11 को | कृपया पधारें और अपने अमूल्य विचार ज़रूर दें...
बहुत सच कहा है ... सही समय पर अपने बारे में सोच लेना चाहिए ... कहीं देर न हो जाए ..
जी लिया गैरों की खातिर अपने लिये भी जी ले जी भर।
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अब बहुधा इस सोच से दो चार होता हूं।
बहुत सुन्दर ..पूनम जी
सोचने पर विवश करती अच्छी प्रस्तुति
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 24-- 11 - 2011 को यहाँ भी है
...नयी पुरानी हलचल में आज ..बिहारी समझ बैठा है क्या ?
आपकी पोस्ट पर देरी से आने के लिए क्षमा चाहता हूँ.बहुत सुन्दर भावपूर्ण और प्रेरक प्रस्तुति है आपकी.
बहुत बहुत आभार पूनम जी.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
नई पोस्ट पर हार्दिक स्वागत है.
पूनम जी बहुत सुन्दर ...काश लोग इस पर विचार करें और ऐसा न हो ....अपने लहू सदा हमारे बने रहें ...
बधाई हो ..सुन्दर सीख देती रचना
भ्रमर ५
लुटा दिया जिनकी खातिर तूने जीवन अपना ताउम्र,
क्या तुझे पूछा उन्होंने इक बार भी पलटकर।
तेरे ही लहू के अंश हो गये तितर बितर,
बेगाने हो गए जिन्हें तूने रखा सीने से लगाकर।
जाने वक्त की घड़ी कब किधर रुख बदल ले,
कब तक खड़ा रहेगा तू जिन्दगी के हाशिये पर।
...रचना के भाव अंतस को गहराई तक छू जाते हैं...बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..आभार
vichaarneey post.
meri pahle ki tippani gayab ho gayi hai.
क्या बात है,..सुंदर रचना ,..
मेरे नए पोस्ट पर स्वागत है,,
bahut hi sunder kuchh pal apne liye bhi ji .sahi kaha aapne
rachana
लुटा दिया जिनकी खातिर तूने जीवन अपना ताउम्र,
क्या तुझे पूछा उन्होंने इक बार भी पलटकर।
तेरे ही लहू के अंश हो गये तितर बितर,
बेगाने हो गए जिन्हें तूने रखा सीने से लगाकर...
Ekdma sach ko sparsh karti panktiyan bahut sundar...
गहरे , बिचारणीय सुन्दर भाव .... आभार.
होली की शुभकामनाएं.
कई संदर्भो को समेटी हुई कबिता यट्टम रचना बहुत-बहुत बधाई.
बहुत सुंदर, अच्छी रचना कब तक खड़ा रहेगा तू जिन्दगी के हाशिये पर। वक्त है अब भी सम्हल जा अपने लिये भी सोच तू, जी लिया गैरों की खातिर अपने लिये भी जी ले जी भर।
जिंदगी से रूबरू कराती हुई कबिता-----
खुबसूरत ----
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