बिल्ली ने ये मन
में ठाना
चूहों को है सबक
सिखाना
खेल चुके घण्टी का
खेल
अब मुझको है शंख
बजाना।
बहुत विचार किया
मौसी ने
शुरू किया फ़िर
गाना गाना
जंगल के सारे
जीवों को
लगी सिखाने ढोल
बजाना।
चूहों को भी शौक
लगा फ़िर
क्यूं ना सीखें हम
भी गाना
भूल गये मौसी का
गुस्सा
लगे सीखने ढोल
बजाना।
मौसी मन ही मन
मुस्काई
चूहों पर खुब
प्यार लुटाई
जितने चूहे आते
जाते
मौसी खाके गाती
गाना।
0000
पूनम श्रीवास्तव
8 टिप्पणियां:
hummmmmm!
sunder baal rachna
चूहा बिल्ली का खेल निराला
बहुत सुंदर बाल रचना
बहुत खूब
सुंदर बाल कविता
सुंदर बाल कविता
बाल कविता तो मस्त है!
चूहे ड़ाल ड़ाल
तो बिल्ली भी पात पात
बहुत सुन्दर पूनम जी,
एक टिप्पणी भेजें