बुधवार, 30 मार्च 2022

गुफ्तगू

 

गुफ्तगू

(फोटो-हेमन्त कुमार)


चलो आज हम कुछ गुफ्तगूं कर लें
कुछ अपनी कहें तुम्हारी भी सुन लें।
वो भोला सा बचपन निश्छल सी बातें
चलो वक़्त रहते कुछ अब भी बचा लें।
ना जाती दीवारें ना मज़हब की मीनारें
चलो आज हम ये लकीरें मिटा लें।
ना हो रंजो-रंजिश न तीर व कटारें
चलो प्रेम की हम पींगे चढा लें।
जो तुम्हारी आबरू वो हमारी भी इज़्ज़त
चलो रुसवा होने से उसको बचा लें।
दें भूखों को रोटी व प्यासे को पानी
इंसानियत की दौलत सबमें लुटा लें।
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पूनम श्रीवास्तव

3 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चलो आज इंसानियत बाँट आएँ ।
खूबसूरत भाव से सजी सुंदर रचना ।

Bruce ने कहा…

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सूबेदार ने कहा…

बहुत सुंदर कविता "इंसानियत की दौलत सबमें लूटा दें।"