गुरुवार, 27 नवंबर 2008

डर लगता है


कभी ख़ुद पे गुमां किया करते थे हम,
अब तो आइना देखते भी डर लगता है.

चाहतें थीं क्या और कहाँ आ गए हम,
अब तो ख्वाब देखते भी डर लगता है.

बातें बयां करते कभी थकते नहीं थे हम,
अब तो बात जुबान तक लाने में डर लगता है.

कभी महफिले शान हुआ करते थे हम,
अब तो अपनी परछाईं से भी डर लगता है.

गम के अंधेरों से नहीं घबराते थे हम,
अब तो उजाला देखते भी डर लगता है.
………………
पूनम

1 टिप्पणी:

SAJAN.AAWARA ने कहा…

AB TO PARCHAYI SE BHI DAR LAGTA HAI. . .
KAFI ACHI PANKTIYAN HAI.
JAI HIND JAI BHARAT