स्त्री जो हर रिश्तों के डोर से बंधी हुई है।सबसे पहले किसी की बेटी बन कर,फ़िर बहन ,ननद,भाभी ,किसी कि सखा फ़िर किसी कि पत्नी और अन्तत: मां बनती है। हर रूप में वह अपने को समर्पित करती चलती है,पूरी तन्म्यता के साथ। तभी तो स्त्री को मां के रूप में एक महान दर्जा दिया गया है।हांलाकि उसको प्रतिपल हर क्षेत्र मे आगे लाने के लिये पिता भाई पति और बच्चों का भी सहयोग मिलता रहा है।बहुत कुछ अपवादों को छोड कर।तो आज हम मातृ-दिवस के अवसर पर मां के हर रूपो को याद कर हम उनको शत-शत नमन करते हैं।
स्त्री
बदल गया है अब स्त्री का प्रारूप
अब स्त्री परदे की ओट में रह कर ही
सम्मान नहीं करती बल्कि उससे बाहर
निकल कर मधुर व समय पड़ने पर
कठोर बन कर सम्मान देना व लेना
भी जानती है।
आज भी स्त्री ने अपना मूल रूप नहीं
खोया है,जिसमें है स्नेह, ममता का
अथाह सागर,यदि उसके आंचल तले
अमृत का सागर है तो ह्र्दय में किसी
को भस्म करने के लिये दावानल रूप
स्रोत भी फ़ूट सकता है।
स्त्री
क्योंकि स्त्री जो अब बन चुकी है
एक चट्टान,उस पर अब किसी तरह
की मुश्किलों का असर नही पड्ता
चाहे ओले बरसे,आंधी हो या तूफ़ान
उसके अंदर आ चुकी है अपनेआपको
अडिग रखने की अदभुतक्षमता।
,अब वह वक्त बे वक्त आंसू
नही बहाया करती,असहाय पडने पर
कातर नेत्रों से नही देखती,क्योन्कि
अब वह पूरी तरह से समझ चुकी
है स्त्री के गुनों को पहचानना।
स्त्री
सीख चुकी है वो परिस्थितियों से लडना
प्रतिपल हर आगाज़ को अंजाम देने को
तैयार,जिसमे आ चुका है विश्वास,अपने
अस्तित्व की रक्षा व् हक़ के लिये लडना।
स्त्री जो हमेशा से धरती का दूसरा रूप,
यानि सहन शक्ति की परिभाषा मानी
जाती है,पर जैसे बहुत मथने पर
सागर मे भी तबाही मच जाती है
वैसे ही स्त्री भी अति होने पर मां
चंडिका बन कर अपने आपको हर
पल रखती है तैयार।
स्त्री
स्त्री जो अब केवल रसोंई घर से
नही जुडी, अब वो इतना आगे
बढ चुकी है कि राजनीति,सामजिक
आर्थिक हो या मानसिक हर स्तर
पर अपने आपको वो बेहतर
और बेहतर ढंग से प्रस्तुत करती
जा रही है।
क्योंकि स्त्री अब स्त्री नही
बन चुकी है एक चट्टान
एक मां की तरह सशक्त।
पूनम
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43 टिप्पणियां:
बहुत उम्दा व लाजवाब । आपको मातृ दिवस की बहुत-बहुत बधाई
लाजवाब प्रस्तुती .......
bahut sunder aaj kee naree ka........
bahut pasand aaya...........sunder bhavo kee abhivykti..... ek sunder rachana ke jariye..........
naaree ka chitran se tatpary tha mera ek shavd choot gaya tha CHITRAN .
"क्योन्कि स्त्री अब स्त्री नही
बन चुकी है एक चट्टान
एक मां की तरह सशक्त्।"
वाह!बाहुत ही बढ़िया!
कुंवर जी,
स्त्री
सीख चुकी है वो परिस्थितियों से लडना
प्रतिपल हर आगाज़ को अंजाम देने को
तैयार,जिसमे आ चुका है विश्वास,अपने
अस्तित्व की रक्षा व् हक़ के लिये लडना
bahut hi sahi prastutikaran
मेरा भी नमन ।
अच्छा लिखा आपने .........
bahut hi sunda rachna...bahut achha likha hai..
बहुत उम्दा व लाजवाब ।
bahut acchhi kabita likhi hai apne,lekin photo acchha nahi hai aise samay ham gargi,rani Laxmi bai, durgawati,sabitri,damyanti ityadi ko bhul jate hai.
apki rachna khubsurat hai.
dhanyabad.
मात्रेय नम: !
नारी सशक्तिकरण की दिशा में बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
हार्दिक शुभकामनाएँ
माँ को प्रणाम इस [सबकी]माँ को विशेष रूप से प्रणाम
स्त्री के हर रूप को नमन है .... लाजवाब प्रस्तुति है ...
बहुत सुंदर जी
सुन्दर एहसासों से भरी अच्छी रचना...
" सुन्दरतम रचना; भावमयी"
क्योन्कि स्त्री अब स्त्री नही
बन चुकी है एक चट्टान
एक मां की तरह सशक्त्।
aaj ki stri ki tarah shashakt rachna.......:)
निस्संदेह मां को नमन है।
बहुत अच्छी प्रस्तुति पूनम जी.
'सीख चुकी है वो परिस्थितियों से लडना
प्रतिपल हर आगाज़ को अंजाम देने को तैयार'
-बिलकुल सही कहा आपने .
आज की स्त्री में आत्मविश्वास है ...खुद को पहचानने की क्षमता भी...मातृ दिवस की शुभकमनाएं.
जोरदार रचना । नारी की अदम्यता का बेबाक निरूपण ।
सुंदर । आज के नारी का सही चित्रण ।
क्योन्कि स्त्री अब स्त्री नही
बन चुकी है एक चट्टान
एक मां की तरह सशक्त्
लाजवाब प्रस्तुति है
bahut hi khoobsurat...
maa ...
yeh shabd hi aisa hai ki iske aage kuch bolne ki jaroorat hi nahi hai.....
yun hi likhte rahein...
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mere blog mein is baar...
जाने क्यूँ उदास है मन....
jaroora aayein
regards
http://i555.blogspot.com/
स्त्री सीख चुकी है वो परिस्थितियों से लडना प्रतिपल हर आगाज़ को अंजाम देने को तैयार,जिसमे आ चुका है विश्वास,अपने अस्तित्व की रक्षा व् हक़ के लिये लडना।
Aapki baat se sahmat hoon.Sarthak lekhan.badhai.
सुन्दर प्रस्तुति है पूनम जी।
बहुत ही सुन्दर और शानदार रचना लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!
स्त्री और उसके सामाजिक स्थान पर लिखी गई बहुत सुन्दर रचना !
सबसे पहले क्षमा… किसी तकनीकी गड़बड़ी के कारण आपकी पोस्ट का पता न चल पाया और हम यह पोस्ट पढने से वंचित रह गये..
अब इस पोस्ट के विषय में.. आपने मदर तेरेसा की तस्वीर लगाई तो याद आया कि जब उन्होंने इस पार्थीव शरीर का त्याग किया था तो मैं उनके दर्शन करने गया था और आज भी उनके चेहरे की वह असीम शांति मुझे याद है.. यह तब की बात है जब मैं कोलकाता में था..
कोलकाता से एक और बात याद आई जो आपके पोस्ट में कही बात को बल देती है..बंगाल वह भूमि है जहाँ बेटी को माँ कह कर सम्बोधित करते हैं... शायद इससे बड़ी श्रद्धा स्त्री के प्रति नहीं हो सकती..
लिखने में इतनी देर ना लगाया करें !!!
या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
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mere blog par meri nayi kavita,
हाँ मुसलमान हूँ मैं.....
jaroor aayein...
aapki pratikriya ka intzaar rahega...
regards..
http://i555.blogspot.com/
स्त्री शक्ति को आपके पोस्ट के मार्फ़त वंदन......!
समाज बदल रहा है....अब स्त्री शक्ति को कोई नहीं रोक पायेगा......!
अच्छी प्रस्तुति
srtee nahi hatee to sristee kaa nirmaan hi nahi hua hota bahoot achha
माँ को लेकर आपने बहुत बढ़िया कविता लिखी..बधाई.
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'पाखी की दुनिया' में 'अंडमान में आए बारिश के दिन'
बहुत उम्दा
mere blog par meri nayi kavita,
jaroor aayein...
theek baat, naree wakayee prakriti ka aadhaar hai.
Rachna to gazab hai..! Koyi shak nahi..par bahut dinon se aapne kuchh likha nahi....aapka lekhan padhne kee hamesha ichha rahti hai!
lajwab kavita...aur pic bhi
नयी पोस्ट लिखेँ . बहन जी ।
क्योंकि स्त्री अब स्त्री नही
बन चुकी है एक चट्टान
एक मां की तरह सशक्त ..
आपकी भावनाओं को नमन है ... मातृ दिवस पर माँ की प्रतिष्ठा को नयी उँचाइयाँ दे रही है आपकी रचना ... बहुत ही लाजवाब है ...........
man choo gayi...!
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