नई किताब
शीर्षक : कहानी तोते राजा की(पांच बाल रंग नाटक)
नाटककार: हेमन्त कुमार
प्रकाशक : काव्य प्रकाशन रेवती कुंज ,हापुड़ –245101
फ़ोन(मो—09368461660
पृष्ठ संख्या: 146 मूल्य:दो सौ रूपये।
नाटककार: हेमन्त कुमार
प्रकाशक : काव्य प्रकाशन रेवती कुंज ,हापुड़ –245101
फ़ोन(मो—09368461660
पृष्ठ संख्या: 146 मूल्य:दो सौ रूपये।
स्कूलों में गर्मी की छुट्टियां शुरू होते ही अभिभावकों को यह चिन्ता सताने लगती है कि आखिर बच्चे इन छुट्टियों में क्या करें। मनोरंजन के तमाम साधन खोजे जाने लगते हैं,पर आज के इस प्रतिस्पर्धात्मक समय में केवल मनोरंजन ही काफ़ी नहीं है। आउटडोर खेलों की सुविधा भी हर जगह नहीं मिल पाती है। पढ़ाई से ऊबे हुये बच्चों को दरअसल एक ऐसा माध्यम चाहिये जो मनोरंजक भी हो और शिक्षाप्रद भी।
नाटक एवं रंगमंच एक ऐसा ही माध्यम है,जिसके द्वारा जटिल से जटिल बात भी बच्चों को आसानी से समझाई जा सकती है।दृश्य एवं श्रव्य---दोनों ही माध्यमों से जुड़ा होने के कारण बच्चों के व्यक्तित्व के विकास में नाटकों की भूमिका अत्यन्त ही महत्वपूर्ण होती है। नाटकों का जो असर बच्चों पर पड़ता है, वह स्थाई होता है। इस सन्दर्भ में हम महात्मा गांधी का उदाहरण ले सकते हैं। बचपन में ‘सत्य हरिश्चन्द्र’ नाटक को देखने के बाद उनके मन पर सच बोलने का ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने आजीवन सत्यव्रत का पालन किया।
बच्चों के रंगमंच के साथ जुड़ी कुछ दिक्कतों में से एक दिक्कत यह भी है कि अच्छे नाट्य आलेख होते हुये भी,प्रचार-प्रसार के अभाव में उनकी जानकारी बच्चों तक नहीं पहुंच पाती है। बच्चों के अभिभावक तथा शिक्षक भी इस ओर प्रायः कम ही जागरूक रहते हैं।
इन गर्मी की छुट्टियों में नाटक में रुचि रखने वाले बच्चे और संस्थायें हाल ही में प्रकाशित हेमन्त कुमार के बाल रग नाटकों के संग्रह ‘कहानी तोते राजा की’ के नाटकों का उपयोग अपनी रंगमंचीय रुचियों को साकार करने के लिये कर सकते हैं। ये नाटक मुख्यतः मंचीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर ही लिखे गये।
इस संग्रह में कुल पांच बाल नाटक हैं। लम्बे बाल नाटक ‘कहानी तोते राजा की’ के माध्यम से उन तामाम समस्याओं पर करारा व्यंग्य किया गया है,जो आज हमारे बच्चों की शिक्षा व्यवस्था के सामने सवालिया निशान बनकर खड़ी हैं। इस नाटक के माध्यम से आजादी के बाद शैक्षिक सुधारों के नाम पर चलाये गये तमाम अभियानों की न केवल निरर्थकता नजर आती है,बल्कि इन अभियानों के नाम पर मिलने वाला धन अंततः किन जेबों में जाता है,उनकी ओर भी इशारा किया गया है। इस बंदर बांट के बीच ठगे से रह जाते हैं केवल बच्चे। नाटक के अंत में जब बच्चे आकर कहते हैं कि यह तो एक झलक भर है,असली कहानी तो तब पूरी होगी जब हमें हमारे अधिकार मिलेंगे,हमारे बस्ते हल्के होंगे,हमारे स्कूल बदलेंगे और जब हम एक साथ पढ़ेंगे लिखेंगे। तो लगता है कि आज के बच्चे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक और सजग हैं। यही इस नाटक की सार्थकता है। आज जब कि ‘शिक्षा का अधिकार’ अधिनियम देश में लागू हो चुका है,ऐसे में शैक्षिक वातावरण बदले बिना यह कितना कारगर होगा,इसका अनुमान इस नाटक से लगाया जा सकता है।
इस संग्रह का दूसरा नाटक ‘पोलमपुर का उल्टा पुल्टा’ भी पहले जैसा व्यंग्य आधारित बाल नाटक है। जिसमें महारानी पोम्पाबाई के उल्टे पुल्टे फ़रमानों के कारण पैदा हुयी अव्यवस्था को बहुत ही प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया गया है।
अगले तीन नाटक अपेक्षाकृत छोते नाटक हैं। ‘जैसी करनी वैसी भरनी’ जंगल की न्याय व्यवस्था पर केन्द्रित है,जिसमें जंगल की व्यवस्था को न मानने वाले धूर्त भेड़िये को कोड़ों की सजा दी जाती है। नाटक ‘मछुआ और काना बैल’ त्ब्बत की एक लोक कथा पर आधारित है। इसमें पर्यावरण तथा जल और जीवों के संरक्षण को रेखांकित किया गया है। अंतिम नाटक ‘गुरू घंटाल चेला चंडाल’ गावों में अशिक्षा, अज्ञानता तथा अंधविश्वास के चलते होने वाली दिक्कतों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है। इसमें इन बातों को दिखाया गया है कि अशिक्षा और अज्ञानता ही हमारी प्रगति और विकास की राह की सबसे बड़ी बाधायें हैं।
इन नाटकों की सबसे खास बात यह है कि इन्हें बहुत ही आसानी से मंचित किया जा सकता है। इनके लिये कोई भव्य सेट तथा विशेष मंच सामग्री की जरूरत नहीं है। संवाद प्रायः छोटे छोटे हैं और कई जगह काव्यात्मक भी हैं। जिन्हें आसानी से याद किया जा सकता है। नट - नटी या फ़िर सूत्रधार के माध्यम से नाटक की कथावस्तु कविताओं के द्वारा प्रस्तुत की गयी है,जो नाटक मे रोचकता पैदा करती है। और कहीं कहीं गम्भीर संदेश भी देती है-----आप सभी विद्वान जनों से
मेरे भी हैं चंद सवाल।
आजादी को बीत चुके हैं
अब तो पूरे तिरसठ साल ॥
इर क्यों लुट जाती है नारी
बीच सड़क पर देश में आज।
थोड़े से पैसों के पीछे
जल जाती क्यों नारी आज॥
00 00 00 00
बेटा हो तो बजें नगाड़े
बेटी क्यों मनहूस है आज।
अखबारों की हर सुर्खी में
सिसक रही क्यों लड़की आज॥अच्छी साज-सज्जा वाली इस पुस्तक के सभी बाल नाटक मंचन योग्य तो हैं ही,साथ ही पठनीय भी कम नहीं हैं।
000000कौशल पाण्डेय
हिन्दी अधिकारी
आकाशवाणी ,पुणे ।
मोबाइल न0-:09823198116
पूनम द्वारा प्रकाशित
नाटक एवं रंगमंच एक ऐसा ही माध्यम है,जिसके द्वारा जटिल से जटिल बात भी बच्चों को आसानी से समझाई जा सकती है।दृश्य एवं श्रव्य---दोनों ही माध्यमों से जुड़ा होने के कारण बच्चों के व्यक्तित्व के विकास में नाटकों की भूमिका अत्यन्त ही महत्वपूर्ण होती है। नाटकों का जो असर बच्चों पर पड़ता है, वह स्थाई होता है। इस सन्दर्भ में हम महात्मा गांधी का उदाहरण ले सकते हैं। बचपन में ‘सत्य हरिश्चन्द्र’ नाटक को देखने के बाद उनके मन पर सच बोलने का ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने आजीवन सत्यव्रत का पालन किया।
बच्चों के रंगमंच के साथ जुड़ी कुछ दिक्कतों में से एक दिक्कत यह भी है कि अच्छे नाट्य आलेख होते हुये भी,प्रचार-प्रसार के अभाव में उनकी जानकारी बच्चों तक नहीं पहुंच पाती है। बच्चों के अभिभावक तथा शिक्षक भी इस ओर प्रायः कम ही जागरूक रहते हैं।
इन गर्मी की छुट्टियों में नाटक में रुचि रखने वाले बच्चे और संस्थायें हाल ही में प्रकाशित हेमन्त कुमार के बाल रग नाटकों के संग्रह ‘कहानी तोते राजा की’ के नाटकों का उपयोग अपनी रंगमंचीय रुचियों को साकार करने के लिये कर सकते हैं। ये नाटक मुख्यतः मंचीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर ही लिखे गये।
इस संग्रह में कुल पांच बाल नाटक हैं। लम्बे बाल नाटक ‘कहानी तोते राजा की’ के माध्यम से उन तामाम समस्याओं पर करारा व्यंग्य किया गया है,जो आज हमारे बच्चों की शिक्षा व्यवस्था के सामने सवालिया निशान बनकर खड़ी हैं। इस नाटक के माध्यम से आजादी के बाद शैक्षिक सुधारों के नाम पर चलाये गये तमाम अभियानों की न केवल निरर्थकता नजर आती है,बल्कि इन अभियानों के नाम पर मिलने वाला धन अंततः किन जेबों में जाता है,उनकी ओर भी इशारा किया गया है। इस बंदर बांट के बीच ठगे से रह जाते हैं केवल बच्चे। नाटक के अंत में जब बच्चे आकर कहते हैं कि यह तो एक झलक भर है,असली कहानी तो तब पूरी होगी जब हमें हमारे अधिकार मिलेंगे,हमारे बस्ते हल्के होंगे,हमारे स्कूल बदलेंगे और जब हम एक साथ पढ़ेंगे लिखेंगे। तो लगता है कि आज के बच्चे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक और सजग हैं। यही इस नाटक की सार्थकता है। आज जब कि ‘शिक्षा का अधिकार’ अधिनियम देश में लागू हो चुका है,ऐसे में शैक्षिक वातावरण बदले बिना यह कितना कारगर होगा,इसका अनुमान इस नाटक से लगाया जा सकता है।
इस संग्रह का दूसरा नाटक ‘पोलमपुर का उल्टा पुल्टा’ भी पहले जैसा व्यंग्य आधारित बाल नाटक है। जिसमें महारानी पोम्पाबाई के उल्टे पुल्टे फ़रमानों के कारण पैदा हुयी अव्यवस्था को बहुत ही प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया गया है।
अगले तीन नाटक अपेक्षाकृत छोते नाटक हैं। ‘जैसी करनी वैसी भरनी’ जंगल की न्याय व्यवस्था पर केन्द्रित है,जिसमें जंगल की व्यवस्था को न मानने वाले धूर्त भेड़िये को कोड़ों की सजा दी जाती है। नाटक ‘मछुआ और काना बैल’ त्ब्बत की एक लोक कथा पर आधारित है। इसमें पर्यावरण तथा जल और जीवों के संरक्षण को रेखांकित किया गया है। अंतिम नाटक ‘गुरू घंटाल चेला चंडाल’ गावों में अशिक्षा, अज्ञानता तथा अंधविश्वास के चलते होने वाली दिक्कतों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है। इसमें इन बातों को दिखाया गया है कि अशिक्षा और अज्ञानता ही हमारी प्रगति और विकास की राह की सबसे बड़ी बाधायें हैं।
इन नाटकों की सबसे खास बात यह है कि इन्हें बहुत ही आसानी से मंचित किया जा सकता है। इनके लिये कोई भव्य सेट तथा विशेष मंच सामग्री की जरूरत नहीं है। संवाद प्रायः छोटे छोटे हैं और कई जगह काव्यात्मक भी हैं। जिन्हें आसानी से याद किया जा सकता है। नट - नटी या फ़िर सूत्रधार के माध्यम से नाटक की कथावस्तु कविताओं के द्वारा प्रस्तुत की गयी है,जो नाटक मे रोचकता पैदा करती है। और कहीं कहीं गम्भीर संदेश भी देती है-----आप सभी विद्वान जनों से
मेरे भी हैं चंद सवाल।
आजादी को बीत चुके हैं
अब तो पूरे तिरसठ साल ॥
इर क्यों लुट जाती है नारी
बीच सड़क पर देश में आज।
थोड़े से पैसों के पीछे
जल जाती क्यों नारी आज॥
00 00 00 00
बेटा हो तो बजें नगाड़े
बेटी क्यों मनहूस है आज।
अखबारों की हर सुर्खी में
सिसक रही क्यों लड़की आज॥अच्छी साज-सज्जा वाली इस पुस्तक के सभी बाल नाटक मंचन योग्य तो हैं ही,साथ ही पठनीय भी कम नहीं हैं।
000000कौशल पाण्डेय
हिन्दी अधिकारी
आकाशवाणी ,पुणे ।
मोबाइल न0-:09823198116
पूनम द्वारा प्रकाशित
22 टिप्पणियां:
Bal sahitya ek upekshit si vidha hai.Aisi sthithi me is disha me koi bhi prayas sarahniya hai.
Aapki maa ke swasthyalabh ki kamna karti hoon .
बच्चों का यह कहना कि हमें हमारे अधिकार मिलेंगे,हमारे बस्ते हल्के होंगे,हमारे स्कूल बदलेंगे और जब हम एक साथ पढ़ेंगे लिखेंगे......बहुत सही और सार्थक लगा...... किताब का रेविऊ ..... आपके द्वरा बहुत अच्छा लगा.....
sabse pahile to badhai grahan kare.......
bahut bahut hardik badhai...
Bachcho ke manoranjan aur vikas se judi sahityya ke baare me padh kar achchha laga.......koshish karunga, ye hame uplabdh ho paye!!
par Bachchho ke dwara apne adhikaro ke liye khada hona......kuchh ajeeb sa laga...:)
achchha to ye rahta ki bachche ke parents unke behtari ke liye khade hon........:)aur yahi baat bachche bhi jaane.......
Mahfooz bhai aapke baat ko kaat raha hoon, sorry!
बच्चों को पढ़ाने के पहले स्वयं ही पढ़नी पड़ेगी ।
पुस्तक समीक्षा अच्छी लगी. सच आज कल बच्चों के लिए वो साहित्य नहीं उपलब्ध हो पाता जो जब हम छोटे होते थे तब पढ़ते थे. अच्छी लगी पोस्ट और जानकारी
आज कल बाल साहित्य लगभग लुप्त सा हो गया है |इस समय इस विषय लिखना सराहनीय है
मंगलवार 15- 06- 2010 को आपकी रचना ( कुछ तो ऐसा हो जाता )... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है
http://charchamanch.blogspot.com/
किताब की अच्छी व्याख़्या है
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
बाल साहित्य की अभिवृद्धि करती यह पुस्तक पढने के बाद ही टिप के योग्य है ।
डा 0 पाण्डेय की समीक्षा प्रशंसनीय है ।
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
sahitya hamara darpan hai.
Bal sahitya ke liye bahut badhai
dhanyabad
बेटा हो तो बजें नगाड़े
बेटी क्यों मनहूस है आज।
अखबारों की हर सुर्खी में
सिसक रही क्यों लड़की आज ..
शशक्त लिखा है ... सत्य लिखा है ..
आपने इस बच्चों की किताब की अच्छी समीक्षा की है ...
Poonam ji,
Haye main sharam se laal hua!!!
Bhavishya ke liye note kar lee hai ye kitaab!
Ha ha ha!
bal saahitya ki rachanaa bahut achhi samiksha hai -PASHASHAYAR
bahut badhiya hai aur saahitya ka achha samiksha hai
आजकल ऐसी किताबों की आवश्यकता है जो कम्प्यूटर गेम्स खेलने वाले बच्चों को आकर्षित कर पाएँ...अक्सर बच्चे शुरु-शुरु में तो रुचि दिखाते हैं लेकिन बाद में चलकर वे किताबों के प्रति उदासीन हो जाते हैं...ऐसे में यह समीक्षा हमें आश्वासन देती है और उत्साहित करती है यह पुस्तक खरीदने को..
बहुत ही अच्छी समीक्षा की है.पुस्तक रुचिकर लग रही है.
बच्चों के लिए इस तरह की नाटक पुस्तकों का अभाव है.मुझे एक बार मंच पर बच्चों का नाटक कराना था..अंतर्जाल पर भी कहीं नहीं मिला था.न ही कहीं कोई किताब मिल सकी थी ..हार कर खुद ही एक कहानी से नाटक बनाना पड़ा था..
-- हेमंत कुमार जी को बहुत बहुत बधाई .
-- बच्चों के लिए लिखे जा रहे इस तरह के लेखन को प्रोत्साहन मिलना चाहिये.
बहुत अच्छी समीक्षा है जानकारी के लिये धन्यवाद्
बेटा हो तो बजें नगाड़े
बेटी क्यों मनहूस है आज।
अखबारों की हर सुर्खी में
सिसक रही क्यों लड़की आज॥
bahut saarthak post ,sundar
एक टिप्पणी भेजें