शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

अन्जाना डर


मां ने लाडले को बतलाया

बड़े जतन से समझाया

बेटा सीधे रास्ते स्कूल जाना

कहीं पर भी न रुकना

स्कूल से सीधे घर आना

किसी अन्जान के साथ

कहीं न जाना

मासूम ने मासूमियत से कहा अच्छा।

बच्चा दिन ढलने पर घर न आया

मां का आशंकित मन घबराया

वह पागलों सी दौड़ी

स्कूल की तरफ़ बढ़ी

दरबान भुनभुनाया

वो तो किसी के साथ गया

कह कर छुटकारा पाया।

किसी ने बतलाया

कहीं कोई लड़का मिला है

शायद बेहोश पड़ा है

विह्वल होकर मां ने बेटे को झकझोरा

कहा था न

किसी अनजान के साथ न जाना

बच्चे ने टूटे फ़ूटे शब्दों में

सिर्फ़ इतना ही कहा मां---

पर वो तो पड़ोस के च-----च्चा थे।

000

पूनम

27 टिप्‍पणियां:

प्रवीण त्रिवेदी ने कहा…

समाज का एक कडवा सच ! धन्यवाद !

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

पूनम जी! आए दिन सामने दिखने वाला सच... भरोसा कर लिया जिनका उन्होंने ही लूटा!!

हास्यफुहार ने कहा…

किसपर भरोसा करें?

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

आजकल तो अपने ही साए पर भ्रोसा नहीं किया जा सकता।

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

विश्वास और विश्वासघात में ज्यादा फ़र्क नहीं रहा है। बदलते समय की खासियत है ये।

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत खराब दौर से गुज़र रहे हैं हम। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
पक्षियों का प्रवास-२, राजभाषा हिन्दी पर
फ़ुरसत में ...सबसे बड़ा प्रतिनायक/खलनायक, मनोज पर

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कड़वापन घोलता तथ्य।

बेनामी ने कहा…

आखिर भरोसा करें भी तो किसपर ?

Devatosh ने कहा…

Poonam Ji.... Badhaai. apney Ch...chaa they. Is baat ne sb kuch kah diya.

अजय कुमार ने कहा…

बदलते समाज का सच ,किस पर भरोसा करें ।

RAJWANT RAJ ने कहा…

aise chacha chhootne nhi chahiye mgr log apni ejjat ka jnaja na uth jaye is dr se muh nhi kholte hai our anjane me hi apradhi ke shyogi bn jate hai .
jb assi prtishat logo me anyay ke khilaf aawaj uthane ka madda paida ho jayega tb nishchit roop me ye bees prtishat ashay ho jayege .
aapki kvita schet hone ki prerna deti hai jiski aaj ke smaj me bhut avshykta hai . thanks di !

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

शर्मनाक।
..............
यौन शोषण : सिर्फ पुरूष दोषी?
क्या मल्लिका शेरावत की 'हिस्स' पर रोक लगनी चाहिए?

rashmi ravija ने कहा…

ओह्ह बच्चे का मासूम मन...किसपे करे भरोसा...??
कडवे सच को उजागर करती रचना

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

dardnaak...........lekin satya!!

aapne samaj ka aina dikha diya..:(

कडुवासच ने कहा…

... बेहद संवेदनशील रचना ... शिक्षाप्रद !!!

रचना दीक्षित ने कहा…

उफ्फ्फ !!!!!! कितना सच कितना कड़वा

राजेश उत्‍साही ने कहा…

दस में से एक उदाहरण ऐसा हो सकता है। लेकिन इसके आधार पर उसका सामान्‍यीकरण नहीं किया जाना चाहिए।
इस लिहाज से आपकी यह पोस्‍ट एक भ्रम पैदा करती है और एक नकारात्‍मक बात को स्‍थापित कर रही है। मुश्किल यह भी है कि जितने टिप्‍पणीकार आ रहे हैं वे भी आपकी बात को समर्थन ही दे रहे हैं।

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

दगा देने वाला हमेशा कोई पास का ही होता है
जो आपकी गतिविधियों से अच्छी तरह परिचित होता है ....
बहुत करीने से आपने अपनी बात कही .....

चन्द्र कुमार सोनी ने कहा…

घोर-कलयुग का ये भी एक उदाहरण हैं.
लेकिन, सभी एक जैसे नहीं होते हैं, ये भी याद रखने वाली बात हैं.
सावचेत करने वाली पोस्ट के लिए हार्दिक आभार.
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

निर्मला कपिला ने कहा…

ओह आज कोई किस पर विश्वास करे। आज का सच। शुभकामनायें।

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

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राजेश उत्साही की बात ही मेरी बात भी है!
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डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

कुछ शब्दों में सच्चाई को बाँध दिया आपने
पूनमजी.... माँ हूँ इसलिए कहीं भीतर तक उतर गए ये शब्द... आभार

Alpana Verma ने कहा…

किस पर यकीन किया जाये किस पर नहीं!
कविता ने इसी समस्या एक पहलू को उजागर कर दिया है.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

उफ़ ... कितना दिल दहलाने वाली सच्चाई लिखी है ... आज का दौर कैसा आ गया है ... किस पर विश्वास किया जाए ...

VIJAY KUMAR VERMA ने कहा…

bahut hee khoobsurtee se aapne samaj ke karve sach ko bachche ke masumiyat ke madhaym se prstut kiya

ZEAL ने कहा…

.

A bitter truth of today's society. Indeed very sad !

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सूबेदार ने कहा…

मा क़ा विह्बल मन ------ कबिता झकझोरने वाली बहुत सुन्दर आती प्रसंसनीय
बहुत-बहुत बधाई इस कबिता के लिए ----एक अच्छी रचना.