लोगों की भीड़ में खो गया है जो कहीं
आज भी मैं ढूँढता हूँ अपने उस मकान को।
अरसे पहले जिसे छोड़ कर चला गया था
आज देखता हूँ मैं शहर में बदले अपने गाँव को।
कुछ निशानियाँ थीं मशहूर जो मेरे घर की
उनकी जगहों पर पाता हूँ लम्बी लम्बी इमारतों को।
पुरवैया बहती थी जो मेरे घर के सामने
ढूँढ रहीं नज़रें मेरी उस नीम की ठंडी छांव को।
गप्प लड़ाया करते थे जहाँ खड़े खड़े यार सभी
आज आ गये आँख में आँसू याद कर उन शामों को।
चच्चा के नाम से थे मशहूर जो मेरे घर के दाहिने
खोजती हैं नज़रें उनकी पान की दुकान को।
देखते ही देखते मानो सब कुछ बदल गया
खड़ा हूँ अचम्भे से देख दुनिया के बदलते रंग को।
000
पूनम
40 टिप्पणियां:
समय समय की बात है ...!
कविता मुझको समझ ना आयी ........कर रहा हूँ समझने की पढ़ाई !
ये दुनिया बहुत तेजी से बादल रही है..शायद कुछ सालों के बाद कई जगहों से गाँव का नामोनिशान मिट जायेगा..
मेरे ब्लॉग पर इस बार
उदास हैं हम ....
वक्त की रफ़तार भी कभी थमी है भला, आज हमारे वो मकान नहीं, पान की दुकान नहीं- पर एक कल वह भी होगा जब हम भी नहीं होंगे जो इन्हें ढूंढ सके...। परिवर्तन ही सच्चाई है युग की। यादों में जाकर आपने अच्छा किया, पर अधिक ना ढूंढना वरना वे तो नहीं मिलेंगे, गम अवश्य मिल जाएगा।
वक्त के साथ परिवेश भी बदल रहा है ..अच्छी प्रस्तुति
badlte waqt ke saath bahut kuchh badal raha hai..
देखते ही देखते मानो सब कुछ बदल गया खड़ा हूँ अचम्भे से देख दुनिया के बदलते रंग को। ...
...बहुत अच्छी प्रस्तुति
हर जगह यही हाल है. सबके दिलों का हाल लिख डाला आपने तो
बहुत खुब जी समय बदलता हे, सुंदर रचना धन्यवाद
सही कहा है आपने... कहाँ वो गली के नुक्कड़, वहाँ वो नीम और पीपल.
रेत जैसे सर हैं ता-हद्दे नज़र....
ये हैं आजकल से शहर
jane kahan kho gaya hai.... per khoj itne vrihat star pe hai ki aasha jagi hai ... wah makaan , wah ghar mil jayega
ढूढ़ते ढूढ़ते उन मुकामों को ये जहाँ भी खो जाता है।
बीते हुए समय की यादें जिंदगी भर साथ नहीं छोड़तीं..बहुत भावुक अभिव्यक्ति..आभार
बहुत अच्छी !
बहुत बढ़िया लगी यह रचना
यही तो दुनिया कि रीत है !
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क्यूँ झगडा होता है ?
पूनम जी नमस्ते ---बहुत सुन्दर कबिता गाव को शहर में बदलते हुए देखा अपने सुद्ध भाव से अपनी कबिता में दर्शाया मन को छू लेने वाली अपने अतीत कि याद दिलाया बहुत अच्छा लगा .
बहुर-बहुत धन्यवाद इतनी अच्छी कबिता के लिए.आप लिखती रहिये इसका संकलन हो तब याद दिलाईये.
उम्दा प्रस्तुति ....
समय के साथ सब कुछ बदल जाता है ये तो प्रकृति का नियम है।अच्छी रचना बधाई।
पूनम जी.. इसी दर्द को तो शायर ने बयान किया था यह कहकर कि मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन, वो काग़ज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी... इस सीमेण्ट के जंगल में कितने घर, वृक्ष और पंछी गुम हो गए, इसका हिसाब बहुत मुश्किल है.. आपकी कविता हर किसी का दर्द बयान करती है!!
पुरवैया बहती थी जो मेरे घर के सामने
ढूँढ रहीं नज़रें मेरी उस नीम की ठंडी छांव को।
सब ढूँढते रहते हैं...और चीज़ों का रूप badal जाता है.
इस खोने के दर्द को बहुत महसूस करके लिखा है
poonam acchee prastuti...........kal ka aaj nahee aur aaj ka kal nahee rahne wala.......
ye hee jeevan gati hai.....
चीजें बड़ी तेजी से बदलती हैं... बस यादें रह जाती हैं.
महाभारत धर्म युद्ध के बाद राजसूर्य यज्ञ सम्पन्न करके पांचों पांडव भाई महानिर्वाण प्राप्त करने को अपनी जीवन यात्रा पूरी करते हुए मोक्ष के लिये हरिद्वार तीर्थ आये। गंगा जी के तट पर ‘हर की पैड़ी‘ के ब्रह्राकुण्ड मे स्नान के पश्चात् वे पर्वतराज हिमालय की सुरम्य कन्दराओं में चढ़ गये ताकि मानव जीवन की एकमात्र चिरप्रतीक्षित अभिलाषा पूरी हो और उन्हे किसी प्रकार मोक्ष मिल जाये।
हरिद्वार तीर्थ के ब्रह्राकुण्ड पर मोक्ष-प्राप्ती का स्नान वीर पांडवों का अनन्त जीवन के कैवल्य मार्ग तक पहुंचा पाया अथवा नहीं इसके भेद तो परमेश्वर ही जानता है-तो भी श्रीमद् भागवत का यह कथन चेतावनी सहित कितना सत्य कहता है; ‘‘मानुषं लोकं मुक्तीद्वारम्‘‘ अर्थात यही मनुष्य योनी हमारे मोक्ष का द्वार है।
मोक्षः कितना आवष्यक, कैसा दुर्लभ !
मोक्ष की वास्तविक प्राप्ती, मानव जीवन की सबसे बड़ी समस्या तथा एकमात्र आवश्यकता है। विवके चूड़ामणि में इस विषय पर प्रकाष डालते हुए कहा गया है कि,‘‘सर्वजीवों में मानव जन्म दुर्लभ है, उस पर भी पुरुष का जन्म। ब्राम्हाण योनी का जन्म तो दुश्प्राय है तथा इसमें दुर्लभ उसका जो वैदिक धर्म में संलग्न हो। इन सबसे भी दुर्लभ वह जन्म है जिसको ब्रम्हा परमंेश्वर तथा पाप तथा तमोगुण के भेद पहिचान कर मोक्ष-प्राप्ती का मार्ग मिल गया हो।’’ मोक्ष-प्राप्ती की दुर्लभता के विषय मे एक बड़ी रोचक कथा है। कोई एक जन मुक्ती का सहज मार्ग खोजते हुए आदि शंकराचार्य के पास गया। गुरु ने कहा ‘‘जिसे मोक्ष के लिये परमेश्वर मे एकत्व प्राप्त करना है; वह निश्चय ही एक ऐसे मनुष्य के समान धीरजवन्त हो जो महासमुद्र तट पर बैठकर भूमी में एक गड्ढ़ा खोदे। फिर कुशा के एक तिनके द्वारा समुद्र के जल की बंूदों को उठा कर अपने खोदे हुए गड्ढे मे टपकाता रहे। शनैः शनैः जब वह मनुष्य सागर की सम्पूर्ण जलराषी इस भांति उस गड्ढे में भर लेगा, तभी उसे मोक्ष मिल जायेगा।’’
मोक्ष की खोज यात्रा और प्राप्ती
आर्य ऋषियों-सन्तों-तपस्वियों की सारी पीढ़ियां मोक्ष की खोजी बनी रहीं। वेदों से आरम्भ करके वे उपनिषदों तथा अरण्यकों से होते हुऐ पुराणों और सगुण-निर्गुण भक्ती-मार्ग तक मोक्ष-प्राप्ती की निश्चल और सच्ची आत्मिक प्यास को लिये बढ़ते रहे। क्या कहीं वास्तविक मोक्ष की सुलभता दृष्टिगोचर होती है ? पाप-बन्ध मे जकड़ी मानवता से सनातन परमेश्वर का साक्षात्कार जैसे आंख-मिचौली कर रहा है;
खोजयात्रा निरन्तर चल रही। लेकिन कब तक ? कब तक ?......... ?
ऐसी तिमिरग्रस्त स्थिति में भी युगान्तर पूर्व विस्तीर्ण आकाष के पूर्वीय क्षितिज पर एक रजत रेखा का दर्शन होता है। जिसकी प्रतीक्षा प्रकृति एंव प्राणीमात्र को थी। वैदिक ग्रन्थों का उपास्य ‘वाग् वै ब्रम्हा’ अर्थात् वचन ही परमेश्वर है (बृहदोरण्यक उपनिषद् 1ः3,29, 4ः1,2 ), ‘शब्दाक्षरं परमब्रम्हा’ अर्थात् शब्द ही अविनाशी परमब्रम्हा है (ब्रम्हाबिन्दु उपनिषद 16), समस्त ब्रम्हांड की रचना करने तथा संचालित करने वाला परमप्रधान नायक (ऋगवेद 10ः125)पापग्रस्त मानव मात्र को त्राण देने निष्पाप देह मे धरा पर आ गया।प्रमुख हिन्दू पुराणों में से एक संस्कृत-लिखित भविष्यपुराण (सम्भावित रचनाकाल 7वीं शाताब्दी ईस्वी)के प्रतिसर्ग पर्व, भरत खंड में इस निश्कलंक देहधारी का स्पष्ट दर्शन वर्णित है, ईशमूर्तिह्न ‘दि प्राप्ता नित्यषुद्धा शिवकारी।31 पद
अर्थात ‘जिस परमेश्वर का दर्शन सनातन,पवित्र, कल्याणकारी एवं मोक्षदायी है, जो ह्रदय मे निवास करता है,
पुराण ने इस उद्धारकर्ता पूर्णावतार का वर्णन करते हुए उसे ‘पुरुश शुभम्’ (निश्पाप एवं परम पवित्र पुरुष )बलवान राजा गौरांग श्वेतवस्त्रम’(प्रभुता से युक्त राजा, निर्मल देहवाला, श्वेत परिधान धारण किये हुए )ईश पुत्र (परमेश्वर का पुत्र ), ‘कुमारी गर्भ सम्भवम्’ (कुमारी के गर्भ से जन्मा )और ‘सत्यव्रत परायणम्’ (सत्य-मार्ग का प्रतिपालक ) बताया है।
स्नातन शब्द-ब्रम्हा तथा सृष्टीकर्ता, सर्वज्ञ, निष्पापदेही, सच्चिदानन्द , महान कर्मयोगी, सिद्ध ब्रम्हचारी, अलौकिक सन्यासी, जगत का पाप वाही, यज्ञ पुरुष, अद्वैत तथा अनुपम प्रीति करने वाला।
अश्रद्धा परम पापं श्रद्धा पापमोचिनी महाभारत शांतिपर्व 264ः15-19 अर्थात ‘अविश्वासी होना महापाप है, लेकिन विश्वास पापों को मिटा देता है।’
पंडित धर्म प्रकाश शर्मा
गनाहेड़ा रोड, पो. पुष्कर तीर्थ
राजस्थान-305 022
समय की बहुत सुंदर व्याख्या की आपने.... सच में ऐसा ही होता है वक़्त.... अच्छी रचना पूनमजी
time is changing continuously.
nice words to define changing time.
i liked it too much.
thanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
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This is life ! One must enjoy every moment fully.
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बीते समय में जाना चाहे दुखद समय ही क्यों न हो .... सुखद ही लगता है .... अच्छा लिखा है बहुत ...
परिवर्तन संसार का नियम है...
इसलिए ये सोच रख कर दिल को संभाल लिया जाये तो बेहतर है.
सुंदर अभिव्यक्ति.
आप सब को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
हम आप सब के मानसिक -शारीरिक स्वास्थ्य की खुशहाली की कामना करते हैं.
वक़्त की रफ़्तार को व्यक्त करती सुंदर अभिव्यक्ति.
Bilkul satya kaha aapne.
aapko s-pariwar diwali ki hardik subhkamnaye.
बहुत सुन्दर रचना है !
आपको और आपके परिवार को एक सुन्दर, शांतिमय और सुरक्षित दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें !
आप को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
मैं आपके -शारीरिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली की कामना करता हूँ
Bahut hi sahi bhav se Ek naye andaj me pesh kiya gaya hai.
दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें....पूनमजी
फिर से ढूँढता हूँ मैं भी उन जगहों को...
पहली बार आपके ब्लॉग पर आया. खाली हाथ नहीं लौट रहा हूँ.
मनोज खत्री
आपको एवं आपके परिवार को दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें!
बहुत ही सुन्दर और शानदार रचना ! बधाई!
पुरवैया बहती थी जो मेरे घर के सामने
ढूँढ रहीं नज़रें मेरी उस नीम की ठंडी छांव को।
गप्प लड़ाया करते थे जहाँ खड़े खड़े यार सभी
आज आ गये आँख में आँसू याद कर उन शामों को।..
poonam ji, puraani yaadein taja kar din aapne.
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ढूँढ रहीं नज़रें मेरी उस नीम की ठंडी छांव को।
इस बोनसाई के जमाने में अब कहाँ मिलेंगे भरे पूरे नीम और उनकी ठंठी छाँव ! मीठी सी कविता के लिए बधाई हो !!
ढूँढ रहीं नज़रें मेरी उस नीम की ठंडी छांव को।
बहुत बढ़िया लगी यह रचना
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