उजाले आजकल तुम
कहां खो गये हो
मुंह छुपा कर अपना
किन वादियों में सो गये हो।
दिल के आईने पर भी
है बुराइयों की धूल जम गयी
जो बार बार कोशिश करने
पर भी साफ़ होती नहीं।
आईने पर गर्द
इस तरह बैठ गयी
कि अब कुछ भी साफ़
नजर आता नहीं।
कभी गैर लगे अपने
कभी अपने ही लगते बेगाने
सच क्या है झूठ क्या
ये जानना अब आसां नहीं।
चेहरे पर जो नकाब लगाये
घूमते हैं लोग
उसकी ओट में क्या छुपा है
यह भी नजर आता नहीं।
अंधेरे के सन्नाटे में ही
किसी की चीख दबा दी गयी
यूं सरे आम भी कोई रोशनी
की सही राह देख पाता नहीं।
अब तो निकलो
अपने उजाले की किरणों से
अंधेरे में फ़ैल रही
इंसानियत की कालिमा
को खत्म करो।
आईने पर पड़ी हुयी
मन की गंदगी को
समाज में फ़ैल रही
अमानवीयता तथा
भ्रष्टाचार रूपी धूल की
परत को हटाओ।
दिल पर अपनी चमचमाती
खुशगवार व सुनहरी रंगत
से सबके मन में फ़ैल जाओ
ताकि धूल हटने के बाद
सभी की आंखें खुल सकें
और आईने में सब कुछ
हंसता मुस्कुराता नजर आये।
000
पूनम
23 टिप्पणियां:
achchi kavita
badhai
आशान्वित करती सुन्दर रचना ..
पूनम जी...
बहुत ही सुन्दर कविता..
अब तो निकलो अपने उजाले की किरणों से अंधेरे में फ़ैल रही इंसानियत की कालिमा को खत्म करो..
उर्जा संचार हुआ ये पढ़ कर....
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आप मेरे ब्लॉग पर आयीं अच्छा लगा , यूँ क्षमा मांग कर मुझे शर्मिंदा न करें... वैसे शायद आप मेरे ब्लॉग को फोलो नहीं कर रही हैं इसलिए समय से नयी पोस्ट का पता नहीं चल पा रहा....
बहुत सुंदर पूनमजी ..... उजाला और अँधेरे के बिम्ब को इंसानियत से सुंदर ढंग से जोड़ दिया आपने.....
उजाला = उजाले ..
आदरणीय पूनम श्रीवास्तव जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
बहुत अच्छी रचना के लिए आभारी हूं ।
आईने में सब कुछ हंसता मुस्कुराता नजर आए
कितना शुभ चिंतन है … !
रंग बातें करे , और बातों से ख़ुशबू आए …:)
मैंने स्वमूल्यांकन का आह्वान करते हुए कभी लिखा कि
शायरों की सोच का सामान तो नहीं ?
आईनों में देखिए , हैवान तो नहीं ?
लेकिन आपको एक प्यारा-सा शे'र नज़्र करते हुए विदा लेता हूं -
अंदाज़ अपने देखते हैं आईने में वो
और ये भी देखते हैं कि कोई देखता न हो … :)
अच्छा , अब आपका स्वास्थ्य कैसा है ? आराम और दवा का ध्यान रखें , कृपया !
अंत में , आप नारी शक्ति को समर्पित तीन दिन पहले आ'कर गए
विश्व महिला दिवस की हार्दिक बधाई !
शुभकामनाएं !!
मंगलकामनाएं !!!
♥मां पत्नी बेटी बहन;देवियां हैं,चरणों पर शीश धरो!♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
bahut achha poonam ,
काश देश को अपना सही रूप दिखे, इस आईने में।
सच क्या है झूठ क्या
ये जानना अब आसां नहीं।
mukhaute itne ho gaye hain ki khali chehra nazar bhi to nahi aata
मैं ज़रूरी काम में व्यस्त थी इसलिए पिछले कुछ महीनों से ब्लॉग पर नियमित रूप से नहीं आ सकी!
बहुत ख़ूबसूरत कविता लिखा है आपने ! उम्दा प्रस्तुती!
मन ही देवता मन ही इश्वर , मन से बड़ा ना कोई
मन उजियारा जब जब फैले , जग उजियारा होई
इस उजले दर्पण पर प्राणी , धूल ना जमने पाए
तोरा मन दर्पण कहलाये .
तमसों माँ ज्योतिर्गमय .
बहुत प्रेरक भाव...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
अच्छी और प्रेरक कविता...
बहुत ही सुन्दर भावों से सजी अनुपम प्रस्तुति ।
अतयंत प्रेरक और सुंदर
रामराम.
अच्छी और प्रेरक कविता| धन्यवाद|
बहुत ही सुन्दर रचना.
आईना और उजाला.
बहुत उम्दा.
सलाम
bahut prerna se bhari rachna. lekin dusro ka muh taakne ki bajaye khud hi kyu na pahal ki jaye.
समाज में फ़ैल रही
अमानवीयता तथा
भ्रष्टाचार रूपी धूल की
परत को हटाओ।
बहुत खूब काश ! यह हो सके आशा का दीप जला कर रखना ,अच्छी लगी बधाई
ujale aajkal munh chhipaye rahte hain,
ham hain ki andheron se roshni ki bheekh maangte.
nahut avcchi kavita hai aapki.badhayee.
kya baat hai.. bahut khoob..
आदरणीय पूनम जी...
बहुत ही सुन्दर कविता..
चेहरे पर जो नकाब लगाये
घूमते हैं लोग
उसकी ओट में क्या छुपा है
यह भी नजर आता नहीं।
बहुत सुन्दर रचना पूनम जी , बहुत शुभकामनायें आपको !!!
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