पापा
जी ऐसी कुर्ती ला दो
जिसमें
कलफ़ लगी कालर हो
झिलमिल
झिलमिल तारों वाली
लटकी
उसमें झालर हो।
पहन
के कुर्ती को जब
मैं
निकलूंगा घर से बाहर
देख
के मुझको लोग कहेंगे
लगता
प्यारा है राजकुवंर।
बैठूंगा
मै फ़िर घोड़ी पर
साथ चलेंगे
बाजे गाजे
परी
लाऊंगा परी लोक से
जो हो सुन्दर सबसे ज्यादा।।
पापा
ऐसी कुर्ती ला दो-----------।
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पूनम
श्रीवास्तव
6 टिप्पणियां:
बहुत प्यारी कविता....गुलाबी सी अभिव्यक्ति।
सुंदर रचना. रक्षाबंधन की शुभकामनायें.
बढ़िया रचना
वाह , बहुत सुन्दर रचना ! मंगलकामनाएं कलम को !
सुन्दर व सार्थक रचना ..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
बहुत सुंदर गीत ।
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