वो अनाथ हो गया था जब उसकी
उम्र आठ साल की थी।सर पर से मां-बाप दोनों का साया उठ गया।बिखर गया था उसका बचपन
और वो रह गया था अकेला इस पूरी दुनिया की भीड़ में।
वो था बहुत ही गरीब परिवार का।किसी ने भी आगे
बढ़ कर उसका हाथ नहीं थामा।किसी ने उसके आंसू नहीं पोंछे।पर जब लोग उस मासूम को
देखते तो सबके मुंह से बस एक आह सी निकलती—“अब
क्या करेगा ये बेचारा?क्या
किस्मत लेकर पैदा हुआ बेचारा? कैसे ज़िन्दगी पार करेगा?हाय! अनाथ हो गया बेचारा।”
उसका नाम ही बेचारा पड़ गया था।बस हर वक्त जब वह अपनी झोपड़ी से बाहर निकलता उसके
कानों में वही आवाज़ें गूँजती।सुनने को मिलती जिसे सुनते-सुनते उसका मन परेशान हो उठता।
उस
पर ईश्वर ने एक कृपा की थी।वो दृढ़ निश्चयी था। मज़बूत इरादों वाला।मां–बाप
को गुज़रे छ: महीने हो गये थे।धीरे धीरे वह भी अपने को समझाने लगा था।जब वो सोता तो
उसे सपने में मां का कहा वाक्य कानों मे सुनायी देता-“बेटा जिसका
दुनिया मे कोई नही होता उसका भगवान साथ देता है।”बस यही पंक्तियां
उसके मस्तिष्क मे घर कर गयी थीं।वह ईश्वर के सामने बैठ रोज़ हाथ जोड़ता और कहता-“हे
भगवान मुझे इतनी शक्ति दे दो कि मैं कुछ कर सकूं और अपने साथ साथ औरों का
भला कर सकूं।ईश्वर ने उसकी बात सुन ली।अब लड़के ने मन मे निश्चय
किया उसे कुछ करना है कुछ बनना है।
कच्ची उम्र,भारी काम तो वह कर नहीं
सकता था।पढा लिखा भी नहीं था। सो उसने हल्के काम करने शुरु किये। साहब लोगों
की गाडियां साफ़ करता,जूते पालिश
करता,साग सब्जी ला देता था।बदले में उसे भरपेट खाना व पगार मिल जाती थी।जितनी भी थी वह
उससे सन्तुष्ट था।दस बरस बीत गये थे।अब वह जवान हो चला था। अब
उसका काम पहले जैसा नहीं था बल्कि और बडे बडे काम करने लगा था वह।
वह लकडियां
काटता उनके गठ्ठर बनाता और उन्हें शहर बेचने ले जाता।माल ट्रकों पर लदवाता और उन्हें सही जगह भेजता था।वह काम के प्रति
पूर्ण रूप से निष्ठावान था। उसके काम से कभी किसी को कोई शिकायत नहीं
रहती थी। सभी लोग उसके काम से खुश रहते थे।
एक दिन कि बात है जब वह
लकड़ियों के गठ्ठर बना रहा था तो उसकी नज़र दूर पेड़ के
पास बैठे एक लड़के पर पड़ी।जो बमुश्किल 7-8 साल का था।वह उस लड़के
के पास गया प्यार से सिर सहलाते हुए पूछा-“क्या भूख लगी है?”उस लड़के
ने हां में सिर हिलाया।तो वह लड़का
अपना काम छोड़ कर पास की दुकान से दही जलेबी व ब्रेड ले आया और उस बच्चे
से बोला-‘लो खाओ”।बच्चा भूखा तो था ही।किसी का प्यार पाकर उसकी आखों से
झर झर आंसू बहने लगे।लडके ने कहा-“रो मत, पहले खा लो।” फ़िर लड़का
झट्पट खाने क सामान चट कर गया। तुम कहां रहते हो?लड़के
ने ना मे गर्दन हिलाई।तब वह लड़का उस बच्चे को लेकर अपने घर आ गया।और बच्चे से
बोला-“चलो आराम कर लो तुम्।तब तक मैं अपना अधूरा काम पूरा कर के आता हूं ।”
सुबह जब वह सो कर उठा तो उसे बहुत ही अच्छा लग रहा था।उस समय वह लडका अपने और
बच्चे के लिये चाय बना रहा था।तब बच्चे ने कहा-“भैया
मै भी आपके साथ काम पर चलूंगा।’ थोड़ी देर सोचने के बाद लड़के ने पूछा-“तुम्हारा
नाम क्या है?”बच्चे ने कह-“रवि”।और
उसने फ़िर उस लड़के कि तरफ़ देखा और पूछा-“ भैया आपका नाम क्या है?” लड़के
ने कहा कि कुछ भी कह लो।मुझे तो बेचारा नाम इसलिये याद है क्योंकि बचपन में अपने लिये
सिर्फ़ यही नाम मैंने सुना है।और फ़िर हंस पड़ा। अच्छा चलो चलते हैं काम पर ।फ़िर रवि
को साथ लेकर वह माल ढोने की जगह गया।फ़िर उसने रवि से कहा तू चुपचाप यहीं बैठा रह।कहीं
जाने की ज़रूरत नहीं है।काम खत्म होते ही साथ मे घर चलेंगे।थक-हार कर दोनों घर
लौटे, थोड़ा चाय पानी किया फ़िर ज़मीन पर चटाई बिछा कर लेट गये।रवि तो सो गया लेकिन लड़के
को रात भर नींद नही आयी।
वो कुछ सोच रहा था।फ़िर उसने रवि की तरफ़ देखा।रवि को देखते देखते उसके मन में
अपने बचपन के दिन याद आ गये।बचपन में जो गरीबी देखी थी उसने उसे याद कर ही वह सिहर
उठा।अनाज के एक एक दाने को वो लोग मोहताज रहते थे।ईश्वर किसी को वैसे दिन न
दिखलाए।उसकी आंखों में आंसू झिलमिला उठे।उसने अपने मन में निश्चय किया कि वह रवि
जैसे और बच्चों को अपने साथ रखेगा।ताकि कोई उन्हें बेचारा न कह सके।ऐसे किसी बच्चे
को कोई अनाथ न कह सके।तब उसकी आंखों में दृढ़ निश्चय और संतोष का भाव दिखायी
पड़ा।फ़िर वह भी चैन की नींद सो गया।
सबेरे उठते ही बड़े उत्साह से उसने रवि से
कहा—“रवि,आज से हम अपने साथ उन
बच्चों को रखने की कोशिश करेंगे जिनका इस दुनिया में कोई नहीं है।“
“बात तो सही है भैया
आपकी---पर इतने सारे बच्चों को खान खिलाने के लिये पैसा कहां से आयेगा हमारे पास?”
रवि ने उत्सुकता से पूछा।
लड़का रवि की बात सुन कर हंस
पड़ा—“अरे पगले,किसी को कोई थोड़े ही खिलाता है।वह तो भगवान हैं जो सबके नाम का अन्न
बनाते हैं।” कहने को तो वह कह गया।पर उसने अपने मन में सोचा कल से मैं और कड़ी
मेहनत करूंग तभी अपने घर आये सभी बच्चों के चेहरों पर खुशी ला सकूंगा।
अगले दिन सुबह उसने जल्दी से उठकर उसने जल्दी
से चाय पिया और रवि को भी देकर काम पर चला गया।वह मेहनत और सिर्फ़ मेहनत करना चाहता
था ताकि अन्य बच्चों का भविष्य भी संवारा जा सके।
धीरे धीरे उसके यहां बच्चों की संख्या बढ़ती गयी।बच्चे भी अपने भइया के अनुरूप
ही छोटे छोटे काम करके उसकी मदद कर देते थेऍहल पड़ा था अब आहिस्ता आहिस्ता उनकी
खुशियों का संसारअर बच्चे का चेहरा वहां खुशी से चमकता रहता था।पर उन बच्चों की ये
खुशी भी ज्यादा दिन तक नहीं चल सकी।
एक दिन वह लड़का कुछ सामान ट्रक में लदवाकर सड़क
के उस पार जा रहा था कि तभी तेजी से भागती गुयी एक कार ने उसे टक्कर मार दी। और वो
वहीं पर लहूलुहान हो कर गिर पड़ा।उसके सर में गम्भीर चोट आई थी। वह वहीं तड़प कर
हमेशा के लिये शान्त हो गया। आस-पास लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गयी।उस भीड़ में कुछ
उसे जानने वाले भी थे।किसी ने चिल्लाकर कहा—“अरे
ये तो वही बेचारा है।”
तभी वहां पर उसके साथ रहने वाले बच्चे भी आ
गये ।शायद किसी ने उन्हें भी खबर कर दी थी।उसके लिये लोगों के मुंह से “बेचारा”
शब्द सुनकर सारे बच्चे चीख पड़े---“मत कहो उन्हें बेचारा---वो बेचारे
नहीं हमारे भगवान थे।उन्हीं की बदौलत आज हम कुछ करने लायक हो गये।---वो तो सभी के
आदर्श थे।महान थे। हम सभी न बेचारे हैं न ही अनाथ।”
उन सभी बच्चों की आंखें नम हो आईं थीं।
उन सभी बच्चों ने मिलकर
अपने बड़े भैया का अन्तिम संस्कार किया।और उनके घर के सामने उनकी मूर्ति स्थापित कर
उन्हीं के आदर्शों पर चलने लगे।
0000
पूनम श्रीवास्तव
8 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25-06-2016) को "इलज़ाम के पत्थर" (चर्चा अंक-2384) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत दिन बाद ब्लॉग की दुनिया में आना हुआ ,आपकी कहानी पढ़ी अच्छा लगा । बधाई
सुंदर कहानी
म्हणत हमेशा प्रेरणा देती है ... अच्छे कहानी है दिल को छूती हुयी ...
पूनम श्रीवास्तव जी, आपकी इस पोस्ट के कुछ भाग को आपके ब्लॉग के लिंक के साथ iBlogger पर प्रकाशित किया है।
- Team - www.iBlogger.in
मर्मस्पर्शी कहानी ..बहुत सुन्दर ..
जो साधनहीन होने पर भी सबकी मदद करता है, वो बेचारा हो ही नहीं सकता। बहुत बढिया कहानी!
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