घनन घनन अब बरसो बदरवा
धरती का हियरा तड़पत है
खेतिहर की अंखियां हरदम
अंसुअन से अब भीगत हैं।
राह निहारे पंख पसारे
पाखी एकटक देखत हैं
अब बरसोगे तब बरसोगे
मन में आस लगावत हैं।
बिन पानी सब सूना सूना
जीव सभी अब भटकत हैं
दिखे पानी की एक बूंद
सब पूरी जान लगावत हैं।
बड़ी बेर भई बादल राजा
सावन सब कहां निहारत हैं
नैनन में अंसुअन भर भर के
सब अपनहि देह भिगोवत हैं।
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पूनम श्रीवास्तव
8 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर रचना
इधर पानी गिरा उधर प्रकृति की हरियाली मन को हरा-भरा कर देती है ..
बढ़िया
सुन्दर और सामयिक रचना
वाह ... स्वागत है बरखा का ....
http://bulletinofblog.blogspot.in/2016/09/4.html
बहुत सुन्दर रचना
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बहुत सुन्दर रचना Ad Posting Job
शुन्दर शब्द रचना
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