जैसा कि नव रात्रि के दिनों में घर घर में देवी का पूजन भजन कीर्तन की धूम मची
रहती है।सारा दिन सारी रात देवी के जागरण से पूरा शहर गुंजायमान रहता है।एक अलग ही
खुशी होती है।शाय्यद ये देवी मां के प्रताप के कारण ही होता है।
नवरात्रि के अन्तिम दिनों में छोटी कन्याओं को देवी व लड़कों को लंगूर के रूप
में मानकर उनको भोजन कराया जाता है।इन दिनों इन बच्चों का उत्साह भी देखते बनता
है।हां तो इसी नवरात्रि के नवमी वाले दिन मैंने भी बच्चों को भोजन कराया और कुछ
उपहार में भी दिया।
अचानक मेरी निगाह अपनी कालोनी में काम
करने वाले सफ़ाई कर्मचारी की लड़की पर पड़ी।वो दूर से ही बड़े ध्यान से ये सब देख रही
थी।
मैंने तुरन्त इशारे से उसे पास बुलाया
तो वो खुशी खुशी आ गयी।जैसे ही मैंने उसे टीका लगाने के लिए अपना हाथ उसके माथे की
ओर बढ़ाया वो छः साल की छोटी सी बच्ची बोली—“आण्टी,हम टीका नहीं लगाते।”
मेरे हाथ जहां के तहां रुक गये।मैंने
उससे पूछा—“क्यों बेटा,ये तो भगवान का टीका है?”
तब उस बच्ची ने जो जवाब दिया उसे सुन
मैं हतप्रभ रह गयी।वो बोली—“आण्टी हम मुसलमान हैं।हम लोग टीका नहीं लगाते।”
मेरे हाथ से प्रसाद की प्लेट लेकर वो
चली गयी और में किंकर्तव्यविमूढ़ होकर उसे जाता देखती रही।
0000
पूनम श्रीवास्तव