सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

एक लोरी


लाडली ओ लाडली
सो जा मेरी लाडली
देर न कर निंदिया रानी
सोने चली मेरी लाडली।
लाडली…………………।

मां पापा की लाडली
बहना की तू सखी भली
भइया को प्यारी गुडिया
जैसी बहना तू मिली।
लाडली…………………॥

तू नाजुक फूलों जैसी
निश्छल तू दर्पण जैसी
तेरी मुस्कराहट पर
खिलती दिल की कली कली।
लाडली……………………।

तू शीतल सी चांदनी
जो छेड़े दिल की रागिनी
तेरी बोली लगती ऐसी
मिश्री की जैसी डली।
लाडली……………………॥

मां की उंगली पकड़ के घूमी
घर आँगन और गली गली
सब कुछ सूना सूना लगता
बिन तेरे मेरी लली।
लाडली…………………॥

पढ़ लिख कर तू नाम करे
जग तुझपे अभिमान करे
तेरी रोशनी से रोशन हो
धरती से अम्बर की गली।

लाडली…………………………।



मां का लाडला एक दिन कोई
तुझको लेने आयेगा
मां का आँचल सूना करके
उसके संग तू हो चली।
लाडली……………………।

तेरे जीवन में खुशियों की
बगिया हो महकी महकी
पर भूल न जाना तू कभी
मां के आंगन की गली।
लाडली ओ लाडली
सो जा मेरी लाड़ली।
***************
पूनम

10 टिप्‍पणियां:

अविनाश ने कहा…

दिल को छूने वाली रचना, बहुत अच्छा लिखा है आपने, बधाई!!
शुक्रिया

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

बच्चों के लिए
लारियों का लेखन
विलुप्ति के कगार पर
खड़ा दिखाई देता है!

ऐसे में
आपकी लोरी
बहार बनकर छा गई!

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…

पूनम जी ,
मां सबसे पहली शिक्षक होती है .
बचपन से वो बच्चों को गोद में खिलाने
सुलाने ,उनके पालन का जो भी कम करती है .उन सबसे बच्चा लगातार कुछ न कुछ सीखता है ...और लोरियां ....लोरियां तो हर बच्चे की पहली पाठशाला होती हैं .दुर्भाग्य से लोरियों की ये परंपरा ख़त्म हो रही है .ऐसे में आपकी ये लोरी
सभी माताओं को निश्चित रूप से कुछ तो प्रेरणा देगी ही .

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ ने कहा…

मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई.
ताज़ा हवा के झोंके- सी रचना.

BrijmohanShrivastava ने कहा…

जैसा आपने अपने वारे में ब्लॉग पर लिखा है वैसी ही रचनाये प्रस्तुत हो रही है /यह बहुत अच्छी बात है कि आप से समाज पर अन्याय सहन नहीं होता है और समाज को तब्दील करने के लिए आप कुछ करना और लिखना चाहती है /लोरी अच्छी लगी /कृपया समाज में देखे कहाँ कहाँ कुरीतियों का बोलबाला है ;समाज में कोई गलत प्रथा चली आ रही है ,या कोई ऐसी प्रथा जिसका कोई अर्थ नहीं चल रही है तो क्यों चल रही है ,क्यों और कैसे शुरू हुई होगी ,और अनावश्यक है तो बंद क्यों नहीं हो पा रही /पुत्र पुत्री के जन्म पर होने वाले कार्यक्रम जो पुत्र के पैदा होने पर तो होते हों और पुत्री के पैदा होने पर न होते हों /शादी व्याह में कैसे कैसे ढोंग चल रहे है ,क्या क्या व्यवस्था व नियम बना रखे है जिनसे लडकी के बाप का शोषण होरहा हो उन्हें उजागर करिए /हमारे यहाँ शादी से पहले एक रस्म होती है "" टीका ""उसमे लडकी के बाप से कार ,नगदी तो माँगा ही जाता है ,मैं देख रहा था कि लडकी का बाप उस टीका में लिफाफे लिए खडा था और लड़के वाला अपने परिचितों को बुला बुला कर मिलनी करवा रहा था /लडकी का बाप उनको लिफाफा देता ,गले मिलता /बेचारे का ध्यान लिफाफों पर था और लड़के वाले का ध्यान परिचितों पर था कि कोई रह न जाए /मेडम मै सत्य कह रहा हूँ जिनसे मिलनी करवाई अगर वो दूसरे दिन बाज़ार में मिल जाये तो पहचान न पाए /ये लिफाफों की मिलनी ,शोषण के कैसे नए नए तरीके ईजाद हो गए है /इन पर बारीकी से ध्यान दीजिये ,लिखिए ,लोगों का ध्यान आकर्षित कीजिए /टिप्पणी बड़ी हो जायेगी ,फिर कभी लिखूंगा उस बात पर जिसमे लडकी वाले को अपने ही शहर में शादी करने बुलाया जाता है

बेनामी ने कहा…

aadarniya bahbhi ji
aaj maine aap dwara rachit kavitaain padhee. bahut achha likha hai aapne. bhai sahab ke bare main to main janta tha parntu aap bhi itni achhi kavita likhti hain, iski maine kalpna nahi ki thi.bahut-bahut badhai.
vinay srivastava

Girish Kumar Billore ने कहा…

Wah
sundar rachana
swagat hai

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूबसूरत लोरी . जीवन की सच्चाई.
बहुत बहुत बधाई

pritigupta ने कहा…

Shayad log lori ko hi bhulene lage hai. Fusan ke yug me achha prayas hai

daanish ने कहा…

बड़े ही सहज-सरल ममतामयी अल्फाज़ में
लिक्खी गयी पावन पंक्तियाँ ........
भावनात्मक अभिव्यक्ति ..............
बधाई . . . . .
---मुफलिस---