पंच तत्वों से मिलकर मानव का हुआ मानवीकरण,
मानवता तो खो रही फ़िर भी हम जिंदा तो हैं।
धड़कनें भी चल रही हैं नब्ज भी साथ दे रही,
पर दिल तो भावशून्य है फ़िर भी हम जिंदा तो हैं।
जमीर अपनी बेच दी आत्मा भी मर चुकी,
अपने को बड़े फ़ख्र से कहते फ़िर भी हम जिंदा तो हैं।
हर गली चौराहे पर मां बेटी बहन की बोली लगी है,
देख कर अनदेखे हुये फ़िर भी हम जिंदा तो हैं।
रक्षक ही भक्षक बन बैठे हम हाथ पर हाथ धरे रहे,
आंख का पानी भी मर चुका फ़िर भी हम जिंदा तो हैं।
रिश्तों के मतलब बदल रहे हर अखबार चीख रहा ,
शर्मसार हो रहे रिश्ते फ़िर भी हम जिंदा तो हैं।
मानवता तो खो रही फ़िर भी हम जिंदा तो हैं।
धड़कनें भी चल रही हैं नब्ज भी साथ दे रही,
पर दिल तो भावशून्य है फ़िर भी हम जिंदा तो हैं।
जमीर अपनी बेच दी आत्मा भी मर चुकी,
अपने को बड़े फ़ख्र से कहते फ़िर भी हम जिंदा तो हैं।
हर गली चौराहे पर मां बेटी बहन की बोली लगी है,
देख कर अनदेखे हुये फ़िर भी हम जिंदा तो हैं।
रक्षक ही भक्षक बन बैठे हम हाथ पर हाथ धरे रहे,
आंख का पानी भी मर चुका फ़िर भी हम जिंदा तो हैं।
रिश्तों के मतलब बदल रहे हर अखबार चीख रहा ,
शर्मसार हो रहे रिश्ते फ़िर भी हम जिंदा तो हैं।
हमारे संस्कारों की नींव अब तो डगमगा रही शायद,
गिरने से पहले इसे संभालें इसीलिये हम जिंदा तो हैं।
०००००००
गिरने से पहले इसे संभालें इसीलिये हम जिंदा तो हैं।
०००००००
पूनम
14 टिप्पणियां:
सुन्दर रचना है।बधाई।
मैं मानता हूँ अगर हम जुंडा रहे तो इन सब को दुबारा ठीक कर सकते हैं..... इस लिए जिन्दा तो हर हाल में रहना ही है,.... सुन्दर है रचना
"हमारे संस्कारों की नींव,
अब तो डगमगा रही शायद,
गिरने से पहले इसे संभालें,
इसीलिये हम जिंदा तो हैं।"
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
बधाई।
अति सुन्दर बधाई
Achchha laga padh kar, laga hum zinda to hain.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
विचारप्रधान सामयिक रचना
धड़कनें भी चल रही हैं नब्ज भी साथ दे रही,
पर दिल तो भावशून्य है फ़िर भी हम जिंदा तो हैं।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
amazing poem ji , , man ko choo gayi hai aapki rachna ...
aabhar
vijay
pls read my new poem "झील" on my poem blog " http://poemsofvijay.blogspot.com
sundar rachana saath hi satya bhi .
'हमारे संस्कारों की नींव अब तो डगमगा रही शायद,
गिरने से पहले इसे संभालें इसीलिये हम जिंदा तो हैं।'
बहुत ही अच्छी samajik samayaon ke prashn uthaati रचना लिखी है पूनम जी.
अब तक की आप की सब से अच्छी रचनाओं में से एक है यह.
जमीर अपनी बेच दी आत्मा भी मर चुकी,
अपने को बड़े फ़ख्र से कहते फ़िर भी हम जिंदा तो हैं।
हमारे संस्कारों की नींव अब तो डगमगा रही शायद,
गिरने से पहले इसे संभालें इसीलिये हम जिंदा तो हैं।
ek aisi kavita
jiska shabd-shabd antarman
ko gahraayi se sparsh karta hai.
laajawaab..behatareen rachana
shubh kamnayen
आज की आवाज
अत्यन्त सुंदर और दिल को छू लेने वाली रचना लिखा है आपने! आपकी हर एक रचनाएँ मुझे बेहद पसंद है! लाजवाब रचना!
Nice written
आज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
रचना गौड़ ‘भारती’
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