आज हम छूने चले हैं आसमां को
पर सहारा तो जमीं का चाहिये।
लाख मोड़ लें रुख चाहे जिधर भी
पर अन्त में किनारा तो नदी को चाहिये।
चाहे कितने भी बड़े हो जायें हम फ़िर भी
लोरी सुनने के लिये इक गोद मां की चाहिये।
कुछ भी पाने के लिये सोच ऊंची है जरूरी
मिल जाये कितनी शोहरत मन न बढ़ना चाहिये।
हमें मिले जो संस्कार हैं बुजुर्गों की निशानी
गर पड़ें कमजोर तो सम्बल इन्हीं का चाहिये।
है बहुत आसान कीचड़ उछालना दूसरों पर
पर पहले खुद पे भी एक नजर डाल लेना चाहिये।
********
पूनम
पर सहारा तो जमीं का चाहिये।
लाख मोड़ लें रुख चाहे जिधर भी
पर अन्त में किनारा तो नदी को चाहिये।
चाहे कितने भी बड़े हो जायें हम फ़िर भी
लोरी सुनने के लिये इक गोद मां की चाहिये।
कुछ भी पाने के लिये सोच ऊंची है जरूरी
मिल जाये कितनी शोहरत मन न बढ़ना चाहिये।
हमें मिले जो संस्कार हैं बुजुर्गों की निशानी
गर पड़ें कमजोर तो सम्बल इन्हीं का चाहिये।
है बहुत आसान कीचड़ उछालना दूसरों पर
पर पहले खुद पे भी एक नजर डाल लेना चाहिये।
********
पूनम
26 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया गजल धन्यवाद
है बहुत आसान कीचड़ उछालना दूसरों पर
पर पहले खुद पे भी एक नजर डाल लेना चाहिये।
क्या खूब लिखा है !!
बहुत बधाई हो आपको
बहुत खूब
बहुत खुब। लाजवाब रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई
Hi Poonam,
I generally don't have a knack of going through hindi blogs.
Par aaj hi mei ek hindi sahatyakar se mila to man me ek vichar aya ki zara dekhu to sahi ki jo sahita ka klisht roop keetabo me pada hai kya wo sab anya bhashao ki tarah,blogosphere p bhi apna parcham lehra paya hai.
Chand jagaho p dhundta hua mei aapke blog tak pahuncha:)
So,after my try at hindi;)
I would say that tis poem here is amazingly wonderful.
Humbleness is what you have taught,sticking to roots is what you have preached,and i agree very much with you.
Keep the gud wrk goin dear.
~Harsha
बहुत अच्छा लिखा है आपने । विचारों की प्रखर अभिव्यक्ति और भाषिक संवेदना ने कविता को प्रभावशाली बना दिया है ।
मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-रोजगार और बाजार से जुडी हिंदी, जगा रही अपार संभावनाएं । समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
'लाख मोड़ लें रुख चाहे जिधर भी
पर अन्त में किनारा तो नदी को चाहिये।'
-यह तो बहुत ही अच्छा शेर कहा है
पूनम जी,सुन्दर भाव ,अच्छी ग़ज़ल.
बहुत ही ख़ूबसूरत, शानदार और भावपूर्ण ग़ज़ल लिखा है आपने ! बधाई!
बहुत सुंदर कहा !!
bahut sundar har labj khoobsurat .
अच्छे विचारों से भरी रचना । आभार ।
shukria.
nice thoughts.
चाहे कितने भी बड़े हो जायें हम फ़िर भी
लोरी सुनने के लिये इक गोद मां की चाहिये।
बहुत सुन्दर
विजयप्रकाश
ये मैग्लोमैनियक सही कह रहे हैं। बहुत सरल हिन्दी में बहुत सुन्दर कविता है आपकी।
बहुत बढ़िया लिखा है आपने
आज हम छूने चले हैं आसमां को
पर सहारा तो जमीं का चाहिये।
ye baat sach hai
वो कौन है जिसे तौबा की मिल गई फुर्सत ????
सारी नज्मे परत दर परत वाह-वाही पाती बढ़ रही थी.....
मै यहाँ पूरी गजल को तहे दिल से वाह करता हूँ ......
कुछ भी पाने के लिये सोच ऊंची है जरूरी
मिल जाये कितनी शोहरत मन न बढ़ना चाहिये।
क्या खूब लिखा है !!
ati sunder rachana . meree kavitaae bhee nakshe kadam hee hai aapke par ye to vo hee baat hui sou sunaar kee ek luhaar kee .aapka comment prernhiya raha .
हमें मिले जो संस्कार हैं बुजुर्गों की निशानी
गर पड़ें कमजोर तो सम्बल इन्हीं का चाहिये।
है बहुत आसान कीचड़ उछालना दूसरों पर
पर पहले खुद पे भी एक नजर डाल लेना चाहिये।
बहुत सुन्दर गज़ल है बधाई
चाहे कितने भी बड़े हो जाएँ माँ की गोद तो चाहिए और कमजोर पड़ने पर बुजुर्गों के संस्कार यानी बुजुर्गों से प्राप्त संस्कार का सहारा होना चाहिए बिलकुल सही और सार्थक |दूसरों पर कीचड उछालने वाले को पहले अपनी ओर देख लेना चाहिए ( बुरा जो देखन मैं चला ........न कोय ) आसमान को छूने वाले जब जमीन का सहारा छोड़ देते हैं तो हश्र भी बुरा ही होता है आपकी यह बात इस ओर भी इंगित करती है कि (रहिमन देख बडेंन को लघु न दीजे डार )बेशक आदमी की सोच ऊंची होना चाहिए लेकिन दौलत और शोहरत मिल जाने पर ऐसा नहीं हो जाना चाहिए कि बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर ,पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ,बल्कि विनम्र होकर आम के पेड़ की तरह या अन्य फलदार ब्रक्ष की तरह झुक जाना चाहिए | बहुत सुंदर रचना |
चाहे कितने भी बड़े हो जायें हम फ़िर भी
लोरी सुनने के लिये इक गोद मां की चाहिये.....
BAHOOT HI LAJAWAAB SHER HAI YE .... VAISE POORI GAZAL HI SHAANDAAR SHERON KA KHAZAANA HAI ...
आज हम छूने चले हैं आसमां को
पर सहारा तो जमीं का चाहिये।..bahut sahi kaha aapne panv jameen pe tike rahne chihye...sunder rachna....
sundar kavita hai.
है बहुत आसान कीचड़ उछालना दूसरों पर
पर पहले खुद पे भी एक नजर डाल लेना चाहिये।
bahut khoob.
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