गुरुवार, 19 नवंबर 2009

टिक टिक घड़ी


जीवन की अविरल चलती घड़ी
कभी मुड़े ना पीछे बस आगे ही बढ़ी
कभी दुख की घड़ी तो कभी खुशियों की लड़ी
हर पल को सिलते बुनते हुये
सतरंगी सपने संजोते हुये
घावों पे मलहम लगाते हुये
सबसे हाथ मिलाते हुये
हर तरह से साथ निभाते बढ़ी
जीवन की अविरल चलती घड़ी।

कानों में ज्यों टिक टिक इसकी पड़ी
धड़कने भी सुइयों सी दौड़ पड़ी
जीवन में भागम भाग बढ़ी
ज्यों ज्यों इतनी आबादी बढ़ी
कर्तव्य बोध की मांग बढ़ी
आनन फ़ानन में फ़िर तो
पैसों की भी आन पड़ी
मन का सुख तो छिन ही गया
जब भौतिक सुखों की मांग बढ़ी
जीवन की चलती अविरल घड़ी।

जन्म से जो पहली स्वांस मिली
वो कदम दर कदम पर आगे बढ़ी
बचपन की हाथ से जब छूटी लड़ी
युवा कन्धों पर फ़िर आगे बढ़ी
कर्तव्य बोध और लक्ष्य प्राप्ति
के मध्य बनी संघर्ष की घड़ी
जीवन की चलती अविरल घड़ी।

फ़िर हार जीत की आई घड़ी
कशमकश दोनों के बीच चली
हार भी हुयी फ़िर जीत भी हुयी
दोनों को गले लगाते हुये
फ़िर मुस्काती हुयी जिन्दगी बढ़ी
जीवन की चलती अविरल घड़ी।

जन्म से लेके मृत्यु तलक
बचपन से लेके बुढ़ापे तक
हर पल हर क्षण हर वक्त ये घड़ी
दिन महीनों सालों तक
जब तक दे सकती थी साथ हमें
पकड़ी रही वो स्वांस की डोरी
अविराम निरन्तर टिक टिक करती
बस बढ़ती रही और बढ़ती रही
और फ़िर अविरल ही बढ़ती रही ।
00000
पूनम


16 टिप्‍पणियां:

Alpana Verma ने कहा…

jeevan ka paath padhati hui kavita..bahut hi achchee lagi.

ACHARYA RAMESH SACHDEVA ने कहा…

WAQT KI KIMAT BATATI GHADI,
DER SAVER BATATI GHADI.
KABHI NAHI KARTI KISI KI PARVAH
AAPNI HI DHUN MEIN BADHTI JATI GHADI.

Udan Tashtari ने कहा…

सुन्दर सबक सीखाती अभिव्यक्ति!!

मनोज कुमार ने कहा…

भाषा की सर्जनात्मकता के लिए विभिन्न बिम्बों का उत्तम प्रयोग ... अच्छी रचना। बधाई।

Apanatva ने कहा…

कर्तव्य बोध और लक्ष्य प्राप्ति
के मध्य बनी संघर्ष की घड़ी
bahut hee sunder rachana .

रश्मि प्रभा... ने कहा…

vyavahik rachna

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

pura zindagi naama likh diya hai....jo ghadi beet gayi bass beet gayi...nirantar aage hi badhna hai....achchhi abhivyakti

Arshia Ali ने कहा…

जिंदगी को करीने से जीने का तरीका सिखाती घडी।
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क्या स्टारवार शुरू होने वाली है?
परी कथा जैसा रोमांचक इंटरनेट का सफर।

निर्मला कपिला ने कहा…

जन्म से लेके मृत्यु तलक
बचपन से लेके बुढ़ापे तक
हर पल हर क्षण हर वक्त ये घड़ी
दिन महीनों सालों तक
जब तक दे सकती थी साथ हमें
पकड़ी रही वो स्वांस की डोरी
अविराम निरन्तर टिक टिक करती
बस बढ़ती रही और बढ़ती रही
और फ़िर अविरल ही बढ़ती रही ।
बहुत सुन्दर और सही इस रचना के लिये बधाई

दिगम्बर नासवा ने कहा…

YE GHADI HI TO HAI JO GIN KAR SAANSE LAATI HAI JEEVAN MEIN ... BAHUT ACHEE KALPANA HAI ...

शरद कोकास ने कहा…

जीवन की घड़ी अच्छा बिम्ब है ।

ज्योति सिंह ने कहा…

jeevan ke mulya samjhati hui ye ghadi bahut mahtavpoorn hai ,umda

Urmi ने कहा…

फ़िर हार जीत की आई घड़ी
कशमकश दोनों के बीच चली
हार भी हुयी फ़िर जीत भी हुयी
दोनों को गले लगाते हुये
फ़िर मुस्काती हुयी जिन्दगी बढ़ी
जीवन की चलती अविरल घड़ी।

हर एक पंक्तियाँ जीवन की सच्चाई को बयान करती है! आपने इतना सुंदर रचना लिखा है जो प्रशंग्सनीय है ! घड़ी के साथ साथ हर इंसान को चलना चाहिए! जो वक़्त निकल जाता है वो वक्त फिर से वापस नहीं आता और तब पछताने से भी कुछ नहीं होता! इसलिए सभी को वक्त का कद्र करना चाहिए ! घड़ी बहुत ही आवश्यक है वरना ज़िन्दगी थम ही जाएगी !

प्रिया ने कहा…

aapne to har pahlu ka hisaab kar diya.....badiya hai

BrijmohanShrivastava ने कहा…

जीवन की घडी आगे ही बढी -जीवन जीने की कला कहना चाहिये इसे -""जिस दिन से चला हूं मेरी मंजिल पे नजर है , आंखो ने कभी मील का पत्थर नही देखा ""। सपने संजोना , सबसे मिलकर रहना(हाथ मिलाना)इस दौरान परेशानी रूपी घाव प्राप्त हो तो सहनशक्ति की मरहम लगाना ,।भौतिक सुखों की मांग बढ जाने पर मन का चैन छिन जाना , हार जीत ,कर्तव्य बोध बहुत सुन्दर रचना ।घडी मे एक विशेषता भी होती है कि यदि खराब भी हो जाये तो चौबीस घन्टे मे दो बार सही समय ज़रूर बतलाती है ।
मै गलतियां कभी नही निकालता जो मुझे अच्छा लगता है वैसे पढ लेता हूं जैसे मैने आपकी दूसरी लाइन मे ""कभी मुडे न पीछे "" की जगह ""कभी मुडी न पीछे"" पढ लिया। क्योंकि मुडे न पीछे मे एक आदेश है , निर्देश है ,सलाह है , और मुडी न पीछे मे ऐसा लगता है जैसे मै अपनी बात कह रहा हूं (ड और ढ के नीचे बिन्दी नही लग पारही है की बोर्ड में)

shikha varshney ने कहा…

vaqt or jeevan ko bhaut khubsurti se darshaya hai aapne..
blog par aane ka tahe dil se shukriya.