जीवन की अविरल चलती घड़ी
कभी मुड़े ना पीछे बस आगे ही बढ़ी
कभी दुख की घड़ी तो कभी खुशियों की लड़ी
हर पल को सिलते बुनते हुये
सतरंगी सपने संजोते हुये
घावों पे मलहम लगाते हुये
सबसे हाथ मिलाते हुये
हर तरह से साथ निभाते बढ़ी
जीवन की अविरल चलती घड़ी।
कानों में ज्यों टिक टिक इसकी पड़ी
धड़कने भी सुइयों सी दौड़ पड़ी
जीवन में भागम भाग बढ़ी
ज्यों ज्यों इतनी आबादी बढ़ी
कर्तव्य बोध की मांग बढ़ी
आनन फ़ानन में फ़िर तो
पैसों की भी आन पड़ी
मन का सुख तो छिन ही गया
जब भौतिक सुखों की मांग बढ़ी
जीवन की चलती अविरल घड़ी।
जन्म से जो पहली स्वांस मिली
वो कदम दर कदम पर आगे बढ़ी
बचपन की हाथ से जब छूटी लड़ी
युवा कन्धों पर फ़िर आगे बढ़ी
कर्तव्य बोध और लक्ष्य प्राप्ति
के मध्य बनी संघर्ष की घड़ी
जीवन की चलती अविरल घड़ी।
फ़िर हार जीत की आई घड़ी
कशमकश दोनों के बीच चली
हार भी हुयी फ़िर जीत भी हुयी
दोनों को गले लगाते हुये
फ़िर मुस्काती हुयी जिन्दगी बढ़ी
जीवन की चलती अविरल घड़ी।
जन्म से लेके मृत्यु तलक
बचपन से लेके बुढ़ापे तक
हर पल हर क्षण हर वक्त ये घड़ी
दिन महीनों सालों तक
जब तक दे सकती थी साथ हमें
पकड़ी रही वो स्वांस की डोरी
अविराम निरन्तर टिक टिक करती
बस बढ़ती रही और बढ़ती रही
और फ़िर अविरल ही बढ़ती रही ।
00000
पूनम
कभी मुड़े ना पीछे बस आगे ही बढ़ी
कभी दुख की घड़ी तो कभी खुशियों की लड़ी
हर पल को सिलते बुनते हुये
सतरंगी सपने संजोते हुये
घावों पे मलहम लगाते हुये
सबसे हाथ मिलाते हुये
हर तरह से साथ निभाते बढ़ी
जीवन की अविरल चलती घड़ी।
कानों में ज्यों टिक टिक इसकी पड़ी
धड़कने भी सुइयों सी दौड़ पड़ी
जीवन में भागम भाग बढ़ी
ज्यों ज्यों इतनी आबादी बढ़ी
कर्तव्य बोध की मांग बढ़ी
आनन फ़ानन में फ़िर तो
पैसों की भी आन पड़ी
मन का सुख तो छिन ही गया
जब भौतिक सुखों की मांग बढ़ी
जीवन की चलती अविरल घड़ी।
जन्म से जो पहली स्वांस मिली
वो कदम दर कदम पर आगे बढ़ी
बचपन की हाथ से जब छूटी लड़ी
युवा कन्धों पर फ़िर आगे बढ़ी
कर्तव्य बोध और लक्ष्य प्राप्ति
के मध्य बनी संघर्ष की घड़ी
जीवन की चलती अविरल घड़ी।
फ़िर हार जीत की आई घड़ी
कशमकश दोनों के बीच चली
हार भी हुयी फ़िर जीत भी हुयी
दोनों को गले लगाते हुये
फ़िर मुस्काती हुयी जिन्दगी बढ़ी
जीवन की चलती अविरल घड़ी।
जन्म से लेके मृत्यु तलक
बचपन से लेके बुढ़ापे तक
हर पल हर क्षण हर वक्त ये घड़ी
दिन महीनों सालों तक
जब तक दे सकती थी साथ हमें
पकड़ी रही वो स्वांस की डोरी
अविराम निरन्तर टिक टिक करती
बस बढ़ती रही और बढ़ती रही
और फ़िर अविरल ही बढ़ती रही ।
00000
पूनम
16 टिप्पणियां:
jeevan ka paath padhati hui kavita..bahut hi achchee lagi.
WAQT KI KIMAT BATATI GHADI,
DER SAVER BATATI GHADI.
KABHI NAHI KARTI KISI KI PARVAH
AAPNI HI DHUN MEIN BADHTI JATI GHADI.
सुन्दर सबक सीखाती अभिव्यक्ति!!
भाषा की सर्जनात्मकता के लिए विभिन्न बिम्बों का उत्तम प्रयोग ... अच्छी रचना। बधाई।
कर्तव्य बोध और लक्ष्य प्राप्ति
के मध्य बनी संघर्ष की घड़ी
bahut hee sunder rachana .
vyavahik rachna
pura zindagi naama likh diya hai....jo ghadi beet gayi bass beet gayi...nirantar aage hi badhna hai....achchhi abhivyakti
जिंदगी को करीने से जीने का तरीका सिखाती घडी।
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क्या स्टारवार शुरू होने वाली है?
परी कथा जैसा रोमांचक इंटरनेट का सफर।
जन्म से लेके मृत्यु तलक
बचपन से लेके बुढ़ापे तक
हर पल हर क्षण हर वक्त ये घड़ी
दिन महीनों सालों तक
जब तक दे सकती थी साथ हमें
पकड़ी रही वो स्वांस की डोरी
अविराम निरन्तर टिक टिक करती
बस बढ़ती रही और बढ़ती रही
और फ़िर अविरल ही बढ़ती रही ।
बहुत सुन्दर और सही इस रचना के लिये बधाई
YE GHADI HI TO HAI JO GIN KAR SAANSE LAATI HAI JEEVAN MEIN ... BAHUT ACHEE KALPANA HAI ...
जीवन की घड़ी अच्छा बिम्ब है ।
jeevan ke mulya samjhati hui ye ghadi bahut mahtavpoorn hai ,umda
फ़िर हार जीत की आई घड़ी
कशमकश दोनों के बीच चली
हार भी हुयी फ़िर जीत भी हुयी
दोनों को गले लगाते हुये
फ़िर मुस्काती हुयी जिन्दगी बढ़ी
जीवन की चलती अविरल घड़ी।
हर एक पंक्तियाँ जीवन की सच्चाई को बयान करती है! आपने इतना सुंदर रचना लिखा है जो प्रशंग्सनीय है ! घड़ी के साथ साथ हर इंसान को चलना चाहिए! जो वक़्त निकल जाता है वो वक्त फिर से वापस नहीं आता और तब पछताने से भी कुछ नहीं होता! इसलिए सभी को वक्त का कद्र करना चाहिए ! घड़ी बहुत ही आवश्यक है वरना ज़िन्दगी थम ही जाएगी !
aapne to har pahlu ka hisaab kar diya.....badiya hai
जीवन की घडी आगे ही बढी -जीवन जीने की कला कहना चाहिये इसे -""जिस दिन से चला हूं मेरी मंजिल पे नजर है , आंखो ने कभी मील का पत्थर नही देखा ""। सपने संजोना , सबसे मिलकर रहना(हाथ मिलाना)इस दौरान परेशानी रूपी घाव प्राप्त हो तो सहनशक्ति की मरहम लगाना ,।भौतिक सुखों की मांग बढ जाने पर मन का चैन छिन जाना , हार जीत ,कर्तव्य बोध बहुत सुन्दर रचना ।घडी मे एक विशेषता भी होती है कि यदि खराब भी हो जाये तो चौबीस घन्टे मे दो बार सही समय ज़रूर बतलाती है ।
मै गलतियां कभी नही निकालता जो मुझे अच्छा लगता है वैसे पढ लेता हूं जैसे मैने आपकी दूसरी लाइन मे ""कभी मुडे न पीछे "" की जगह ""कभी मुडी न पीछे"" पढ लिया। क्योंकि मुडे न पीछे मे एक आदेश है , निर्देश है ,सलाह है , और मुडी न पीछे मे ऐसा लगता है जैसे मै अपनी बात कह रहा हूं (ड और ढ के नीचे बिन्दी नही लग पारही है की बोर्ड में)
vaqt or jeevan ko bhaut khubsurti se darshaya hai aapne..
blog par aane ka tahe dil se shukriya.
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