शनिवार, 5 दिसंबर 2009

बच्चे मन के सच्चे------


कुछ कुछ तलाशती, कुछ खोजती नजरें। आपके चेहरे के भावों को बनते बिगड़ते देखती नजरें। कभी कभी अपने अगल बगल झांकती नजरें। कभी अपनों से ही नजर चुराती नजरें। आर्द्रता के साथ याचना और थोड़ी कड़वाहट से भरी नजरें।थोड़ी सी सहमी भी फ़िर भी आपसे सवाल करने की हिम्मत जुटाती नजरें।फ़िर धीरे धीरे पैरों के नाखूनों से धरती को खुरचती हुई जमीन पर झुकी नजरें।
महीन सी आवज में पूछती हैं वो नजरें कि क्या हम इतने अवांछनीय हैं?कि प्यार के दो शब्द भी हमारे लिये आपके शब्दकोश में नहीं हैं? आज भी हम उतने ही तिरस्कृत और हेय नजरों से देखे जाते हैं जैसे शायद हमारे बुजुर्गों को भी देखा जाता रहा होगा। तो फ़िर आज के समय का ये बदला हुआ वाक्य सिर्फ़ उन्हीं लोगों के लिये है जो कदम जमाने के संग मिला सके। या फ़िर उच्च वर्गों के लिये जिसमें से ज्यादा तो मात्र दिखावा ही करते हैं। वो नन्हीं नन्हीं नजरें
जो पानी से भरी भरी हैं,जिनके आंसू पोंछने वाले शायद बहुत ही कम दिखते हैं। और बहुत से तो ऐसे भी लोग होते हैं जो उनके बच्चे की कोई चीज देखने पर ये कहने से नहीं चूकते कि क्यों नजर लगाते हो,मेरे बच्चों की चीजों पर।
शायद वो पढ़े लिखे इन्सान भी इस बात को नहीं जानते कि ये मासूम बच्चे क्या जानें कि नजर लगाना क्या बला है।ये किस चिड़िया का नाम है। उनको तो शायद उनके मां बाप का नाम व अता पता भी नहीं मालूम होता।कुछ को अपना नाम बुलाये जाने पर लगता है कि यही उसका असली नाम है। ऐ लड़की,ओ कल्लो,ओए सुनता नहीं क्या,ओ बहरा है क्या,ढंग से काम करना नहीं आता,देखने में बैल जैसा है। फ़िर धीरे धीरे ये मासूम इसके अभ्यस्त हो जाते हैं।
ये मासूमियत भरी नजरें नजर लगाना तो नहीं जानती। लेकिन शायद नई नई चीजों को देखकर उनकी उत्सुकता जो उनकी नजरों में भर जाती है या जिस चीज को देखकर उनके मन में उसे छू कर देखने की इच्छा जागृत हो जाती हो।उसे हम और आप मिलकर उनकी नजरों को लालचीपने का नाम देने से नहीं कतराते।
जरा इन कूड़ा बीनने वालों ,बर्तन माजने वाली लड़कियों या सड़क पर बैठ कर बूट पालिश करते, कार की सफ़ाई करते लड़कों से पल भर के लिये अपना दिमाग हटा कर देखिये। और जरा अपने बच्चों पर भी एक नजर डालिये । क्या किसी नई चीज को देखकर उनमें उत्सुकता नहीं जागृत होती?क्या वे उसे पाने या खाने के लिये
जिद नहीं करते? कम से कम वे बोल कर आपसे अनुरोध करके या फ़िर आप से जिद करके अपनी बात मनवा नहीं लेते?और फ़िर हम भी उनके आगे झुकने के लिये मजबूर हो जाते हैं,लेकिन जायज मांग पर।

फ़िर उन मासूम बच्चों का क्या दोष जो किसी बात पर अपना हक नहीं जमा सकते। किसी से अपनी मांग पूरी नहीं करवा सकते क्योंकि शायद वो उनके माता पिता के लिये एक स्वप्न के समान होता है। जिसके लिये दो जून की रोटी ही बहुत मायने रखती है। और हम अपने फ़टे पुराने या कभी कभार कुछ नया देकर ऐसा अहसान
जताते हैं जैसे उन्हें खरीद लिया हो।
फ़िर हम ऐसे बच्चों को बजाय झिड़कने के प्यार के दो बोल बोलने में भी इतनी कंजूसी क्यों करते हैं।जिसके लिये आपके प्यार भरे दो बोल ही उसको कम से कम पल भर की खुशी दे जाती है।
एक बात और है। हम अगर अपने घर काम करने वाली के बच्चे का शौक पूरा करने के लिये ही पढ़ाना लिखाना शुरू करते हैं।तो उनके सीखने,पढ़ने ,लिखने की गति तेज होती है।इसके पीछे भी मुख्य कारण उनकी लगन और जागरूकता होती है।भले ही उनके मां बाप को ये बेकार का काम लगता हो।पर इसमें उनका कोई दोष नहीं है।
क्योंकि घूम फ़िर कर बात उनकी रोटी पर ही आकर टिक जाती है।
मुझे तो इस बात की बेहद खुशी होती है कि मैनें अपनी शिक्षा का दुरुपयोग नहीं किया।जितनी भी काम वालियां चाहे मेरे घर पर काम करती हों या नहीं ,मैनें उन्हें पढ़ना लिखना सिखाकर इस काबिल बना दिया कि कम से कम वह अपने पैसे रूपयों का हिसाब किताब रख सके। या वक्त पड़ने पर चार लाइन ही लिख सके तो मैं समझूंगी कि मेरा जीवन थोड़ा बहुत सार्थक हो गया। और जब ये बच्चे आकर आपको ये बताते हैं कि आंटी जी आपने पढ़ने का जितना काम दिया वो हमने घर के काम निपटाने के बाद कर लिया। तो यह सुनकर मेरे मन में इतनी अधिक खुशी होती है कि मुंह से बरबस ही निकल पड़ता है---वाह इसे कहते हैं लगन । जो संभवतः अपने बच्चे में कम ही देखने को मिलती है।
फ़िर हमारा समाज ये कहने से नहीं चूकता कि व्यर्थ में अपना समय बर्बाद कर रही हैं।इनको पढ़ाने लिखाने से कोई फ़ायदा नहीं।इनकी तो नियति ही यही है।बस कलम यहीं बंद करती हूं।सोचती हूं क्या कर्म से भाग्य को नहीं बदला जा सकता? कोशिश तो की जा सकती है। इनको भी एक खुशहाल जीवन देने ,अच्छा इन्सान बनाने के लिये।ताकि वो भी विरासत में पाई जिन्दगी के साथ साथ कुछ अच्छा भी कर सकें।
****
पूनम

25 टिप्‍पणियां:

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

बच्चों में भगवान का रूप होता है ..कहीं से यह बात झूठी नही है उनके मुस्कान और उनके बनाए रिश्तों में एक प्रेम का सच्चा चित्रण होता है....बढ़िया लेख...

प्रवीण त्रिवेदी ने कहा…

....बढ़िया लेख...!!!!!

Apanatva ने कहा…

bahut hee sunder lekh hai !!!

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर लिखा आप ने, मै हमेशा ऎसे बच्चो को बुला कर सब से पहले उस का नाम पूछता हुं, फ़िर आम व्यवाहार करता हुं,

Udan Tashtari ने कहा…

बच्चे मन के सच्चे// सुन्दर आलेख.

मनोज कुमार ने कहा…

आलेख क़ाबिले-तारीफ़ है।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

प्रेरणा देती है आपकी पोस्ट ......... किस्मत वाले हैं वो लोग जो बच्चों को कुछ दे पाते हैं ....... किसी बच्चे की निश्चल हँसी असीम सुख दे जाती है ........

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut hi badhiyaa

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

बहुत संवेदना है आपके मन में। बहुत संक्रामक। छू जाती है कहीं गहरे में।

Urmi ने कहा…

बहुत ही सुंदर लेख लिखा है आपने जो दिल को छू गई! बेहद पसंद आया! इस उम्दा पोस्ट के लिए बधाइयाँ!

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

बहुत अच्छा .........
आभार

ज्योति सिंह ने कहा…

bahut hi shaandar lekh man ko chhu gayi ,main bhi aapki tarah in khyalo je judi hai ,kitne umda vichar hai ,badi baate sirf kahne ke liye hi nahi karne ke liye bhi hoti hai ,jise sunna to achchha lagta hai magar karne par aapati kyo ?ye bhi vichtra si baate hai .
bachche man ke sachche ,saari jag ke aankh ke taare ....

बेनामी ने कहा…

unaki masumiyat me prabhu ka rup hota hai.bahut sunadar lekh.

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत अच्छा आलेख है सब को प्रेरना देने का ये प्रयास सार्थक है बहुत सी प्रतिभायें इन बच्चिं के रूप मे छिपी बैठी हैं जिन्हें बस एक अवसर नहीं मिल पाता। धन्यवाद

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

achha likha hai aapne...wah..

बेनामी ने कहा…

baccho ke liye lkha gaya lekh is baat ka saaf ishara karti hai ki unke liye aap ke dil me kitni hamdardi hi,ye vichar aap ki lekhni ko aor tej karege,aur logo ke dil me ek sawal chod jayege,jo har pal unke mal ko jhkjhorte rahe ge,

Arshia Ali ने कहा…

Sachmuch sachchhe.
------------------
शानदार रही लखनऊ की ब्लॉगर्स मीट
.....इतनी भी कठिन नहीं है यह पहेली।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

poonam ji,

jagrookta pradaan karne wala aapka lekh bahut achchha hai.....bhasha shaily chust durust hai....aapke prayaas se auron ko bhi prerna milegi.....achchhe lekh ke liye badhai....aur aapke prayaas ke liye sadhuwaad

शरद कोकास ने कहा…

ज़रूरी तो यह है कि बच्चों को भी इंसान समझा जाये ।

Alpana Verma ने कहा…

bachche bachche hote hain hamen unhen samjhna chaheeye..gareeb hon ya besahra .

kaamwaliyon ke bacchhon ki madad kar ke aur unhen padha kar aap Bahut achcha kar rahi hain .
shubhkamanyen.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

बच्चों के संबध में आपके विचार उच्चकोटि के हैं।
मैने ऐसी महिलाहों के देखा है जो अपने घर काम करने वाली दाई के बच्चों को पढ़ाने का प्रयास करती हैं....
वे ब्लाग लिखना नहीं जानतीं, पति का विरोध सहती हैं, अन्य का उपहास भी सहती हैं, मगर निरंतर..
दूसरे गरीब बच्चों को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती रहती हैं.
इसके पीछे उनके दिल में छुपी अधिक न पढ़ पाने की पीड़ा हो सकती है..
जो भी हो, देख कर सुख मिलता है।

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

मैनें अपनी शिक्षा का दुरुपयोग नहीं किया।जितनी भी काम वालियां चाहे मेरे घर पर काम करती हों या नहीं ,मैनें उन्हें पढ़ना लिखना सिखाकर इस काबिल बना दिया कि कम से कम वह अपने पैसे रूपयों का हिसाब किताब रख सके। या वक्त पड़ने पर चार लाइन ही लिख सके तो मैं समझूंगी कि मेरा जीवन थोड़ा बहुत सार्थक हो गया।...
पूनम जी बहुत ही नेक ख्यालात हैं आपके वर्ना किसके पास समय होता है इस तरह के कार्यों के लिए ....!!

BrijmohanShrivastava ने कहा…

पहला पद नजर पर केन्द्रित ,वाक्यांशों का उत्तम चयन ।वर्ग कोई भी हो ज्यादा धन सम्पन्न और अत्याधुनिक है तो उसके यहां दिखावा संभव है ।तीसरा पद भी उसी अभिमान की भावना से संबन्धित है ।घरेलू नौकरों के साथ वर्ताव वाबत यह पद सत्य भी और गम्भीर भी है । सही है नये खिलोने या बस्तु देखकर उसको छूने की उत्सुकता बाल सुलभ है । हम तो जैसे भी हो जिद पूरी कर देते है किन्तु वे बेचारे तो जिद करना ही नही जानते और जिद करें तो उन पर मार भी पडतीहै। विध्यादान ने बढकर कोई दान नही होता । जो यह सोचता हो कि वक्त की बरबादी है वह इस से मिलने वाली हार्दिक प्रसन्नता का महत्व क्या जाने ।

Ashish (Ashu) ने कहा…

सुन्दर शब्द-चित्र !
ह्रदय स्पर्शी लेखन है आपका
बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! लाजवाब
साभिवादन

कविता रावत ने कहा…

सोचती हूं क्या कर्म से भाग्य को नहीं बदला जा सकता? कोशिश तो की जा सकती है। इनको भी एक खुशहाल जीवन देने ,अच्छा इन्सान बनाने के लिये।ताकि वो भी विरासत में पाई जिन्दगी के साथ साथ कुछ अच्छा भी कर सकें.....
Sudar preranaprad lekh......
Mera bhi yahi manana hai ki apne star par koshish nirantar jaari rakhna chahiye..... Aise bachho ko sabse pahale apnnon ka sa pyar dene ki jarurat hoti hai ....