शनिवार, 19 दिसंबर 2009

नारी


मैं किसी बंधन में बंधना नहीं जानती
नदी के बहाव सी रुकना नहीं जानती
तेज हवा सी गुजर जाये जो सर्र से
मैं हूं वो मन जो ठहरना नहीं जानती।

वो स्वाभिमान जो झुकना नहीं जानती
करती हूं मान पर अभिमान नहीं जानती
जो हाथ में आ के निकल जाये पल में
मैं हूं ऐसा मुकाम जो खोना नहीं जानती।

हाथ बढ़ा कर समेटना है जानती
कंधे से कंधा मिलाना है जानती
गिरते हुये को संभालना है जानती
मैं हूँ वह मुस्कान जो सिसकना नहीं जानती।

मन में बसाकर पूजना है जानती
आंखों में प्यार व अधिकार है मांगती
मैं हूं आज के युग की नारी
जो धरा से अंबर तक उड़ान है मारती।
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पूनम

25 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

मन में बसाकर पूजना है जानती
आंखों में प्यार व अधिकार है मांगती
मैं हूं आज के युग की नारी
जो धरा से अंबर तक उड़ान है मारती।
वाह क्‍या खूब लिखा है !!

Udan Tashtari ने कहा…

मन में बसाकर पूजना है जानती
आंखों में प्यार व अधिकार है मांगती
मैं हूं आज के युग की नारी
जो धरा से अंबर तक उड़ान है मारती।

-बहुत खूब!!

Renu goel ने कहा…

वो स्वाभिमान जो झुकना न जाने , वो मान जो अभिमान न बने , आज के युग में ऐसा मन सिर्फ नारी को ही नहीं वरन सभी को चाहिए ...इस अभिमान ने बड़े बड़े फंदे लगाए हैं ....

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

बहुत सुंदर रचना है। कोमल भावों की प्रभावशाली अभिव्यक्ति। -
http://drashokpriyaranjan.blogspot.com

http://www.ashokvichar.blogspot.com

हास्यफुहार ने कहा…

रचना अच्छी लगी।

मनोज कुमार ने कहा…

वो स्वाभिमान जो झुकना नहीं जानती
करती हूं मान पर अभिमान नहीं जानती
आप की इस कविता में विचार, अभिव्यक्ति शैली-शिल्प और संप्रेषण के अनेक नूतन क्षितिज उद्घाटित हो रहे हैं।

Apanatva ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Apanatva ने कहा…

पूनमजी आपकी ये रचना गहरी छाप छोड़ गयी है .
सुंदर विचार और साथ ही सुंदर अभिव्यक्ति . वाह क्या बात है आज इतवार के दिन बड़ा प्यारा सा एहसास साथ रहेगा .
बधाई

वाणी गीत ने कहा…

वो स्वाभिमान जो झुकना नहीं जानती
करती हूं मान पर अभिमान नहीं जानती

मां और अभिमान के सहज अंतर को समझ ले यदि नारी ...
पूरे ब्रह्माण्ड में करेगी राज ....हमें नाज़ है ऐसी ही नारियों पर ..
बहुत सुन्दर कविता ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूबसूरत शब्दों में नारी कि व्याख्या की है.... बधाई

निर्मला कपिला ने कहा…

हाथ बढ़ा कर समेटना है जानती
कंधे से कंधा मिलाना है जानती
गिरते हुये को संभालना है जानती
मैं हूँ वह मुस्कान जो सिसकना नहीं जानती।

मन में बसाकर पूजना है जानती
आंखों में प्यार व अधिकार है मांगती
मैं हूं आज के युग की नारी
जो धरा से अंबर तक उड़ान है मारती।
यूँ तो पूरी रचना ही काबिले तारीफ है मगर ये पँक्तियाँ बहुत अच्छी लगी । बधाई और धन्यवाद्

कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹 ने कहा…

bahut sunder rchna,ak man ki ichchhaon ki sunder abhivkti aap dwara ...badhayee

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मैं हूं आज के युग की नारी
जो धरा से अंबर तक उड़ान है मारती...

नारी शक्ति जो चाहे कर सकती है ........... बहुत सुंदर रचना है .......

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

अच्छे भाव

Ashish (Ashu) ने कहा…

बड़े सार्थक संदेश के साथ बहुत ही प्रेरणादायी कविता । बधाई !

Pawan Kumar ने कहा…

आंखों में प्यार व अधिकार है मांगती
मैं हूं आज के युग की नारी
जो धरा से अंबर तक उड़ान है मारती।
पूनम जी बहुत ही अच्छी रचना
दिल को छू गयी.......आज की नारी की सही पहचान कराती एक सार्थक कविता!

hem pandey ने कहा…

नारी के आत्मविश्वास से भरी नारी शक्ति का दिग्दर्शन कराती इस रचना के लिए साधुवाद.

Alpana Verma ने कहा…

मन में बसाकर पूजना है जानती
आंखों में प्यार व अधिकार है मांगती
मैं हूं आज के युग की नारी
जो धरा से अंबर तक उड़ान है मारती।

-Waah!
bahut hi achchha likah hai.

नारी का सुंदर रूप दिखाती कविता.

Ravi Rajbhar ने कहा…

Yes aisi hi hai aajki nari...
bahut sunder

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना जी। सरल भाव - सुन्दर अभिव्यक्ति!

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

बहुत खूब अच्छी रचना
बधाई स्वीकारें

Dr. Shashi Singhal ने कहा…

पूनम जी , आपने आज की नारी के मन के भावों को बहुत ही सुंदर व शब्दों में पिरोकर पेश किया है । कविता की हर पंक्ति को पढ़कर ऎसा लगता है कि हम अपने मन की बात कर रहे हों । यह सुंदर रचना दिल को छू गई ।

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

Sundar aur saras abhivyakti.

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अंग्रेज़ी का तिलिस्म तोड़ने की माया।
पुरुषों के श्रेष्ठता के 'जींस' से कैसे निपटे नारी?

Hamid Siddharthi ने कहा…

very nice poem. well described what a woman is! liked it

कविता रावत ने कहा…

मन में बसाकर पूजना है जानती
आंखों में प्यार व अधिकार है मांगती
मैं हूं आज के युग की नारी
जो धरा से अंबर तक उड़ान है मारती।
Bahut sundar prernadaayak rachna.
Bahut badhai..