मैं किसी बंधन में बंधना नहीं जानती
नदी के बहाव सी रुकना नहीं जानती
तेज हवा सी गुजर जाये जो सर्र से
मैं हूं वो मन जो ठहरना नहीं जानती।
वो स्वाभिमान जो झुकना नहीं जानती
करती हूं मान पर अभिमान नहीं जानती
जो हाथ में आ के निकल जाये पल में
मैं हूं ऐसा मुकाम जो खोना नहीं जानती।
हाथ बढ़ा कर समेटना है जानती
कंधे से कंधा मिलाना है जानती
गिरते हुये को संभालना है जानती
मैं हूँ वह मुस्कान जो सिसकना नहीं जानती।
मन में बसाकर पूजना है जानती
आंखों में प्यार व अधिकार है मांगती
मैं हूं आज के युग की नारी
जो धरा से अंबर तक उड़ान है मारती।
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पूनम
नदी के बहाव सी रुकना नहीं जानती
तेज हवा सी गुजर जाये जो सर्र से
मैं हूं वो मन जो ठहरना नहीं जानती।
वो स्वाभिमान जो झुकना नहीं जानती
करती हूं मान पर अभिमान नहीं जानती
जो हाथ में आ के निकल जाये पल में
मैं हूं ऐसा मुकाम जो खोना नहीं जानती।
हाथ बढ़ा कर समेटना है जानती
कंधे से कंधा मिलाना है जानती
गिरते हुये को संभालना है जानती
मैं हूँ वह मुस्कान जो सिसकना नहीं जानती।
मन में बसाकर पूजना है जानती
आंखों में प्यार व अधिकार है मांगती
मैं हूं आज के युग की नारी
जो धरा से अंबर तक उड़ान है मारती।
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पूनम
25 टिप्पणियां:
मन में बसाकर पूजना है जानती
आंखों में प्यार व अधिकार है मांगती
मैं हूं आज के युग की नारी
जो धरा से अंबर तक उड़ान है मारती।
वाह क्या खूब लिखा है !!
मन में बसाकर पूजना है जानती
आंखों में प्यार व अधिकार है मांगती
मैं हूं आज के युग की नारी
जो धरा से अंबर तक उड़ान है मारती।
-बहुत खूब!!
वो स्वाभिमान जो झुकना न जाने , वो मान जो अभिमान न बने , आज के युग में ऐसा मन सिर्फ नारी को ही नहीं वरन सभी को चाहिए ...इस अभिमान ने बड़े बड़े फंदे लगाए हैं ....
बहुत सुंदर रचना है। कोमल भावों की प्रभावशाली अभिव्यक्ति। -
http://drashokpriyaranjan.blogspot.com
http://www.ashokvichar.blogspot.com
रचना अच्छी लगी।
वो स्वाभिमान जो झुकना नहीं जानती
करती हूं मान पर अभिमान नहीं जानती
आप की इस कविता में विचार, अभिव्यक्ति शैली-शिल्प और संप्रेषण के अनेक नूतन क्षितिज उद्घाटित हो रहे हैं।
पूनमजी आपकी ये रचना गहरी छाप छोड़ गयी है .
सुंदर विचार और साथ ही सुंदर अभिव्यक्ति . वाह क्या बात है आज इतवार के दिन बड़ा प्यारा सा एहसास साथ रहेगा .
बधाई
वो स्वाभिमान जो झुकना नहीं जानती
करती हूं मान पर अभिमान नहीं जानती
मां और अभिमान के सहज अंतर को समझ ले यदि नारी ...
पूरे ब्रह्माण्ड में करेगी राज ....हमें नाज़ है ऐसी ही नारियों पर ..
बहुत सुन्दर कविता ...
बहुत खूबसूरत शब्दों में नारी कि व्याख्या की है.... बधाई
हाथ बढ़ा कर समेटना है जानती
कंधे से कंधा मिलाना है जानती
गिरते हुये को संभालना है जानती
मैं हूँ वह मुस्कान जो सिसकना नहीं जानती।
मन में बसाकर पूजना है जानती
आंखों में प्यार व अधिकार है मांगती
मैं हूं आज के युग की नारी
जो धरा से अंबर तक उड़ान है मारती।
यूँ तो पूरी रचना ही काबिले तारीफ है मगर ये पँक्तियाँ बहुत अच्छी लगी । बधाई और धन्यवाद्
bahut sunder rchna,ak man ki ichchhaon ki sunder abhivkti aap dwara ...badhayee
मैं हूं आज के युग की नारी
जो धरा से अंबर तक उड़ान है मारती...
नारी शक्ति जो चाहे कर सकती है ........... बहुत सुंदर रचना है .......
अच्छे भाव
बड़े सार्थक संदेश के साथ बहुत ही प्रेरणादायी कविता । बधाई !
आंखों में प्यार व अधिकार है मांगती
मैं हूं आज के युग की नारी
जो धरा से अंबर तक उड़ान है मारती।
पूनम जी बहुत ही अच्छी रचना
दिल को छू गयी.......आज की नारी की सही पहचान कराती एक सार्थक कविता!
नारी के आत्मविश्वास से भरी नारी शक्ति का दिग्दर्शन कराती इस रचना के लिए साधुवाद.
मन में बसाकर पूजना है जानती
आंखों में प्यार व अधिकार है मांगती
मैं हूं आज के युग की नारी
जो धरा से अंबर तक उड़ान है मारती।
-Waah!
bahut hi achchha likah hai.
नारी का सुंदर रूप दिखाती कविता.
Yes aisi hi hai aajki nari...
bahut sunder
बहुत सुन्दर रचना जी। सरल भाव - सुन्दर अभिव्यक्ति!
बहुत खूब अच्छी रचना
बधाई स्वीकारें
पूनम जी , आपने आज की नारी के मन के भावों को बहुत ही सुंदर व शब्दों में पिरोकर पेश किया है । कविता की हर पंक्ति को पढ़कर ऎसा लगता है कि हम अपने मन की बात कर रहे हों । यह सुंदर रचना दिल को छू गई ।
Sundar aur saras abhivyakti.
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अंग्रेज़ी का तिलिस्म तोड़ने की माया।
पुरुषों के श्रेष्ठता के 'जींस' से कैसे निपटे नारी?
very nice poem. well described what a woman is! liked it
मन में बसाकर पूजना है जानती
आंखों में प्यार व अधिकार है मांगती
मैं हूं आज के युग की नारी
जो धरा से अंबर तक उड़ान है मारती।
Bahut sundar prernadaayak rachna.
Bahut badhai..
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