चमन आज भी खुशबुओं से गुलजार होता है
ये कौन कहता है की चमन वीरान होता है
जहां हर पर्व पर आज भी लगते हैं मेले
जो लोगों की भीड से आबाद होता है
जहां गंगा स्नान सूर्य प्रनाम की प्रथा आज भी है बनी
जो जय गंगे और हर हर महादेव की नाद से गूंज उठ्ता है
तीरथ धामों पर जहां लगते भक्तों के आज भी रेले
हर शख्स जहां सबसे पहले करने को दर्शन तैयार रहता है
जहां हर धरमों के लोग संग में चलते हैं हरदम
जब मिलते आपस में गले तो खुशियों में चार चांद लगता है
वीरान से जंगलों में बहुत कुछ है आज भी बाकी
जहां कोयलों की कूक पछियों का कलरव होता है
कांटों के संग फ़ूलों की जहां है बेमिसाल दोस्ती
जो चंदन सी खुशबू आज भी अपनी बिखराता है
मिलजुल कर जो सुखदुख आपस में बांट लें हम
फ़िर देखो खिला खिला कैसा हर बागबां होता है।
20 टिप्पणियां:
मिलजुल कर जो सुखदुख आपस में बांट लें हम फ़िर देखो खिला खिला कैसा हर बागबां होता है।
अच्छी सोच और विचार. शुभकामनाएं.
सकारात्मक सोच की सुंदर अभिव्यक्ति , अच्छी रचना
nice
अच्छी सोच और विचार. शुभकामनाएं
जहां हर धरमों के लोग संग में चलते हैं हरदम जब मिलते आपस में गले तो खुशियों में चार चांद लगता है
बहुत सुन्दर रचना
धन्यवाद
बढ़िया कहा आपने ..सुख दुःख में सब साथ हो तो बात ही क्या है ..बढ़िया अभिव्यक्ति
सकारात्मक सोच की सुंदर अभिव्यक्ति. अभिनन्दन.
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति......बस यूँ ही चमन खिलता रहे....
आमीन .......... आपको आज के दिन की ......... नमना स्नान की ........ मकर संक्रांति की बहुत बहुत बधाई .......
पूनम जी अच्छी रचना के लिए बधाई स्वीकारें.
मकर संक्रांति की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ!
बहुत ही बढियां पोस्ट ! बहुत सुन्दर रचना !
बहुत सुंदर रचना.
धन्यवाद
poonam jee aapke blog par aakar bahut hee accha
lagata hai.kitnee khoobsooratee se aapne hamaree sanskrutee .prakruti sabhee ka ullekh sakrmak roop se kar diya .bahut acchee lagee aapkee ye rachana.
happy Makar Sankranti.
कांटों के संग फ़ूलों की जहां है बेमिसाल दोस्ती
जो चंदन सी खुशबू आज भी अपनी बिखराता है मिलजुल कर जो सुखदुख आपस में बांट लें हम
फ़िर देखो खिला खिला कैसा हर बागबां होता है।
पूनम जी।
आपकी रचना सुन्दर है!
"चमन कभी वीरान नहीं होता है, जी!"
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ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती, कोहरे में भोर हुई!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ", मिलत, खिलत, लजियात ... ... .
संपादक : सरस पायस
मिलजुल कर जो सुखदुख आपस में बांट लें हम फ़िर देखो खिला खिला कैसा हर बागबां बहुत ही सुन्दर रचना है धन्यवाद
भावप्रधान रचना तो है ही शब्दों का चयन भी मनोरम है पंछियों का कलरव,फूल और कांटों की दोस्ती,चमन का खुशबुओं से गुल्जार होना और हर धर्म के लोगों का साथ साथ चलना ।आपस मे सुख दुख बांटने की आकांक्षा -उत्तम रचना
bahut khoobsurat baagba paish kiya hai.badhayi.
आपको और आपके परिवार को वसंत पंचमी और सरस्वती पूजा की हार्दिक शुभकामनायें!
बहुत सुन्दर लिखा है आपने!
माँ भारती पर गर्व कराती इस सुंदर नज्म के लिए आभार.
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